Mahatma Gandhi And His Philosophy Of Life
इंडिया न्यूज़, नई दिल्ली
Mahatma Gandhi का नाम आते ही हमारे मस्तिष्क में एक छवि का निर्माण हो जाता है। एक हाथ में लाठी हृदय में सत्य अहिंसा का सम्बल लिए हुए परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़ी हुई भारत मां को अंग्रेजों के अत्याचारों से मुक्त कराते हुए एक व्यक्ति की तस्वीर उभरती है। गांधी जी को किसी एक विधा से नहीं बांधा जा सकता। उन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए राजनीतिक विचारधारा दी और संघर्ष किया वहीं उन्होंने धर्म, नीति और आर्थिक दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करते हुए अपने सपनों के भारत का मार्ग प्रशस्त किया।
Mahatma Gandhi : जीवन परिचय
गांधी जी का पूरा नाम मोहन दास करम चन्द गांधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में एक कुलीन घराने में हुआ था। उनके पिता करम चन्द गांधी एक दीवान थे और माता पुतली बाई बहुत सीधी साधी धार्मिक विचारों वाली महिला थीं। गांधी जी का 13 वर्ष की आयु में विवाह हुआ। 19 वर्ष की आयु में 4 सितम्बर 1888 को गांधी जी बम्बई से इंग्लैंड वकालत की शिक्षा ग्रहण करने चले गए। बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने के बाद 12 जून 1891 को भारत लौटे और भारत आने पर गांधी जी ने वकालत करने की कोशिश की,लेकिन सफल न हो सके। 1893 में महात्मा गांधी 24 वर्ष की आयु में दक्षिण अफ्रीका गए। महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से 9 जनवरी 1915 को भारत लौटे और बम्बई के अपोलो बन्दरगाह में उतरे। वे वर्ष 1893 से 1915 तक दक्षिण अफ्रीका में रहे। इस प्रकार उन्होंने 21 वर्ष दक्षिण अफ्रीका में व्यतीत किये। उन्होंने अपने दक्षिण अफ्रीका के अनुभवों को भारत में भी दोहराया। उनके जीवन को दो खण्डों में बांटा जा सकता है। भारत में 1915 से 1948 तक 33 वर्ष भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में व्यतीत किया।
Mahatma Gandhi : एक युगदृष्टा
गांधी जी के विराट व्यक्तित्व और उनके दर्शन के बारे में आइंस्टीन के ये उद्गार समीचीन प्रतीत होते हैं की आने वालीं पीढियां शायद मुश्किल से विश्वास करेंगीं कि गांधी जैसा हाड़ मांस का पुतला कभी इस भूमि पर पैदा हुआ होगा। गांधी इंसानो में एक चमत्कार था। उन्होंने अपने जीवनकाल में जाति प्रथा, विज्ञान प्रथा, विज्ञान प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया, अंतजार्तीय और अंतर्धार्मिक विवाह, ट्रस्टीशिप का सिद्धांत, किसान जमींदार सम्बन्ध, समाजवाद, संसदीय व्यवस्था, मूलरूप से अहिंसक जन आंदोलनों में सामूहिक हिंसा जैसे मूल विषयों पर अपने विचार समयानुसार परिवर्तन किये और भारत को नवीन दृस्टिकोण प्रदान किया।
Mahatma Gandhi : क्रांतिकारी विचारक
गांधी जी क्रांतिकारी विचारक थे। उन्होंने देश को नया विचार दिया कि सत्य ही ईश्वर है। उससे पहले ये कहा जाता था कि ईश्वर ही सत्य है। उनका कहना था जब तक हम ये कहते है ईश्वर ही सत्य है तब तक हमको करने को कुछ नहीं रह जाता लेकिन जब हम ये कहते हैं कि सत्य ही ईश्वर है तब हम सत्य का पालन करने में पूरा जीवन लगा देने को संकल्पित होते हैं।
Mahatma Gandhi : व्यवहार और सिद्धान्त
गांधी जी का दर्शन व्यवहार और सिद्धांत का अनूठा समन्वय है,गांधी जी ने अपने जीवन में ऐसी कोई बात नही कि जिस पर स्वयं उन्होंने आचरण न किया हो ,गांधी जी की शिक्षाओं को लोग अक्सर गांधीवाद के नाम से संबोधित किया गया,गांधी जी को इस शब्द पर आपत्ति थी उन्होंने कहा था गांधीवाद जैसी कोई वस्तु नहीं है,उन्होंने कहा कि हम अपने पीछे कोई संप्रदाय नहीं छोड़ना चाहते। उनका कहना था दुनिया में बहुत सी चीजें है करने के लिए हैं इनमें से हम सभी को कुछ न कुछ चुन लेना चाहिए हमारा चुनाव इस बात पर निर्भर होना चाहिए कि हम सर्वश्रेष्ठ ढंग से क्या कर सकतें हैं।
सत्यनिष्ठ राजनीति की अवधारणा
इतिहास ने ये सिद्ध कर दिया है कि गांधी और विश्व शांति को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है। गांधी जी ने सर्वप्रथम दक्षिण अफ्रीका में नागरिक अधिकारों के लिए वहां रह रहे भारतीयों के लिए संघर्ष में शांति पूर्ण नागरिक अवज्ञा के अपने विचारो को पहली बार प्रयोग किया। भारत में आकर राष्ट्रीय कांग्रेस का नेतृत्व करते हुए गांधी जी ने गरीबी निवारण, महिलाओं की स्वतंत्रता, विभिन्न धर्मों एवं जातियों में भाईचारे अस्पृश्यता एवं जातिगत भेदभाव समाप्त करने एवं राष्ट्र की आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए राष्ट्रव्यापी आंदोलन खड़ा किया।
स्वराज्य और लोकतंत्र
गांधी जी स्वराज्य और लोकतंत्र को एक दूसरे का पर्याय मानते थे, उन्होंने कहा था की स्वराज्य से मेरा आशय भारत सरकार से है जिसमे भारत के लोंगो ने चुनकर पार्लियामेंट में भेजा हो,चुनाव पद्धति के बारे में उनका विचार था की प्रत्येक गाँव के लोग ग्राम पंचायतों का चुनाव करें, जिला पंचायते चुने, राज्य स्तरीय पंचायत चुनें, राष्ट्रीय पंचायत का चुनाव करें, चूंकि उनके पंचायती राज में प्रथम इकाई गांव होती है, इसलिए छोटे मोटे ग्रामीण हित नजरअंदाज नहीं हो पाएंगे।
समाज सेवक
गांधी हमेशा दूसरों के लिए जिए उनके आश्रमों में इस बात की शिक्षा दी जाती रही है कि हमें दूसरों के लिए जीना है,उनका सेवा भाव किसी राष्ट्र जाति समुदाय के लिए न होकर समग्र मानवता के लिए था उन्हें मलमूत्र उठाने तक से परहेज नहीं था, गांधी कोढ़ियों की सेवा करते थे जो उस समय अछूत समझे जाते थे,समाज सेवा को गांधी अपना रचनात्मक कार्यक्रम कहते थे। इसमें अस्पृश्यता निवारण, हिन्दू मुस्लिम एकता और खादी का प्रचार प्रमुख थे, इसके अतिरिक्त नशाबन्दी, कुष्ठ रोगियों की सेवा, ग्रामोद्योगों का विकास,गाँव में सफाई, स्वास्थ्य और सफाई की शिक्षा, बुनयादी तालीम, प्रौढ़ शिक्षा, महिला उद्धार, छात्रों, किसानों, श्रमिकों की समस्याओं तक को भी उन्होंने रचनात्मक कार्यक्रम में शामिल कर रखा था। उनकी कथनी करनी में अंतर नहीं था।
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