इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Russia Ukraine War Continues For 11 Days: 11 दिनों से यूक्रेन और रूस की आपसी (Russia Ukraine Crisis) जंग में ना जाने कितने लोगों ने अपनी जान गवां दी। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की आम जनता से हथियार उठाने की अपील कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि करीब एक लाख से ज्यादा लोगों ने हथियार भी उठा लिए हैं लेकिन पूरी तरह से हथियार चलाने की ट्रेनिंग न होने की कमी से उनकी सीमाएं भी हैं।
वहीं अमेरिक का कहना है कि राष्ट्रपति जेलेंस्की को फिनलैंड जैसे छोटे से देश से सीखना चाहिए था, जिसने 80 साल पहले आम जनता के दम पर तीन माह तक सोवियत आर्मी से बराबरी की टक्कर ली थी। तो चलिए जानते हैं कि आखिर 80 साल पहले ऐसा क्या हुआ था और यूक्रेन जैसे देश ने वहां से कुछ भी सीखने में कैसे करी इतनी देर।
किस नाम से प्रसिद्ध है रशियन युद्ध?
आपको बता दें कि यह बात लगभग 80 साल पहले की है। दूसरे विश्व युद्ध का दौर चल रहा था। उस समय सोवियत संघ को हिटलर के खिलाफ जर्मनी पर हमला करना था। रास्ता फिनलैंड से होकर जाता था। रूस ने फिनलैंड से रास्ता मांगा, लेकिन फिनलैंड ने रूस से अपनी पुरानी रंजिश के चलते रास्ता देने से मना कर दिया। इस पर रूस ने फिनलैंड पर हमला कर दिया था। 1939 में फिनलैंड और सोवियत संघ के बीच हुए इस युद्ध का नाम विंटर वॉर रखा गया। इस युद्ध में फिनलैंड के आम लोगों की गुरिल्ला सेना ने मिसाल कायम की थी। पोलैंड और बाल्टिक देशों ने भी आगे चलकर ये मॉडल एडॉप्ट किया।
फिनलैंड का गुरिल्ला मॉडल क्या?
फिन्स गुरिल्ला मॉडल के मुताबिक दुश्मन देश की फौज को अपने देश की सीमाओं के अंदर आने से रोकना नहीं है, बल्कि उनका इंतजार करना है। जैसे ही उनके टैंकों का आगे बढ़ना रुके, सोल्जर्स टॉयलेट के लिए या खाना बनाने और आराम करने के लिए बाहर आएं, बस उन पर टूट पड़ो, उन्हें घेरकर मार दो।
सन् 1914 से जारी थी रूस से दुश्मनी?
सन् 1914 में पहले विश्व युद्ध के दौर में जर्मनी ने फिनलैंड के युवाओं को मिलिट्री ट्रेनिंग दी थी। उस समय फिनलैंड सोवियत संघ के कब्जे में था और आजाद होने की कोशिशों में लगा हुआ था। फिनलैंड के स्टूडेंट्स ने हल्ला बोल दिया था। 1914-18 के बीच रूस के खिलाफ विद्रोह काम आया और छह दिसंबर 1918 को फिनलैंड रूस से आजाद हो गया।
फिनलैंड ने कैसे तैयार की गुरिल्ला आर्मी? (Russia Ukraine War Continues For 11 Days)
- फिनलैंड के शासकों को पता था कि रूस से उनकी टक्कर जारी रहेगी। इसके लिए 1918 से ही फिनलैंड ने युवाओं के लिए मिलिट्री ट्रेनिंग जरूरी कर दी थी। यह ट्रेनिंग कुछ माह की होती है। इस तरह फिनलैंड ने आम लोगों की गुरिल्ला आर्मी तैयार की।
- 1939 में जब सोवियत संघ ने जर्मनी पर अटैक करने के लिए फिनलैंड से होकर जाने वाले रास्ते के इस्तेमाल की परमीशन मांगी, तो फिनलैंड ने इनकार कर दिया। रूस ने फिनलैंड पर अटैक कर दिया। लेकिन फिनलैंड पूरी तरह तैयार था। एक छोटा सा देश जिसकी सेना सोवियत संघ के सामने मुट्ठी भर से ज्यादा नहीं थी, उसने अपने आम लोगों के बल पर रूस को मात दी।
कैसे फिनलैंड ने सोवियत संघ की रेड आर्मी से टक्कर ली?
- कहते हैं कि जब युद्ध शुरू हुआ था तब उस समय रूस के पास करीब सवा लाख सैनिक थे, जिसे बढ़ाकर रूस ने सात लाख 60 हजार कर दिया था। वहीं फिनलैंड की आर्मी केवल तीन लाख सैनिकों की थी, जो बमुश्किल तीन लाख 40 हजार तक पहुंच सकी थी। रूस के पास शुरू में 2,514 टैंक थे, जिसे बढ़ाकर 6,500 तक कर दिया गया था। वहीं फिनलैंड के पास महज 32 टैंक थे। रूस के पास 3,880 लड़ाकू एयरक्राफ्ट थे जबकि फिनलैंड के पास केवल 114 जेट विमान थे।
- फिनलैंड के पास करीब एक लाख 80 हजार आम लोगों की गुरिल्ला आर्मी थी। हल्के हथियार होने के बावजूद फिनलैंड के लोग सोवियत आर्मी पर भारी पड़े थे। वजह ये थी कि इस सेना ने पहले से पोजिशन लेकर अटैकिंग मोड में काम किया। सोवियत सेना की तैयारी आर्मी से लड़ने की थी। उसे इस गुरिल्ला आर्मी की ताकत का अंदाजा नहीं था। इस तरह फिनलैंड ने तीन महीने तक सोवियत संघ की रेड आर्मी से टक्कर ली। इसके बाद सोवियत संघ और फिनलैंड के बीच समझौता हुआ और युद्ध खत्म हो सका।
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क्या यूक्रेन में रूस के अटैक का खतरा कई साल से था?
- अमेरिकन मिलिट्री स्ट्रैटजिस्ट अनुसार यूक्रेन में रूस के अटैक का खतरा कई साल से था। जेलेंस्की अगर इसकी तैयारी करते तो ज्यादा नुकसान नहीं होता। उन्हें फिनलैंड के मॉडल को अपनाना चाहिए था। वहां आम नागरिक के एडल्ट होने के बाद उसे एक शॉर्ट मगर इंटेंस मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाती है।
- हल्के हथियार चलाने और युद्ध के समय अगर शत्रु सेना देश में घुस जाए तो उसके खिलाफ लड़ने की ट्रेनिंग दी जाती है। फिनलैंड में यह सेना रिजर्व आर्मी की तरह हमेशा तैयार रहती है। युद्ध की रणनीति से वे बिल्कुल बेखबर नहीं होते। यूक्रेन में इसके बिल्कुल विपरीत लोग देश की खातिर मर मिटने को तैयार तो हैं, लेकिन वे युद्ध रणनीति से बिल्कुल अनजान हैं।
आखिर कहां चूक हुई यूक्रेन राष्ट्रपति की?
- रूस के खिलाफ यूक्रेन की जंग 1939 के फिनलैंड-सोवियत संघ युद्ध से कम नहीं कही जा सकती है। इस युद्ध में भी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने आम जनता से हथियार उठाने की अपील की और लगभग दो लाख लोग सिविल डिफेंस से जुड़ चुके हैं। जेलेंस्की को विदेशी नागरिकों से भी यूक्रेन के लिए लड़ने की अपील करनी पड़ी।
- कई विदेशी नागरिक भी गुरिल्ला आर्मी में शामिल भी हो चुके हैं। तीन मार्च को घमासान लड़ाई में बेलारूस के एक नागरिक लितविन की मौत भी हो चुकी है। फिनलैंड और यूक्रेन की तैयारी में यही फर्क है कि यूक्रेन ने फिनलैंड जैसी तैयारी नहीं की है, जबकि यूक्रेन को भी कई सालों से पता था कि वह रूस की आंखों में खटक रहा है।
Russia Ukraine War Continues For 11 Days
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