इंडिया न्यूज, नई दिल्ली।
Who Defeated Prithviraj Chauhan : जैसा की आप जानते ही हैं कि भारत के इतिहास में यदि वीरों की बात करें तो पृथ्वीराज चौहान का नाम सबसे पहले आता है। पृथ्वीराज चौहान की वीरता से हर कोई प्रभावित था। बड़े बड़े राजा भी उनकी वीरता को लोहा मानते थे लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा भी वीर योद्धा था जिसने पृथ्वीराज चौहान को भी अपने आगे सिर झुकाने पर मजबूर कर दिया था। जी हां उस योद्धा का नाम है आल्हा। आईए जानते हैं आल्हा के बारे में।
आल्हा मध्यभारत में स्थित ऐतिहासिक बुन्देलखण्ड के सेनापति थे और अपनी वीरता के लिए विख्यात थे। आल्हा के छोटे भाई का नाम ऊदल था और वह भी वीरता में अपने भाई से भी अधिक वीर था। जगनेर के राजा जगनिक ने आल्ह-खण्ड नामक एक काव्य रचा था उसमें इन वीरों की 52 लड़ाइयों का वर्णन किया गया है।
ऐसा कहा जाता है कि ऊदल ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया था। युद्ध करते हुए ऊदल वीरगति को प्राप्त हुए था। जैसे ही आल्हा को अपने छोटे भाई की वीरगति की खबर सुनी तो वह अपना आपा खो बैठे और पृथ्वीराज चौहान की सेना पर मौत बनकर टूट पड़े।
बता दें कि 1182 ई० में पृथ्वीराज चौहान और आल्हा के बीच युद्ध हुआ था। जब आल्हा को अपने छोटे भाई ऊदल की पृथ्वीराज चौहान के द्वारा मौत का पता चला उनकी आंखों से आग बरसने लगी और उपके सामने जो भी आया मारा गया।
एक घंटे के भीषण युद्ध के बाद पृथ्वीराज और आल्हा आमने-सामने हुए। दोनों में भीषण युद्ध हुआ। पृथ्वीराज चौहान बुरी तरह घायल हुए आल्हा के गुरु गोरखनाथ के कहने पर आल्हा ने पृथ्वीराज चौहान को जीवनदान दे दिया। इसके बाद बुन्देलखण्ड के महा योद्धा आल्हा ने नाथ पन्थ स्वीकार कर लिया।
आल्हा चन्देल राजा परमर्दिदेव यानि परमल के रूप में भी जाना जाता है। आल्हा और ऊदल, चन्देल राजा परमल के सेनापति दसराज के पुत्र थे। वे बनाफर वंश के थे, जो कि चन्द्रवंशी क्षत्रिय वंश है। मध्य-काल में आल्हा-ऊदल की गाथा क्षत्रिय शौर्य का प्रतीक दशार्ती है।
पंडित ललिता प्रसाद मिश्र ने अपने ग्रन्थ आल्हखण्ड की भूमिका में आल्हा को युधिष्ठिर और ऊदल को भीम का साक्षात अवतार बताते हुए लिखा है कि यह दोनों वीर अवतारी होने के कारण अतुल पराक्रमी थे। ये प्राय: 12वीं विक्रमीय शताब्दी में पैदा हुए और 13वीं शताब्दी के पुर्वार्द्ध तक अमानुषी पराक्रम दिखाते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
ऐसा प्रचलित है की ऊदल की पृथ्वीराज चौहान द्वारा हत्या के पश्चात आल्हा ने संन्यास ले लिया और जो आज तक अमर है। वहीं पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र संजम भी महोबा की इसी लड़ाई में आल्हा उदल के सेनापति बलभद्र तिवारी जो कान्यकुब्ज और कश्यप गोत्र के थे उनके हाथों मृत्यु हुई थी।
उस समय की अलौकिक वीरगाथाओं को तब से अब तक गाया जा रहा है। आज भी कायर तक उन्हें (आल्हा) सुनकर जोश में भर जाते हैं। बता दें कि यूरोपीय महायुद्ध में सैनिकों को रणमत्त करने के लिए ब्रिटिश गवर्नमेण्ट को भी इस (आल्हखण्ड) का सहारा लेना पड़ा था। Who Defeated Prithviraj Chauhan
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