Bihar Mahagathbandhan: दो दिन पहले दिल्ली में वे वायनाड से सांसद राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ पप्पू यादव और कन्हैया कुमार की एक तस्वीर सामने आई थी. इस तस्वीर ने बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन की काफी कहानी बयां कर दी थी. अब इस तस्वीर का असर भी दिखने लगा है. बिहार कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के साथ कन्हैया और पप्पू की यह तस्वीर देखकर तेजस्वी यादव की नींद हराम हो गई है. दरअसल, महागठबंधन में सीट बंटवारे के मुद्दे पर राहुल गांधी ने इन दोनों नेताओं को अहमियत देकर एक बड़ा मैसेज दिया है. राहुल से कन्हैया की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं. लेकिन कन्हैया जितने राहुल के करीब हैं, उतने ही तेजस्वी यादव से दूर भी हैं. यही हाल पप्पू यादव का भी है. हालांकि, पप्पू ने हाल ही में वोटर अधिकार यात्रा के दरम्यान तेजस्वी यादव को जननायक बताकर इस दूरी को कम करने की कोशिश की थी. लेकिन लगता है पप्पू और तेजस्वी के मन तो मिले, हालाँकि दिल नहीं मिल पाए. ऐसे में अब सवाल उठने लगा है कि क्या कन्हैया और पप्पू मिलकर महागठबंधन में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले पर तेजस्वी यादव का खेल बिगाड़ेंगे?
बिहार की राजनीति में इन दिनों सबसे बड़ी चर्चा महागठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर है. एक तरफ जहाँ राजद अपने हिस्से में ज़्यादा से ज़्यादा सीटें पाने को आतुर है, वहीं कांग्रेस भी ज़्यादा से ज़्यादा सीटों की माँग कर रही है. ऐसे में राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चा ज़ोरों पर है कि पटना में राहुल गांधी के साथ मंच पर कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को जगह न देने वाले तेजस्वी यादव की राय अब दिल्ली में सीट बंटवारे को लेकर अहम होती जा रही है. क्या यह महज़ एक इत्तेफ़ाक है या कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति जिसके तहत वह तेजस्वी को दरकिनार करके खुद को मज़बूत करना चाहती है?
‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने बिहार में कांग्रेस के प्रति लोगों में एक नई चेतना जगाई है. कन्हैया कुमार की ओजस्वी भाषण शैली और पप्पू यादव का ज़मीनी जुड़ाव इस यात्रा को सफल बनाने में अहम साबित हुआ है. इस यात्रा के बाद कांग्रेस को यह एहसास हो गया है कि कन्हैया और पप्पू जनता को अपने पक्ष में करने की क्षमता रखते हैं. कन्हैया कुमार राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं. वे कांग्रेस की नई पीढ़ी के ऐसे नेता हैं, जो भाजपा को सीधे तौर पर वैचारिक चुनौती दे सकते हैं. राहुल गांधी के लिए कन्हैया ऐसे नेता हैं जो सिर्फ़ जाति की नहीं, बल्कि मुद्दों की बात करते हैं.
बता दें, पप्पू यादव भले ही पूर्णिया से निर्दलीय सांसद हों, लेकिन कोसी क्षेत्र में उनका अपना मज़बूत जनाधार है. कांग्रेस समझ गई है कि अगर उसे बिहार में अपनी खोई ज़मीन वापस हासिल करनी है, तो उसे ऐसे नेताओं का सहारा लेना होगा जिनकी जनता के बीच पैठ हो. ऐसे में अब तक, चाहे 2020 का विधानसभा चुनाव हो या 2024 का लोकसभा चुनाव, सीटों के बंटवारे पर राजद अपनी बात मनवाता रहा है. लेकिन कन्हैया और पप्पू के आने के बाद कांग्रेस ज़्यादा सीटों की माँग कर रही है. अगर तेजस्वी कांग्रेस की माँग ठुकरा देते हैं, तो महागठबंधन में फूट पड़ सकती है, जिसका सीधा फ़ायदा एनडीए को होगा.
कन्हैया और पप्पू का बढ़ता कद सीधे तौर पर तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल खड़े करता है. यह दर्शाता है कि कांग्रेस तेजस्वी के नेतृत्व को उतना मज़बूत नहीं मानती जितना वह दावा करते हैं. यह स्थिति तेजस्वी को न सिर्फ़ राजनीतिक रूप से, बल्कि मानसिक रूप से भी कमज़ोर कर सकती है. हालाँकि, यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि तेजस्वी यादव हाशिये पर चले गए हैं, लेकिन यह ज़रूर कहा जा सकता है कि उनका ‘एकतरफ़ा शासन’ ख़तरे में है. अब उन्हें न सिर्फ़ अपने विरोधियों से, बल्कि अपने ही गठबंधन के भीतर उभरे नए सत्ता केंद्र से भी लड़ना है.
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