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खालिस्तान… पंजाब… और 1984 के दंगे… इन सभी शब्दों को सुन कर जिस शख्स का नाम याद आता है वो है ‘भिंडरावाला’! लेकिन हम इस समय जरनैल सिंह भिंडरावाला की बात क्यों कर रहे हैं पहले ये भी जानना जरूरी है। पिछले कुछ दिनों में पंजाब में ‘खालिस्तान’ को लेकर मांग एक बार फिर शुरू हो गई है। दरअसल अमृतपाल सिंह नाम के एक द्वारा ये मांग बार-बार रखी जा रही है।
अमृतपाल सिंह जो कि ‘पंजाब दे वारिस’ का चीफ है। वही ‘पंजाब दे वारिस’ जो कार्यकर्ता दीप सिद्धू द्वारा स्थापित संगठन है। अमृतपाल के बारे में अगर बात की जाए तो एक ऐसा शख्स जो हाल ही में दुबई से पंजाब पहुंचा और देखते ही देखते लाइमलाइट में आ गया। अब सवाल ये है कि क्या अमृतपाल कोई धर्मगुरु है? इसका सीधा जवाब यही होगा- नहीं। अमृतपाल दुबई से आया हुआ एक आम व्यक्ति ही है जो इस समय किसी अमृतधारी सिक्ख के भेस में नीली पगड़ी पहने और सफेद कुर्ते दिखाई दे रहा है। साथ में कुछ लोग जो अपने हाथ में बंदूक लिए दिखाई पड़ रहे हैं। कट्टर भाषण देता है और लोगों को खालिस्तान की मांग को लेकर उकसाने की भी कोशिश कर रहा है।
अमृतपाल सिंह अपनी खालिस्तान की मांग को अपने अधिकार के रूप में देखता है। उसका मानना है कि ये किसी भी व्यक्ति के लिए लोकतांत्रिक अधिकार है। इसके आगे उसने अपने बयान में ये भी कहा कि अमित शाह बोलते हैं कि वो‘खालिस्तान मूवमेंट’ को कुचल देंगे तो पहले वे यह याद कर लें कि इस तरह के दावे करने वाली इंदिरा गांधी का क्या हश्र हुआ था। अब ऐसे में विचार करने वाली बात ये होगी कि 1978 से 1993 का इतिहास कही दोबारा रिपीट तो नहीं होने वाला है।
इतिहास की बात कर रहे हैं तो ये भी जान लेते हैं कि खालिस्तान को लेकर मांग कब और कैसे उठी थी। बात साल 1947 की है… इस समय अंग्रेज भारत के विभाजन के बारे में जब योजना बना रहे थे, तभी कुछ सिक्ख नेताओं ने भी अलग देश खालिस्तान बनाने की मांग रखी थी। हालांकि, पाकिस्तान तो बन गया लेकिन खालिस्तान को दर्जा न मिल पाया। इसे लेकर आजादी के बाद भी कई हिंसक आंदोलन हुए। खालिस्तान का नाम आते है जरनैल सिंह भिंडरावाले का नाम हर किसी की जुबान पर आ जाता है। वो बात अलग है कि कुछ लोगों का ये भी मानना है कि भिंडरावाले ने भी कभी खालिस्तान की मांग ही नहीं की।
खालिस्तान आंदोलन को लेकर 80 के दशक में गर्मागर्मी का माहौल था। इस दौरान पंजाब में जरनैल सिंह भिंडरावाला खालिस्तान मिशन को लेकर सबसे मजबूत नेता के रूप में सामने आया। हालांकि, पंजाब में उस समय में सबसे ज्यादा क्राइम और दहशत का माहौल भी हुआ करता था। ये वही समय था जब भिंडरावाले ने हरमिंदर साहिब को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया था। गुरुदारा साहिब में हथियार तक रखे गए। धीरे-धीरे ये आंदोलन उग्र होता गया और फिर सरकार ने पहले ‘ऑपरेशन सनडाउन’ बनाकर काम किया, इसमें करीब 200 कमांडोज को ट्रेनिंग दी गई। गुरुद्वारा साहिब में आम लोगों की जानमाल को नुकसान न हो इसे ध्यान में रखते हुए बाद में आपरेशन ब्लू स्टार को अंजाम देकर सैन्य कार्रवाई की गई और आंदोलन को हमेशा के लिए समाप्त किया गया।
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