इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
बीते कल महाराष्ट्र में कोल्हापुर जिले के एक गांव की पंचायत ने गांव में रहने वाली किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है तो अंतिम संस्कार के बाद महिला द्वारा अपनाई जाने वाली उन प्रथाओं (चूड़ियां तोड़ना, सिंदूर हटाना, मंगलसूत्र मतलब की सुहाग की सभी निशानियों को हटाने) पर प्रतिबंध लगाया है। बताया जा रहा है इसका प्रस्ताव बीते दिनों लाया गया था। तो चलिए जानते हैं पंचायत को ऐसा क्यों लेना पड़ा फैसला, क्या है इसके पीछे की वजह, अन्य देशों में क्या है विधवाओं को लेकर रिवाज।
देश में पति के मरने के बाद महिला के किसी भी सामाजिक और धार्मिक कार्यक्रम में जाने पर रोक लगा दी जाती है। उनके रहन-सहन और खान-पान पर भी कई तरह की पाबंदी लगाई जाती है। इन्हीं सब चीजों को देखते हुए कोल्हापुर जिले के शिरोल तालुका में हेरवाड़ ग्राम पंचायत ने विधवा के मंगलसूत्र, पैर की अंगूठी (बिछिया) हटाने, सिंदूर को पोंछने, चूड़ी तोड़ने जैसे रिवाजों पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव पारित किया। हेरवाड़ ग्राम पंचायत में ग्राम विकास अधिकारी पल्लवी को लेकर और सरपंच सुरगोंडा पाटिल की पहल पर ग्राम सभा ने इस प्रस्ताव का स्वीकार किया।
इस मामले में पाटिल ने बताया कि सोलापुर की करमाला तहसील में महात्मा फुले समाज सेवा मंडल के संस्थापक अध्यक्ष प्रमोद जिंजादे ने यह पहल की है। उन्होंने कहा कि महिलाओं को इस प्रथाओं से गुजरना पड़ता है, जो बहुत अपमानजनक होता है। पाटिल का कहना है कि हमें इस प्रस्ताव पर बहुत गर्व महसूस हो रहा है। क्योंकि इसने हेरवाड़ को अन्य ग्राम पंचायतों के लिए एक मिसाल के तौर पर पेश किया।
सरपंच पाटिल ने कहा कोरोना महामारी की पहली लहर में एक सहयोगी की दिल का दौरा पड़ने से मौत गई। उनके अंतिम संस्कार के दौरान देखा कि कैसे उनकी पत्नी को चूड़ियां तोड़ने, मंगलसूत्र हटाने और सिंदूर पोंछने के लिए मजबूर किया जा रहा था। इससे महिला का दुख और अधिक बढ़ गया। जोकि दृश्य हृदयविदारक था।
जिंजादे ने बताया कि इस तरह की प्रथा को रोकने का फैसला करते हुए उन्होंने इस पर एक पोस्ट लिखने के बाद गांव के नेताओं और पंचायतों से संपर्क किया और कई विधवाओं से इस पर अच्छी प्रतिक्रिया मिलने पर उन्हें खुशी हुई। उन्होंने ने कहा अपनी ओर से एक उदाहरण स्थापित करने के लिए, मैंने स्टाम्प पेपर पर घोषणा की कि मेरी मृत्यु के बाद ”मेरी पत्नी को इस प्रथा के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। दो दर्जन से अधिक पुरुषों ने मेरी इस घोषणा का समर्थन किया। तब हेरवाड़ ग्राम पंचायत मेरे पास पहुंची और कहा कि वे इस पर एक प्रस्ताव पारित करेंगे।
महिला स्वयं सहायता की एक कार्यकर्ता का कहना है कि विधवा होने के बावजूद वे समाज में स्वतंत्र रूप से गहने पहनकर घूमती हैं। उन्होंने बताया हमने राज्य के मंत्री राजेंद्र यद्राकर को विधवाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें विधवा प्रथा पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने की मांग की गई है।
भारत और चीन: लूम्बा फाउंडेशन की 2017 में आई ‘वर्ल्ड विडोज रिपोर्ट’ के अनुसार दुनिया भर में करीब 25 करोड़ विधवाएं हैं। इनमें से हर सातवीं विधवा काफी गरीबी की हालत में में रह रही हैं। दुनिया की एक तिहाई विधवाओं की आबादी भारत और चीन में है। चीन और भारत दोनों में करीब साढ़े चार करोड़ विधवा महिलाएं हैं। 2020 से 2015 के बीच पति की बीमारी या युद्ध की वजह से होने वाली मौत से विधवाओं की आबादी में 9 फीसदी का इजाफा हुआ। इस दौरान दुनिया में सबसे तेज 24 फीसदी की दर से मिडिल ईस्ट और नॉर्थ अफ्रीका में विधवाओं की आबादी बढ़ी।
संपत्ति जब्त करने का नियम: भारत, बांग्लादेश, बोत्सावाना, अंगोला, आईवरी कोस्ट, घाना, केन्या, नाइजीरिया, तंजानिया, जिम्बॉब्वे जैसे कई देशों में पति की मौत के बाद विधवाओं की संपत्ति को जब्त करने का रिवाज है। इस दौरान विधवाओं को घर से बाहर कर दिया जाता है। उनकी संपत्ति को उनके ससुराल पक्ष के लोग अपने अधिकार में ले लेते हैं।
इन देशों में हुआ अध्ययन: इस दौरान 17 विकसित और विकासशील देशों की विधवाओं की स्थिति पर अध्ययन किया। इसमें इंडोनेशिया, यूक्रेन, रूस, अर्जेंटीना, फ्रांस, अमेरिका, अजरबैजान में विधवाओं की हालत सबसे खराब है। इनके मुकाबले भारत में विधवाओं की स्थिति बेहतर थी। विधवाओं के साथ सबसे अच्छे सलूक के मामले में तुर्की, साउथ कोरिया, नाइजीरिया, मिस्र और मेक्सिको का नाम है।
अफ्रीका: अफ्रीका के कई देशों में विधवाओं की शुद्धि के लिए अजीब प्रक्रिया अपनाई जाती है। इसमें विधवाओं को अपने पति की लाश के पैर धोकर पानी पीना पड़ता है। विधवाओं को अपने ससुराल में किसी संबंधी के साथ या किसी अजनबी के साथ संबंध बनाने पड़ते हैं। इसके बाद ही इन्हें शुद्ध माना जाता है। इन महिलाओं के अंदर से इनके पति की आत्मा को निकालने के लिए भी तंत्र-मंत्र और अमानवीय प्रक्रियाओं का सहारा लेना पड़ता है।
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