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भारत vs India: 70 साल बाद भी ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने को तैयार नहीं…, आखिर “प्रेसिडेंट ऑफ़ रिपब्लिक ऑफ़ भारत” पर क्यों भड़का विपक्ष!

India News (इंडिया न्यूज़), भारत vs India, दिल्ली: आज़ादी के सतहत्तर वर्ष उपरांत भी भारत के कुछ नेता अंग्रेज़ी और अंग्रेजों की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने को तैयार ही नहीं हैं। वह आज भी मानसिक ग़ुलामी से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। जबकि आप सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अन्यानेक अवसरों पर […]

BY: Mudit Goswami • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज़), भारत vs India, दिल्ली: आज़ादी के सतहत्तर वर्ष उपरांत भी भारत के कुछ नेता अंग्रेज़ी और अंग्रेजों की ग़ुलामी की बेड़ियों को तोड़ने को तैयार ही नहीं हैं। वह आज भी मानसिक ग़ुलामी से बाहर आने को तैयार नहीं हैं। जबकि आप सभी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अन्यानेक अवसरों पर कहते सुना है की हमें ग़ुलामी की हर निशानी को मिटाना है, वह भारत और भारतीयता में अटूट विश्वास रखते हैं।

निमंत्रण पर लिखा “प्रेसिडेंट ऑफ़ रिपब्लिक ऑफ़ भारत”

आज G-20 के दौरान एक रात्रि भोज का निमंत्रण राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू की और से भेजा गया जिसमें “प्रेसिडेंट ऑफ़ रिपब्लिक ऑफ़ भारत” लिखा गया और इसे लेकर कांग्रेस और विपक्ष के बहुत सारे नेताओं ने आपत्ति दर्ज कराते हुए एक अजब ही बवाल खड़ा कर दिया है। कोई कह रहा है इसे लेकर संसद के विशेष सत्र में हंगामा करेंगे, कोई कह रहा है इस सरकार को संविधान का ज्ञान ही नहीं है, संविधान के साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं, कोई कह रहा है संविधान में इंडिया शब्द है, भारत है ही नहीं, कोई कह रहा है विपक्ष ने I.N.D.I.A. नाम रखा है इससे सरकार डर गई है और इंडिया का नाम भारत कर रही है। ना जाने कितनी तर्कहीन बातें हो रही हैं और सरकार को बेवजह घेरने का प्रयास हो रहा है जबकि देश में जी-20 में भाग लेने वाले देशों के प्रतिनिधि भारत में पहुँचने लगे हैं। विदेशी मेहमानों को क्या दिखाना चाह रहें है की हम ग़ुलामी में ही जीना चाहते हैं हमें भारत और भारतीयता से ही नफ़रत है।

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भारत vs India

इन अज्ञानीयों को ना भारत के इतिहास की जानकारी है, ना संविधान की और ना ही भारतीय संस्कृति और मूल्यों की। बस तर्क, वितर्क और कुतर्क करने में ही रुचि है जिससे भारतवासियों को लटकाया, भटकाया और अटकाया जा सके।

इंडिया, ग़ुलामी संस्कृति से उपजा हुआ नाम

इंडिया, भारत का भारतीयों द्वारा दिया हुआ नाम नहीं है, ग़ुलामी संस्कृति से उपजा हुआ नाम है हमारा नाम भारत और हिंदुस्तान ही था अब यदि इसको पुनर्स्थापित किया जा रहा है तो इतना हंगामा क्यूँ खड़ा किया जा रहा है।
हमारे पूजा पाठ में हमेशा कहा जाता है जंबूद्वीपे, भारतखंडे, देशान्त्रते, अमुकनगरे , अमुक स्थाने और फिर नक्षत्र और गोत्र का नाम आता है। जंबू द्वीपे में भारतवर्ष, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत, भूटान, म्यांमार, श्री लंका, और मालद्वीप आते थे जो अखंड भारत हुआ करता था। इसका वर्णन मार्कण्डेय पुराण और विष्णु पुराण में भी आता है और रामायण में भी इसका ज़िक्र है। यदि वर्तमान मोदी सरकार भारत को उद्धृत कर रही है तो यह स्वागत योग्य है। जो इसे संविधान इतर बता रहें है उन्हें शायद ज्ञात ही नहीं संविधान को भारत का संविधान ही कहा जाता है। जहां तक I.N.D.I.A. विपक्षी गठबंधन से डर कर भारत नाम रखने का विषय है तो वो शायद मोदी को जानते ही नहीं डर मोदी का नाम हो ही नहीं सकता।

जन गण मन के रचयिता महाकवि रवींद्र नाथ टैगोर ने भी राष्ट्र गीत लिखते हुए “भारत” की ही कल्पना की थी और लिखा था “ जन गण मन अधिनायक जय है, भारत भाग्य विधाता” उन्होंने भी नहीं लिखा इंडिया भाग्य विधाता।
भारत की आत्मा गाँव में बस्ती है और आज भी वहाँ कोई भी इंडिया नहीं कहता भारत या हिंदुस्तान ही कहता है।

1970 में एक पिक्चर आयी थी पूरब और पश्चिम जिसमें एक गीत इंदीवर ने लिखा था , जिसे महेंद्र कपूर ने गाया था और मनोज कुमार पर फ़िल्माया गया था जिसमें भारत का वर्णन किया गया है और भारत शब्द का विरोध करने वालों को इसमें सारे उत्तर मिल जाएँगे। उद्धृत करता हूँ:
जब जीरो दिया मेरे भारत ने
भारत ने मेरे भारत ने
दुनिया को तब गिनती आयी
तारों की भाषा भारत ने

दुनिया को पहले सिखलायी
देता ना दशमलव भारत तो
यूँ चाँद पे जाना मुश्किल था

धरती और चाँद की दूरी का
अंदाजा लगाना मुश्किल था

सभ्यता जहाँ पहले आयी
पहले जनमी है जहाँ पे कला
अपना भारत वो भारत है
जिसके पीछे संसार चला

संसार चला और आगे बढ़ा
यूँ आगे बढ़ा, बढ़ता ही गया
भगवान करे ये और बढ़े
बढ़ता ही रहे और फूले फले

होहो होहो हो हो

है प्रीत जहाँ की रीत सदा
है प्रीत जहाँ की रीत सदा
है प्रीत जहाँ की रीत सदा
मैं गीत वहाँ के गाता हूँ
भारत का रहने वाला हूँ
भारत की बात सुनाता हूँ
है प्रीत जहाँ की रीत सदा

ये भारत है, इसे भारत ही रहने दो इंडिया बनाकर इसका पश्चिमीकरण अपनी संस्कृति, मूल्यों और संस्कारों को मत खोओ।

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