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India News (इंडिया न्यूज), Germany Economy 2024 : यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है। जर्मनी के हालात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि 2008 की मंदी के दौरान के मुकाबले अब हालात बदतर हैं। कच्चे माल, खास तौर पर लिथियम पर बढ़ती निर्भरता और ऑर्डर की कमी के कारण अर्थव्यवस्था कमजोर हो रही है। जर्मनी की अर्थव्यवस्था विदेशी संसाधनों, खास तौर पर चीनी ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग पर निर्भर है। जो खतरे का संकेत है। इसके अलावा म्यूनिख स्थित इफो इंस्टीट्यूट ने विभिन्न क्षेत्रों में ऑर्डर में भारी गिरावट दर्ज की है। इफो के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में 41.5 फीसदी जर्मन कंपनियों ने ऑर्डर में कमी दर्ज की है। जुलाई में यह आंकड़ा 39.4 फीसदी था।
यह आंकड़ा कोविड-19 महामारी के दौरान किसी भी समय से ज्यादा है और 2009 के वित्तीय संकट के बाद सबसे खराब है। रिपोर्ट के मुताबिक, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का करीब आधा हिस्सा (47.7 फीसदी) ऑर्डर की कमी से जूझ रहा है, जिसमें से बेसिक मेटल उत्पादन सेक्टर में करीब 68.3 फीसदी और मेटल उत्पादों में 59.9 फीसदी ऑर्डर में कमी दर्ज की गई है। वित्त मंत्री को पद से हटाना महंगा साबित हुआ!
2021 में जर्मनी में तीन पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई। इसमें सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी और ग्रीन पार्टी शामिल थी। सरकार बनते ही कयास लगने लगे कि यह विपरीत विचारधाराओं वाली अप्रत्याशित तिकड़ी है। वहीं, ट्रंप के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद जर्मन चांसलर ने वित्त मंत्री क्रिश्चियन लिंडनर को बर्खास्त कर दिया, जो फ्री डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रमुख थे। इस फैसले के बाद स्थिति और भी खराब हो गई। इसके बाद 6 नवंबर को गठबंधन खत्म हो गया। जर्मनी के प्रमुख उद्योग संघ फेडरेशन ऑफ जर्मन इंडस्ट्रीज (BDI) ने चेतावनी दी कि कच्चे माल, खासकर लिथियम के लिए जर्मनी की आयात पर निर्भरता बढ़ रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जर्मनी को किसी एक देश पर अपनी निर्भरता कम करनी चाहिए। इसके लिए उसे दूसरे देशों से कच्चा माल आयात करने के विकल्प तलाशने चाहिए। इसके अलावा घरेलू उत्पादन और प्रसंस्करण क्षमताओं को भी मजबूत करना होगा। हाल ही में जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़ ने भारत का दौरा किया, जिसे भारत को चीन के विकल्प के रूप में तैयार करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।
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