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IndiaNews (इंडिया न्यूज), Iran-Israel War: इजरायल और ईरान के बीच जंग की शुरुआत हो चुकी है। दुनिया को अब यह डर सताने लगा है कि इजरायल कभी भी ईरानी हमले के खिलाफ जवाबी कार्रवाई कर सकता है और फिर यह पूरा इलाका युद्धक्षेत्र में तब्दील हो जाएगा। ईरान ने रविवार को इजरायल के खिलाफ बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन से हमला किया था।
हालांकि, इजरायल मिसाइलों को ध्वस्त करने में कामयाब रहा और इस तरह उसने ईरानी अटैक को नाकाम कर दिया। इस बीच इजरायल पर ईरान के हमले में सबसे अधिक चौंकाने वाली बात यह रही कि आखिर मुस्लिम देश होकर भी जॉर्डन ने ईरान को छोड़कर अपने दुश्मन देश इजरायल का साथ क्यों दिया? इसके पीछे का कारण क्या था? आइए क्या है पूरा मामला हम आपको इस खबर में बताते हैं।
दरअसल, ईरान ने एक अप्रत्याशित कदम उठाते हुए रविवार तड़के इजराइल पर हमला कर दिया और उस पर 170 ड्रोन, 120 से अधिक बैलेस्टिक मिसाइल तथा 30 क्रूज मिसाइल दागीं। ईरान के इस हमले ने पश्चिम एशिया को क्षेत्रव्यापी युद्ध के करीब धकेल दिया है। इजराइली सेना का कहना है कि ईरान ने कई ड्रोन, क्रूज मिसाइल और बैलेस्टिक मिसाइल दागीं, जिनमें से अधिकतर को इजराइल की सीमाओं के बाहर नष्ट कर दिया गया। सीरिया में 1 अप्रैल को हवाई हमले में ईरानी वाणिज्य दूतावास में दो ईरानी जनरल के मारे जाने के बाद ईरान ने बदला लेने का प्रण किया था। ईरान ने इजरायल पर आरोप लगाया लेकिन अभी तक इजरायल की तरफ से इस हमले की पुष्टि नहीं की गई की हमला उसने किया था या नहीं।
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जब ईरान ने इजरायल पर ड्रोन, बैलेस्टिक और क्रूज मिसाइलों से हमला किया, तब केवल अमेरिका ही नहीं, बल्कि जॉर्डन ने भी दर्जन ईरानी ड्रोनों-मिसाइलों को मार गिराया था। अमेरिका की मानें तो 70 से अधिक ड्रोन और तीन बैलिस्टिक मिसाइलों को अमेरिकी नौसेना के जहाजों और सैन्य विमानों द्वारा रोक दिया गया था। अब सवाल उठता है कि अमेरिका तो इजरायल का साथ देगा, यह स्वाभाविक सी बात थी, मगर मुस्लिम देश होकर जॉर्डन ने इजरायल का साथ क्यों दिया और उसने क्यों ईरान के मिसाइलों को तबाह किया? आखिर गाजा में इजरायल और बेंजामिन नेतन्याहू की आलोचना करने वाले जॉर्डन इजरायल-ईरान जंग में क्यों शामिल हुआ? चलि जानते हैं क्या थी वजह।
अब इस पर जॉर्डन ने अपने आधिकारिक बयान दिया है और ईरानी मिसाइलों को तबाह करने की घटना का बचाव किया है। जॉर्डन ने कहा कि उसने आत्मरक्षा के तहत ईरानी ड्रोन को रोका, न कि इजराइल की मदद करने के लिए। वो अपने देश को खतरे से बचा रहा था न कि किसी और देश की मदद। फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले जॉर्डन के किंग अब्दुल्ला द्वितीय की प्रतिक्रिया को जॉर्डन द्वारा एक संतुलनकारी कार्य के रूप में देखा जाता है, जो ईरान के सहयोगी हमास के खिलाफ इजरायल के युद्ध में फंसना नहीं चाहता है। बता दें कि यह पहली बार है जब ईरान ने देश की 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद शुरू हुई दशकों की दुश्मनी के बाद इजराइल पर सीधे तौर पर हमला किया है। अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र , फ्रांस, ब्रिटेन आदि देशों ने इजराइल पर ईरान के हमले की निंदा की है और इस हमले के बाद से इजरायल के साथ ये देश खड़े दिखाई दे रहे हैं।
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जॉर्डन-इजरायल के संबंध
अगर जॉर्डन और इजरायल के रिश्तों की बात की जाए तो दोनों दुश्मन देश रहे हैं। इन दोनों देशों की ज्यादा दोस्ती देखने को नहीं मिलती, इनकी विचारधाराएं अलग हैं। इतिहास के समय से ही देखें तो दोनों देशों की कुछ खास अच्छे संबंध देखने को नहीं मिलते। हालांकि, 1984 में जॉर्डन और इजरायल ने शांति संधि पर हस्ताक्षर किया था, मगर उससे पहले दोनों देश 1948 और 1973 के बीच चार युद्ध लड़ चुके हैं। इतना ही नहीं, हमास-इजरायल जंग में जॉर्डन ने इजरायल की निंदा की थी। वहीं, इजरायल-ईरान मामले में इजरायल ने जॉर्डन की भागीदारी का स्वागत किया है, जबकि फिलिस्तीन ने उसकी भूमिका की निंदा की है। जॉर्डन की आबादी में अधिकतर फिलिस्तीनी शामिल हैं। जॉर्डन में लगभग 30 लाख फ़िलिस्तीनी रहते हैं।
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