संबंधित खबरें
कुवैत में पीएम मोदी को ऐसा क्या मिला जिससे दुश्मनों की उड़ी होश, 20वीं बार कर दिखाया ऐसा कारनामा..हर तरफ हो रही है चर्चा
दुनिया की सबसे महंगी करेंसी डॉलर नहीं, इस इस्लामिक देश की मुद्रा का पूरी दुनिया में बजता है डंका, वजह जान फटी रह जाएंगी आंखें
PM Modi के मजबूत नेतृत्व के सामने झुकी अमेरिका, बदलना पड़ा ये कानून, मुंह ताकते रह गए जिनपिंग-शहबाज
न अमेरिका, न यूरोप, 1 टीवी शो की वजह से रूस-यूक्रेन के बीच छिड़ गई जंग, वो एक्टर जो आगे चलकर बना राष्ट्रपति और बर्बाद कर दिया अपना देश
दुश्मनों के बदले अपने ही लड़ाकू विमान पर दाग दिया गोला, अब दुनिया में बन रहा है मजाक, जाने जेट पायलटों का क्या हुआ हाल?
यूक्रेन ने युद्ध के मैदान में उतारी रोबोट सेना, रूसी सेना के खिलाफ दर्ज की पहली जीत, पुतिन की बढ़ गई सांसे
India News (इंडिया न्यूज़),Bangladesh:संस्कृति के शहर के रूप में मशहूर मैक्सिको सिटी में लोग गुस्से से उबल पड़े। शहर ही नहीं, पूरे देश में लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। यहां तक कि वहां की संसद में भी लोगों की भीड़ घुस गई। सांसदों को अपनी जान बचाकर भागना पड़ा। इस हंगामे की वजह यह है कि देश भर में जजों को चुनने का अधिकार जनता को दे दिया गया है। सुनने में यह अजीब लग सकता है कि जनता अपने दिए गए अधिकार का विरोध क्यों कर रही है। लेकिन कभी ड्रग कार्टेल का गढ़ रहे इस देश के लोग जानते हैं कि अगर जज सीधे चुनाव से आने लगे तो भविष्य में हालात और खराब ही होंगे।
जजों की नियुक्ति प्रक्रिया को बदलने वाला कानून राष्ट्रपति एंड्रेस मैनुअल लोपेज ओब्रेडोर ने ही पारित किया था। दरअसल, ओब्रेडोर के कई फैसलों को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था। भारतीय व्यवस्था की तरह ही वहां के सुप्रीम कोर्ट को सरकार के असंवैधानिक फैसलों को पलटने का अधिकार है। दिलचस्प बात यह भी है कि राष्ट्रपति ओब्राडोर का कार्यकाल 30 सितंबर को खत्म हो रहा है और उनकी जगह 1 अक्टूबर को चुनाव जीतने वाली क्लाउडिया शिनबाम आएंगी। शिनबाम भी ओब्राडोर की पार्टी की उम्मीदवार थीं। अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में ओब्राडोर ने संसद से यह फैसला पारित करवाया। वे लंबे समय से न्यायिक सुधारों की वकालत करते रहे हैं। उन्हें वामपंथी माना जाता है। हालांकि, उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर की थी। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि मेक्सिको में दूसरा राष्ट्रपति चुनाव कोई नहीं लड़ सकता।
मेक्सिको की न्यायिक व्यवस्था में जनता के वोटों का हमेशा से प्रभाव रहा है। हालांकि, वहां के राज्य अपने तरीके से ट्रायल कोर्ट और अपील कोर्ट में जजों की नियुक्ति करते हैं। लेकिन ज्यादातर राज्यों में एक बात कॉमन है कि जज नियुक्त होने के एक निश्चित समय के बाद जज बने रहने के लिए जनता के वोट हासिल करने होते हैं। और वह भी 57 फीसदी से ज्यादा। इसमें कई राज्यों में पक्षपातपूर्ण मतपत्रों पर यानी पार्टी के चुनाव चिन्ह वाले मतपत्रों पर और कई में बिना चुनाव चिन्ह वाले मतपत्रों पर मतदान होता है। लेकिन ये चुनाव न्यायाधीश की नियुक्ति के बाद ही होते हैं। नियुक्ति के लिए विशेषज्ञों या न्यायाधीशों की एक समिति राज्यपाल को नामों का पैनल भेजती है।
सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने के लिए व्यक्ति की आयु 35 वर्ष होनी चाहिए। साथ ही उसे वकील के तौर पर कम से कम दस साल का अनुभव होना चाहिए। ऐसे व्यक्ति को राज्यों द्वारा नामित किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश बनने के बाद उसे बनाए रखने के लिए हर आठ साल में किसी राजनीतिक दल के चिन्ह रहित मतपत्र पर 57 प्रतिशत वोट प्राप्त करने होते हैं। इस तरह उसके लिए दस साल का अनुभव जरूरी है। जब न्यायालय में किसी न्यायाधीश का पद रिक्त होता है तो सरकार सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की समिति से नाम मांगकर उन्हें न्यायाधीश के तौर पर नामित करती है। लेकिन न्यायाधीश के तौर पर बने रहने के लिए उन्हें भी गैर-पक्षपातपूर्ण मतपत्र के जरिए 57 प्रतिशत जनता का समर्थन प्राप्त करना होता है। यानी जनता उन जजों को हटा सकती है जो राजनीतिक दलों से प्रभावित हैं या उनके समर्थक मतदाताओं के पक्ष में काम करते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के पांच जज अपने में से एक को चीफ जस्टिस चुनते हैं। जब तक कोई चुना नहीं जाता, तब तक सबसे वरिष्ठ जज यह जिम्मेदारी निभाते हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस किसी अन्य अपीलीय कोर्ट से भी जज को सुप्रीम कोर्ट में बैठने के लिए बुला सकते हैं। साथ ही, अगर राज्य की अदालतों में किसी जज की नियुक्ति 30 दिन के भीतर नहीं होती है, तो चीफ जस्टिस वहां नियुक्ति कर सकते हैं। इसके लिए वह नामांकन पैनल से नाम मांगते हैं। इस लिहाज से भी चीफ जस्टिस का पद अहम हो जाता है।
जजों के सीधे चुनाव से न्यायपालिका में राजनीति का दखल काफी बढ़ जाएगा। इस खतरे को भांपते हुए वहां के लोगों ने इसका देशभर में विरोध किया है। नए कानून में जज बनने के लिए वकालत के दस साल के अनुभव को घटाकर पांच साल कर दिया गया है। इससे समस्या और बढ़ेगी। भारतीय न्यायविद भी निर्वाचित न्यायिक व्यवस्था का विरोध कर रहे हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील आरएन सिंह कहते हैं कि जनता द्वारा सीधे चुनाव से राजनीति में दखल बढ़ेगा। अयोग्य लोगों के चुने जाने की संभावना भी बढ़ेगी। कई योग्य लोग भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।
‘दुनिया के सबसे ताकतवर देश से भारत को मिला ऐसा ब्रह्मास्त्र’, सुनकर कांप जाएंगे चीन-पाकिस्तान
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.