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UN सुरक्षा परिषद का सदस्य बनने पर किताना ताकतवर हो जाएगा भारत, जानकर उड़ जाएंगे आपके होश

Divyanshi Singh • LAST UPDATED : September 21, 2024, 9:44 pm IST

UN Security Council

India News (इंडिया न्यूज),UN Security Council:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका के लिए रवाना हो गए हैं, जहां वह क्वाड शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इसके बाद वह 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासभा को भी संबोधित करेंगे। इस बार संयुक्त राष्ट्र महासभा के शिखर सम्मेलन को भविष्य का शिखर सम्मेलन करार दिया गया है। इससे पहले ही भारत को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गई है कि उसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए। फिलहाल अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, चीन, फ्रांस और रूस ही इसके स्थायी सदस्य हैं। आइए जानते हैं कि अगर भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिल जाती है तो उसे क्या-क्या शक्तियां मिलेंगी और इस सदस्यता की राह में क्या-क्या मुश्किलें हैं।

कब हुआ था इसका गठन

दरअसल, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को वैश्विक स्तर पर सुरक्षा प्रबंधन का सबसे बड़ा मंच माना जाता है। इस पर पूरी दुनिया में शांति बनाए रखने और सामूहिक सुरक्षा के सिद्धांतों का पालन सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है। सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्वपूर्ण इकाई कहा जाता है, जिसका गठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वर्ष 1945 में हुआ था। इसके पांच स्थायी सदस्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, रूस और चीन हैं। सुरक्षा परिषद के गठन के समय इसके 11 सदस्य थे, जिन्हें 1965 में बढ़ाकर 15 कर दिया गया। इनके अलावा 10 और देश दो साल के लिए अस्थायी सदस्य के तौर पर चुने जाते हैं।

कितने समय के लिए चुने जाते हैं अस्थायी सदस्य

सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य देश दो साल के लिए चुने जाते हैं। इनके चुनाव का उद्देश्य सुरक्षा परिषद में क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखना है। इसके लिए सदस्य देशों के बीच चुनाव होते हैं। इसके जरिए एशिया या अफ्रीका से पांच, दक्षिण अमेरिका से दो, पूर्वी यूरोप से एक और पश्चिमी यूरोप या अन्य क्षेत्रों से दो देश चुने जाते हैं। अफ्रीका और एशिया के लिए आरक्षित पांच सीटों में से तीन पर अफ्रीकी देश और दो पर एशियाई देश काबिज हैं। भारत कई बार इसका अस्थायी सदस्य रह चुका है।

क्यों उठी बदलाव की मांग

समय के साथ सुरक्षा परिषद के ढांचे में बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है, क्योंकि इसका गठन वर्ष 1945 में हुआ था और तब से लेकर अब तक भू-राजनीतिक स्थिति में काफी बदलाव आ चुका है। फिर, इसके स्थायी सदस्य देशों में यूरोप का प्रतिनिधित्व ज़्यादा है, जबकि दुनिया की कुल आबादी का सिर्फ़ पाँच प्रतिशत हिस्सा यहाँ रहता है। अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश स्थायी सदस्य नहीं है। दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के शांति अभियानों में अहम भूमिका निभाता रहा है। इसलिए भारत की स्थायी सदस्यता की दावेदारी और भी बढ़ जाती है।

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चूँकि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अमेरिका का दबदबा है, इसलिए वह अपनी आर्थिक और सैन्य शक्ति के कारण कई बार संयुक्त राष्ट्र के नियमों की अनदेखी करता है। फिर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों को शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए वीटो का अधिकार होता है। भले ही किसी मुद्दे पर सभी सदस्य एकमत हों, लेकिन अगर वीटो वाला सदस्य अकेले उस मुद्दे पर फ़ैसला वीटो कर देता है, तो वह पारित नहीं होता।

भारत की राह में ये हैं बाधाएँ

सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्यों में से चीन को छोड़कर अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस समय-समय पर भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एकमात्र एशियाई स्थायी सदस्य चीन दरअसल भारत का कट्टर विरोधी है और वह नहीं चाहता कि दुनिया के इस सबसे बड़े मंच पर भारत उसके बराबर खड़ा हो। अगर भारत को स्थायी सदस्यता मिल जाती है तो वह क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में चीन के बराबर हो जाएगा। वैसे भी चीन दुनिया में भारत के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है। स्थायी सदस्यता से उसकी शक्तियां और अंतरराष्ट्रीय साख और भी बढ़ जाएगी और चीन को यह पसंद नहीं है।

कई बार यह मुद्दा भी उठाया जाता है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में नए स्थायी सदस्यों को बिना वीटो के शामिल किया जाना चाहिए। इस पर कोई आम सहमति नहीं है, क्योंकि यह बिना पंजे और सिर वाले शेर की भूमिका जैसा होगा। स्थायी सदस्य देश वैसे भी अपनी वीटो शक्ति छोड़ने के लिए राजी नहीं हैं। न ही वे वास्तव में किसी अन्य देश को यह अधिकार देने के लिए राजी हैं। भारत की सदस्यता के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर में संशोधन करना होगा। इसके लिए स्थायी सदस्यों के साथ-साथ दो तिहाई देशों की पुष्टि भी जरूरी है।

पश्चिमी देशों की एक चिंता यह भी है कि अगर भारत को स्थायी सदस्यता मिल जाती है तो वह अमेरिकी हितों के साथ तालमेल नहीं बिठा पाएगा। लोगों का मानना ​​है कि भले ही अमेरिका ने कई मौकों पर भारत के लिए स्थायी सदस्यता की वकालत की हो, लेकिन हकीकत में अमेरिकी नीति निर्माता इसे शायद ही जमीन पर उतारेंगे।

स्थायी सदस्यता मिलने पर क्या बदलेगा ?

सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता मिलने से दुनिया में भारत का प्रभाव बढ़ेगा और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी उसका दबदबा बढ़ेगा। वैसे भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र की मुख्य निर्णय लेने वाली संस्था है। किसी भी देश पर प्रतिबंध लगाने या किसी देश के फैसले को लागू करने के लिए इसके समर्थन की जरूरत होती है।

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