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स्वामी चिदानन्द सरस्वती
एक बार भयानक सूखा पड़ा। सारे फसल नष्ट हो गये और जमीन बंजर हो गई। किसानों ने हार मान ली और बीजों को ना बोने का फैसला लिया। फसल बुवाई का यह चौथा साल था जब बारिश नहीं हुई थी। किसान उदास होकर बैठ गये। वो ताश खेलकर या कोई और काम कर अपना समय बिताने लगे। हालांकि एक किसान था जिसने धैर्य के साथ बीजों को बोया और अपने जमीन की देखभाल भी करता रहा।
दूसरे किसान रोजाना यह कहकर उसका मजाक उड़ाते थे कि वह निर्रथक ही अपनी फलरहित और बंजर जमीन की देखभाल कर रहा है। जब वो उनसे उसकी इस बेवकूफी भरी दृढ़ता का कारण पूछते तो वह कहता, मैं एक किसान हूं और अपनी जमीन की देखभाल करना और उसमें बीज बोना मेरा धर्म है। बारिश हो या ना हो, इससे मेरा धर्म नहीं बदलता। मेरा धर्म मेरा धर्म है और मैं अवश्य ही इसका पालन करुंगा, भले ही इसका फल मुझे मिले या ना मिले। दूसरे किसान उसके इस बेकार के प्रयास पर हंसने लगे। फिर वो अपनी बंजर जमीन और बारिश रहित आसमान का विलाप कर अपने-अपने घर चले गये।
हालांकि जब वह किसान विश्वास के साथ अपना जवाब दे रहा था, तभी एक बादल वहां से गुजर रहा था। बादल ने किसान के सुंदर शब्दों को सुना और महसूस किया, वह सही है। जमीन की देखभाल करना और बीजों को रोपणा उसका धर्म है और अपने में संग्रहित पानी को धरती पर बरसाना मेरा धर्म है। उसी पल, किसान के संदेश से प्रेरित होकर बादल ने खुद में जमा सारे पानी को बारिश के रूप में किसान की भूमि के उपर छोड़ दिया। इस बादल ने धर्म का यह संदेश दूसरे बादलों तक पहुंचाना भी जारी रखा और जिस कारण वो भी बारिश कर अपना-अपना धर्म निभाने लगे। जल्द ही सारे बादल जमीन पर बारिश करने लगे और इससे किसान की खेती भरपूर रूप से हुई।
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