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Congress In Punjab पंजाब में कांग्रेस झगड़ों से बाहर निकलती

Bharat Mehndiratta • LAST UPDATED : November 13, 2021, 5:14 pm IST

Congress In Punjab
हरीश चौधरी की रणनीति हुई कारगर

अजीत मैंदोला, नई दिल्ली:
पंजाब कांग्रेस में फिलहाल लंबे समय से चल रहा घमासान समाप्त होता दिख रहा है। कहीं ना कहीं कांग्रेस के लिये बड़ी राहत की बात है। जानकार आज भी पंजाब में कांग्रेस को नम्बर एक पर ही मान रहे हैं। अगर कांग्रेस आगामी चुनाव में वापसी करती है तो राहुल और प्रियंका गांधी के कमजोर नेतृत्व वाले सवालों पर काफी हद तक अंकुश लग जायेगा। चाहे बाकी राज्यों के जो भी परिणाम हों। क्योंकि आलाकमान के फैसलों को लेकर जिस तरह से उन पर हमले हुए उससे कई सवाल उठने लगे थे। नवजोत सिंह सिद्धू को प्रदेश की कमान सौंपने का मामला रहा हो या चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनने का कई सवाल उठे थे।

यही नही जब राहुल गांधी ने राजस्थान के युवा नेता हरीश चौधरी को हरीश रावत की जगह प्रदेश प्रभार की जिम्मेदारी दी तब भी हैरानी जताई गई थी। लेकिन हरीश चौधरी ने सिद्धू और चन्नी के बीच चले टकराव के बाद राज्य के हालात जिस तरह से सँभाले उससे उन्होंने साबित कर दिया कि युवा भी राजनीतिक सूझबूझ रखते हैं। चौधरी राजस्थान में मंत्री बनने से पहले पिछले चुनाव के समय पंजाब में प्रभारी सचिव के रूप में काम देख रहे थे। जब अमरेंद्र सिंह के इस्तीफे के समय विधायकों को साधने की बात हुई तो राहुल ने चौधरी को ही जिम्मेदारी दी। राहुल ने अपनी पार्टी के हर विधायक से सीधी बात कर पहले उन्हें भरोसे में लिया और उसके बाद पंजाब आपरेशन को अंजाम दिया।

चन्नी को सीएम बनाने के बाद प्रदेश में फिर जब हालात बिगड़ने लगे तो एक बार के लिये लगा कि कांग्रेस बड़े संकट में फंस गई है। पूर्व मुख्यमंत्री अमरेंद्र सिंह ने नई पार्टी की घोषणा कर कांग्रेस को चिंता में डाला। इस बीच सिद्धू भी अपनी हरकतों से बाज नही आये उन्होंने सीएम चन्नी पर भी निशाने साधने शुरू कर दिए। लगने लगा पार्टी फिर संकट में फंस गई।ऐसे समय पर हरीश चौधरी ने सूझबूझ की राजनीति का परिचय दिया और बिगड़े हालातों को नियंत्रण में किया। सबसे पहले उन्होंने चन्नी और सिद्धू को साधा। दोनों को साथ बिठाया। उसके बाद एक एक कर फैसले लिए। नतीजा कांग्रेस की खींचतान में कमी आने लगी।

यही नही आम आदमी पार्टी जो पंजाब में कांग्रेस का विकल्प बनने की कोशिश में लगी थी उसमें सेंध लगाने में कामयाबी पाई। आप के विधायकों को पार्टी में शामिल करना शुरू कर दिया। इससे सन्देश जाने लगा कि कांग्रेस ही मजबूत है। आने वाले दिनों में हरीश चौधरी की अगुवाई में सिद्धू और चन्नी की जोड़ी दूसरे दलों के नेताओं में बीजेपी की तरह सेंध लगा विपक्ष को सकते में ला सकती है।

कांग्रेस की नजर अमरेंद्र सिंह की नई पार्टी पर भी है। सूत्रों की माने तो कांग्रेस के उन नेताओं पर भी नजर रखी जा रही है जिन्होंने आलाकमान के खिलाफ अमरेंद्र सिंह के पक्ष में बयान,साथ खड़े होने या किसी ना किसी रूप में आलाकमान के फैसलों पर सवाल उठाए थे। कांग्रेस के रणनीतिकार मान रहे हैं उम्र और नकारात्मक माहौल के चलते अमरेंद्र सिंह पंजाब की राजनीति में अब बहुत असर नही छोड़ पाएंगे।

दूसरा उनकी बीजेपी के साथ बढ़ती नजदीकियों को भी कांग्रेस अपने पक्ष में मान रही है। जातीय समीकरण भी कांग्रेस का मजबूत दिख रहा है। जहां तक अकाली दल का सवाल है तो उसमें प्रकाश सिंह बादल की तरह दूसरा दमदार नेता है नहीं। बादल खुद काफी बुजुर्ग हो गए है।बेटा बहु कई अरोपों से घिरे हैं। इसलिए कांग्रेस के असल निशाने पर आम आदमी पार्टी ही रहेगी। आप का संकट यह है कि उनके पास कोई चेहरा नही है। पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल दूसरे पर जल्दी से भरोसा नही करते हैं।

पिछले चुनाव में तो उन्होंने खुद सीएम बनने के संकेत दिए थे। केजरीवाल की रणनीति यही है एक बार दिल्ली से बाहर किसी भी राज्य में उनकी सरकार बन जाये और वह वहां मुख्यमन्त्री बन पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करें। लेकिन अभी ऐसे कोई संकेत इस बार पंजाब में नही दिख रहे हैं। कांग्रेस ने आप को उसी की चाल में फंसाना शुरू कर दिया।बिजली से जुड़े मामलों को लेकर ऐसे चन्नी सरकार ने ऐसे फैसले किये कि विरोधी भी अब चुप हैं। आने वाले दिनों में चन्नी सरकार ऐसे और फैसले भी कर सकती है जो सीधे चुनाव में असर डालेंगे।

हरीश चौधरी भी इसी कोशिश में हैं कि चन्नी और सिद्दू एक जुट पार्टी की पँजाब में वापसी करवाएं। इसके चलते चौधरी ने एक व्यक्ति एक पद के फामूर्ले की बात कर राजस्थान मंत्री पद छोड़ने की इच्छा जताई है। लेकिन जो संकेत मिल रहे हैं उसके अनुसार एक व्यक्ति एक पद का फामूर्ला अभी लागू नही होगा।संभवत चौधरी मंत्री भी बने रह सकते हैं। इसी तरह रघु शर्मा और प्रदेश अध्य्क्ष गोविंद डोटासरा भी दोहरी जिम्मेदारी निभाते दिख सकते हैं।

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