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क्यों हर बार युद्ध से पहले अपने घोड़े को हाथी की सूंड पहना देते थे Maharana Pratap? क्या इसी के पीछे छिपा था उनकी जीत का राज!

Maharana Pratap: जब महाराणा प्रताप युद्ध के मैदान में कदम रखते थे, तो उनके साथ होते थे चेतक। लेकिन चेतक की एक अनोखी विशेषता थी। युद्ध के दौरान, उसके मुंह पर एक हाथी की नकली सूंड बांधी जाती थी।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Maharana Pratap: राजपूतों की वीरता और साहस की गाथाएं सदियों से हमारे दिलों में बसी हुई हैं, और इनमें सबसे प्रमुख नाम है महाराणा प्रताप का। लेकिन क्या आपने कभी सुना है उनके वफादार घोड़े चेतक की कहानी? यह केवल एक घोड़ा नहीं था, बल्कि युद्ध के मैदान का एक अद्भुत योद्धा था, जिसने अपने साहस और समर्पण से इतिहास को बदल डाला।

युद्ध में अनोखी रणनीति

जब महाराणा प्रताप युद्ध के मैदान में कदम रखते थे, तो उनके साथ होते थे चेतक। लेकिन चेतक की एक अनोखी विशेषता थी। युद्ध के दौरान, उसके मुंह पर एक हाथी की नकली सूंड बांधी जाती थी। यह सुनकर शायद आपको हैरानी हो, लेकिन इसका एक गहरा उद्देश्य था। दूर से देखने पर ये घोड़े हाथियों जैसे दिखते थे, जिससे दुश्मन सैनिक डर जाते थे। उन्हें लगता था कि ये हाथी हैं, और हाथियों पर सवार राजपूतों से लड़ना उनके लिए जोखिम भरा था।

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Maharana Pratap: जब महाराणा प्रताप युद्ध के मैदान में कदम रखते थे, तो उनके साथ होते थे चेतक। लेकिन चेतक की एक अनोखी विशेषता थी। युद्ध के दौरान, उसके मुंह पर एक हाथी की नकली सूंड बांधी जाती थी।

इस चतुराई ने राजपूतों को दुश्मनों पर अचानक हमला करने का मौका दिया। जब दुश्मन ने समझा कि वे हाथियों का सामना कर रहे हैं, तभी राजपूत अपनी पूरी ताकत से उन पर हमला कर देते थे।

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हल्दीघाटी का युद्ध

1576 में लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध, भारतीय इतिहास का एक निर्णायक मोड़ था। महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ अपनी छोटी सी सेना के साथ कड़ा संघर्ष किया। इस युद्ध में चेतक ने अपने साहस का परिचय दिया।

जब युद्ध के दौरान एक हाथी ने चेतक पर हमला किया, तो उसने अपने पैरों में से एक को खो दिया। लेकिन घायल होने के बावजूद, चेतक ने महाराणा प्रताप को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का साहस नहीं छोड़ा। उसने अपने जख्मी शरीर के बावजूद महाराणा को उनके भाई शक्ति सिंह के घोड़े तक पहुंचाया। यह वीरता भारतीय इतिहास की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में से एक है।

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चेतक की विरासत

हालांकि इस युद्ध में राजपूत विजयी नहीं हुए, लेकिन चेतक की निष्ठा और साहस ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। उसके बलिदान की याद में महाराणा प्रताप ने उसके लिए एक समाधि बनवाई और उसकी याद में मेले का आयोजन किया जाता है। चेतक की कहानी हमें यह सिखाती है कि एक वफादार साथी कितना महत्वपूर्ण होता है।

संकट में मारवाड़ी घोड़ा

लेकिन क्या आपको पता है कि आज मारवाड़ी घोड़ा, जो कभी राजपूतों का गौरव था, संकट में है? अंग्रेजी शासन के दौरान, जब विदेशी नस्लों के घोड़ों को भारत लाया गया, तब मारवाड़ी घोड़ों की लोकप्रियता में कमी आई। आर्थिक तंगी और अन्य कारणों से इनकी संख्या घटती गई।

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हालांकि, हाल के वर्षों में पर्यटन के विकास के साथ इनकी पहचान में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन यह स्थायी नहीं है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस अनमोल विरासत की रक्षा करें।

निष्कर्ष

चेतक और महाराणा प्रताप की जोड़ी एक अमिट गाथा है, जो हमें साहस, निष्ठा और बलिदान का पाठ पढ़ाती है। यह कहानी न केवल इतिहास का हिस्सा है, बल्कि यह हमें प्रेरित करती है कि हम अपने मूल्यों और परंपराओं की रक्षा करें। चेतक की वीरता आज भी हम सभी के दिलों में जीवित है, और हमें इसे संजोकर रखना चाहिए।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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