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ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India: सीसीपीए ने सेंसोडाइन-नापतोल के विज्ञापन पर क्यों लगाई रोक?

PUBLISHED BY: Suman Tiwari • LAST UPDATED : February 14, 2022, 1:23 pm IST
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ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India: सीसीपीए ने सेंसोडाइन-नापतोल के विज्ञापन पर क्यों लगाई रोक?

ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India: आप टीवी, न्यूज पेपर आदि में सेंसिटिव दांतों (दांतों में ठंडा और गर्म पानी लगना, कुछ भी खाओ तो दांतों में झंझनाहट होना) के लिए अच्छा और मार्केट में ज्यादा बिकने वाला टूथपेस्ट सेंसोडाइन का विज्ञापन देखते हैं। विज्ञापन के माध्यम से बताया जाता है कि टूथपेस्ट सेंसिटिव दांतों में करने के कुछ सेकेंड में अपना काम शुरू कर देता है। इसके साथ ही विज्ञापन करने वाली आनलाइन शॉपिंग कंपनी नापतोल को भी गुमराह करने वाला बताया जा रहा है।

इस मामले में केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) इन दोनों कंपनी के खिलाफ सख्त कदम उठाते हुए (Naaptol Ads Ban) (Sensodyne Ads Ban) दोनों के विज्ञापनों पर रोक लगा दी है। हाल ही में एक बयान में उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा है कि सीसीपीए ने मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन कंज्यूमर हेल्थकेयर के खिलाफ 27 जनवरी 2022 और नापतोल के खिलाफ दो फरवरी 2022 को आदेश जारी किया। तो आइए जानते हैं सेंसोडाइन और नापतोल के विज्ञापन पर क्यों लगी पाबंदी। (ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India)

ADS Of Sensodyne And Naaptol Banned In India

सेंसोडाइन टूथपेस्ट की भारत में कब हुई एंट्री?

सेंसोडाइन की भारत में एंट्री करीब एक दशक पहले 2010 में हुई थी। उसने दांतों की सेंसिटिविटी या झनझनाहट की समस्या से जूझ रहे भारतीयों को टारगेट किया। भारत में दांतों की समस्या बहुत आम है। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, देश की करीब 60 फीसदी आबादी दांतों के खराब होने की समस्या से पीड़ित है तो वहीं 85 फीसदी आबादी मसूढ़ों की समस्या से जूझ रही है। हर तीन में से एक भारतीय दांतों की सेंसिटिविटी से पीड़ित है। ऐसे में सेंसोडाइन ने भारतीयों की सेंसिटिविटी ठीक करने में मददगार बनने का दावा किया।

देश में महज एक दशक में बना ब्रांड

महज एक दशक के अंदर ही वह सेंसोडाइन देश के डेंटल टूथपेस्ट मार्केट के सबसे बड़े ब्रांड में से एक बन गया। भारत के 10 हजार करोड़ रुपए के ओरल केयर मार्केट में सेंसोडाइन सालाना 30-40 पर्सेंट की दर से ग्रोथ कर रहा है। अमेरिकी ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट मुताबिक, औसतन एक व्यक्ति प्रति दिन 300 से ज्यादा विज्ञापन देखता है।

क्या विदेशी डेंटिस्ट डाक्टर करते हैं प्रचार?

  • टीवी देखा जाता है कि सेंसोडाइन टूथपेस्थ का प्रचार अक्सर विदेशी डेंटिस्ट करते हैं। सेंसोडाइन को बनाने वाली ब्रिटिश कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (जीएसके) विदेशी डेंटिस्ट के जरिए भारत में इस टूथपेस्ट का विज्ञापन करवाती रही है, इसे सीसीपीए ने नियमों का उल्लंघन माना है।  (Sensodyne Misleading Advertisements)
  • दरअसल, भारत में डॉक्टरों के किसी दवा या प्रॉडक्ट के सार्वजनिक प्रचार करने पर रोक है, ऐसे में इस नियम से बचने के लिए सेंसोडाइन के विज्ञापन में विदेश में प्रैक्टिस कर रहे डेंटिस्ट डॉक्टर को दिखाया जाता था। जो कि सीसीपीए के नियमों के खिलाफ है।
  • सीसीपीए अनुसार सेंसोडाइन के विज्ञापन में प्रोफेशनल डेंटिस्ट उसके प्रोडक्ट की तारीफ करते और उसे प्रयोग करने की सलाह देते नजर आते हैं। इससे कंज्यूमर के मन में ये धारणा बनती है कि अगर वे सेंसोडाइन को नहीं खरीदते हैं तो डॉक्टरी सलाह की अनदेखी कर रहे हैं।
  • सीसीपीए सेंसोडाइन के विज्ञापन में किए जाने वाले “दुनिया भर के डेंटिस्ट की ओर से रेकमेंडेड”, “दुनिया का नंबर वन सेंसिटिविटी टूथपेस्ट” और “क्लीनिकली प्रूवन रिलीफ, 60 सेकंड में काम करता है” जैसे दावों की जांच करेगा। जांच में दोषी मिलने पर जीएसके के सभी प्रोडक्ट्स के विज्ञापन पर सालभर के लिए रोक लग सकती है और उस पर 10 लाख रुपए का जुमार्ना लग सकता है।

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नापतोल आनलाइन शॉपिंग की कब हुई शुरुआत?

  • वहीं नापतोल के बारे में देश के 87 फीसदी ग्राहकों का मानना है कि वे विज्ञापन से सामान या सर्विस बारे में मिली जानकारी को सही मानते हैं। 60 फीसदी ग्राहकों का मानना है कि विज्ञापन उन्हें गैर जरूरी खरीदारी करने को मजबूर करते हैं। (Naaptol Misleading Ads)
  • नापतोल की शुरूआत 2008 में मनु अग्रवाल ने की थी। नापतोल आॅनलाइन शॉपिंग कंपनी है, जो टेलिविजन और आॅनलाइन माध्यमों से अपने प्रोडक्ट बेचती है। नापतोल का एक 24 घंटे चलने वाला टीवी चैनल है, जिसके जरिए वह हिंदी, तमिल, तेलुगू, मलयालम, कन्नड़ समेत विभिन्न भाषाओं में अपने प्रोडक्ट्स का विज्ञापन करता है।
  • इसके प्लेटफॉर्म पर 470 से ज्यादा ‘ब्रांड और दुकानें’ हैं। इसके ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर कपड़े, जूते, इलेक्ट्रॉनिक्स, घर और किचन के सामान, कार और बाइक के सामान समेत कई कैटेगरी के प्रोडक्ट उपलब्ध हैं।

नापतोल पर लगा 10 लाख रुपए का जुमार्ना

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने गुमराह करने वाले विज्ञापन दिखाने और अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेज के लिए नापतोल आनलाइन शॉपिंग लिमिटेड पर 10 लाख रुपए का जुमार्ना लगाया है। सीसीपीए ने नापतोल को यह बताने में असफल रहने के लिए फटकार लगाई कि उसके 24×7 चैनल पर आने वाले विज्ञापन लाइव नहीं, बल्कि पहले से रिकॉर्ड किए गए हैं।
  • नापतोल के विज्ञापनों में दिखाए जाने वाले प्रोडक्ट के एक निश्चित समय के लिए ही उपलब्ध रहने के दावे को ‘बनावटी कमी’ कहते हुए ऐसे विज्ञापनों को तुरंत प्रभाव से रोकने का निर्देश दिया गया है। सीसीपीए ने कहा है कि नापतोल अपने विज्ञापनों में सामानों की ‘बनावटी कमी’ को दिखाना बंद करे और ये बताए कि उसके विज्ञापन लाइव नहीं बल्कि पहले से रिकॉर्ड किए गए हैं।
  • नापतोल विज्ञापन में दिखाए जाने वाले सामानों के कुछ ही घंटे उपलब्ध रहने का दावा करता है, इसे ही सीसीपीए ने ‘झूठी या बनावटी कमी’ बताते हुए तुरंत रोकने को कहा है। बनावटी कमी से कंज्यूमर पर जल्द से जल्द उसे खरीदने का दबाव बनता है। ऐसा करके कंपनी कंज्यूमर को गुमराह करती है और गलत तरीके से अपनी सेल बढ़ाती है। नापतोल की इस रणनीति को ही सीसीपीए ने रोकने को कहा है।

डाबर प्रोडक्ट को नापतोल ने बताया था खराब

नापतोल को डाबर के मच्छर भगाने वाले ब्रांड ओडोमास को हानिकारक बताने का दोषी पाया गया। हाल ही में इस पर दिल्ली की एक जिला अदालत ने इस विज्ञापन को रोकने का आदेश जारी किया था।

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