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इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): एमनेस्टी इंटरनेशनल ने गुरुवार को पाकिस्तानी अधिकारियों से अपने परिवार वालों के जबरन गायब होने पर, न्याय की मांग करने वाले लोगों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनो पर तुरंत कार्रवाई को समाप्त करने का आह्वान किया और कहा कि लोगो को जबरन गायब किया जाना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून का गंभीर उल्लंघन है और अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत एक अपराध है.
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ‘ब्रेविंग द स्टॉर्म: एनफोर्स्ड डिसअपीयरेंस एंड द राइट टू प्रोटेस्ट’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा कि सरकार को तुरंत सभी बंदियों को उनकी गिरफ्तारी या हिरासत के कारणों के बारे में सूचित करना चाहिए और उन्हें उनके अधिकारों के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करनी चाहिए। उन्हें अपने क़ानूनी अधिकारों का इस्तेमाल करने के लिए वकील की सुविधा तुरंत प्रदान की जानी चाहिए । रिपोर्ट में राज्य द्वारा गायब हुए लोगों के परिवारों के शांतिपूर्ण विरोध को दबाने के लिए उत्पीड़न, डराने-धमकाने और यहां तक कि हिंसा का इस्तेमाल करने का दस्तावेजीकरण किया गया है.
इस रिपोर्ट में कहा गया की, कई परिवार न्याय प्रणाली के माध्यम से निवारण के सभी साधनों को समाप्त होने पर अपने प्रियजनों को रिहा कराने या उनके ठिकाने के बारे में जानकारी के लिए, अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए सार्वजनिक प्रदर्शनों की ओर रुख करते हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉचडॉग के अनुसार, पाकिस्तान की खुफिया सेवाओं ने मानवाधिकार रक्षकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं, छात्रों और पत्रकारों को निशाना बनाने के लिए नियमित रूप से गायब करने की नीति का इस्तेमाल किया है, सैकड़ों पीड़ित अभी भी लापता है.
एक बयान में, एमनेस्टी इंटरनेशनल में दक्षिण एशिया के उप क्षेत्रीय निदेशक, दिनुषिका दिसानायके ने कहा की “लापता लोगों के परिवारों को न्याय तक पहुंच, गायब होने पर जांच आयोग की अक्षमता, जैसे मुद्दों पर लोगों को अधिकारियों द्वारा लगातार निराश किया जाता है। अपराधियों को जिम्मेदार ठहरना या यहां तक की इस मामले पर कोई जवाब देने में देश की संस्थाएं विफल रही है.
इन परिवारों के विरोध करने पर उनके साथ किए गए क्रूर और कठोर व्यवहार से अन्याय और बढ़ जाता है। शांतिपूर्ण विरोध के अधिकार पर कार्रवाई तुरंत समाप्त होनी चाहिए। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने लोगों को विरोध-प्रदर्शन से हतोत्साहित करने के प्रयास में, शांतिपूर्ण विरोध में भाग लेने और “सड़क को अवरुद्ध करने” जैसे कामो के लिए लगाए जा रहे गैरकानूनी आरोपों का भी दस्तावेजीकरण किया है.
पाकिस्तान में जबरन गायब होने करने का सिलासिला पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ के काल (1999 से 2008) के दौरान शुरू था, लेकिन बाद की सरकारों के दौरान यह प्रथा जारी रही, कानून प्रवर्तन एजेंसियों और आपराधिक न्याय प्रणाली सहित पाकिस्तानी अधिकारी, जबरन गायब की घटनाओं को समाप्त करने के लिए इच्छाशक्ति दिखाने में लंबे समय से विफल रहे हैं। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि पाकिस्तान में जबरन गायब होने के मामलों के लिए पाकिस्तान में कानून प्रवर्तन एजेंसियां जिम्मेदार हैं.
जबरन गायब होने का इस्तेमाल पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा उन लोगों को आतंकित करने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जाता है जो देश की सेना पर सवाल उठाते हैं, या व्यक्तिगत या सामाजिक अधिकारों की बात सार्वजिनक रूप से करते हैं। बलूचिस्तान और देश के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांतों में जबरन गायब होने के मामले प्रमुख रूप से दर्ज किए जाते हैं, जो सक्रिय रूप से पाकिस्तानी नीतियों की खिलाफत करते है.
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