इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
दूध को सफेद सोना कहा जाता है। क्योंकि दूध को कैल्शियम और प्रोटीन समेत कई पोषक तत्वों से भरपूर संपूर्ण आहार माना जाता है। गर्मियों में दूध की डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन उत्पादन कम हो जाता है। दुनिया में भारत सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाला देश है तो चलिए आज विश्व दुग्ध दिवस (यानी वर्ल्ड मिल्क डे) पर जानते हैं दुग्ध दिवस की मनाने की शुरूआत कहां से हुई, और जब हम पसंदीदा मिल्क प्रोडक्ट्स को चुनते हैं तो किन बातों का ख्याल रखना चाहिए।
एक इकोनॉमिक सर्वे अनुसार 2021-2022 के मुताबिक देश में इस साल दूध का उत्पादन बढ़कर 20.996 करोड़ टन पहुंच गया। बावजूद देशवासियों को शुद्ध दूध नहीं मिल पा रहा है। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) की जांच में प्रोसेस्ड यानी पैकेट बंद दूध के 37.7 फीसदी सैंपल क्वालिटी स्टैंडर्ड पर फेल हो गए। जबकि नियमानुसार इस दूध का एक भी सैंपल फेल नहीं होना चाहिए। वहीं खुले दूध के भी 47 फीसदी सैंपल फेल हो गए।
पैकेटबंद दूध के 10.4 फीसदी नमूनों में सेफ्टी मानकों का उल्लंघन पाया गया। जबकि खुले दूध के मामलों में यह आंकड़ा 4.8 फीसदी रहा। पैकेट बंद और खुले दूध को मिलाकर कुल 41 फीसदी नमूने फेल हुए हैं। हालांकि सर्वे में कहा गया कि देश में 93 फीसदी दूध पीने लायक है। बता दें एफएसएसएआई ने यह रिपोर्ट साल 2019 में जारी की थी। इसमें 1,103 शहरों से 6,432 नमूने लिए थे।
विशेषज्ञों के मुताबिक, गाय या भैंस से दूध लेने पर 3.2 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है। वहीं जई के पौधे से एक लीटर दूध निकालने के लिए सिर्फ 0.9 किलोग्राम कार्बन वातावरण में मिलता है। वहीं चावल से 1.2 किलोग्राम और सोया से एक किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है। पानी की खपत भी कम होती है।
दरअसल डेयरी का एक लीटर दूध उत्पादन करने के लिए 628 लीटर पानी की जरूरत होती है। वहीं, वैकल्पिक दूध निकालने में सबसे ज्यादा 371 लीटर पानी बादाम से एक लीटर दूध निकालने में खर्च होता है। गौरतलब है कि सामान्य दूध के साथ-साथ लोगों का रुख वैकल्पिक दूध की तरफ भी होने लगा है। हालांकि, ऐसे लोगों की संख्या फिलहाल काफी कम है।
एफएसएसएआई के गौतमबुद्ध नगर में डिस्ट्रिक्ट आॅफिसर संजय शर्मा बताते हैं कि गर्मियों में दूध प्रोडक्शन कम हो जाता है और मांग बढ़ जाती है। डेयरी उद्योग की कई बड़ी कंपनियां रिकंस्टीट्यूट दूध बनाती हैं। उन्हें इसकी अनुमति है। इस कारण देश में दूध की किल्लत नहीं होती है। दरअसल सर्दियों में दूध का प्रोडक्शन अधिक होता है। इस दौरान कंपनियां दूध का स्किम्ड पाउडर तैयार और घी बना लेती हैं, जिससे गर्मियों में रिकंस्टीट्यूट मिल्क बनाना आसान हो जाता है।
आपको बता दें कि रिकंस्टीट्यूट दूध से डिमांड पूरी हो जाती है, जिससे मिलावट का जोखिम कम हुआ है। फिर भी डेयरी उद्योग में शामिल लोग अपने फायदे के लिए डिटर्जेंट, यूरिया, व्हाइट पेंट, स्टार्च, कास्टिक सोडा, रिफाइंड आॅयल, फॉर्मेलिन, अमोनियम सल्फेट, बोरिक एसिड, बेंजोइक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, हाइड्रोजन पराक्साइड और मेलामाइन मिलाकर नकली दूध तैयार करते हैं। यह नकली दूध सेहत के लिए बेहद घातक हो सकता है।
वर्ल्ड मिल्क डे संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन द्वारा 1 जून साल 2001 को इस दिन के रूप में अपनाया गया था। यह दिन दूध को वैश्विक खाने के रूप में मान्यता देने और डेयरी इंडस्ट्री को सेलिब्रेट करने के लिए मनाया जाता है। दूध और डेयरी उत्पादों के लाभों को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों और अभियानों के साथ इस दिन को मनाया जाता है।
बताया जाता है कि लोग ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए छोटे से लेकर बड़े स्तर तक दूध में मिलावट करते हैं। दूध को गाढ़ा करने, उसकी मात्रा बढ़ाने और उसको कई दिनों तक प्रिजर्व करने के लिए मिलावट की जाती है। दूध को गाढ़ा करने के लिए स्टार्च और व्हाइट पेंट मिलाया जाता है जबकि दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए यूरिया, रिफाइंड, पॉप आॅयल, डिटर्जेंट पाउडर मिलाते हैं। दूध कई दिन तक खराब न हो इसके लिए फॉर्मेलिन, बोरिक एसिड, हाइड्रोजन पराक्साइड और बेंजोइक एसिड जैसे केमिकल मिलाए जाते हैं।
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नकली और असली दूध की पहचान घर पर हो सकती है। सबसे पहले कच्चे दूध की घूंट भरें। अगर टेस्ट कड़वा आए तो समझ जाएं कि दूध में मिलावट है। असली दूध में कड़वाहट नहीं होती है। दूध को बोतल में भरकर हिलाएं। अगर दूध का झाग जल्दी खत्म न हो तो समझ जाएं कि दूध में केमिकल मिला है। असली दूध का झाग जल्द ही खत्म हो जाता है।
दूध को हाथ लें। अगर हाथ पर साबुन जैसी चिकनाहट रह जाती है तो समझ जाएं कि दूध में पाम आॅयल, रिफाइंड मिला है। दूध को चिकनी सतह पर बहाएं। बहने पर दूध झाग छोड़कर जा रहा है तो समझ जाएं कि इसमें मिलावट की गई है। अंगूठे पर दूध की कुछ बूंदें डालें। अगर वो बहता हुआ कोई निशान न छोड़े तो समझ लीजिए कि दूध में पानी मिला हुआ है।
5 से 10 मिलीग्राम दूध लें और इतना ही पानी मिला लें। इसे अच्छे से घोलें। अगर दूध पर गाढ़ी और मोटी परत नजर आने लगे तो समझ जाएं कि दूध में डिटर्जेंट पाउडर है। 2 से 3 मिलीग्राम दूध को 5 मिलीग्राम पानी के साथ उबाल लें। इसमें 2 से 3 बूंद आयोडीन टिंक्चर डालें। ठंडा करने के लिए छोड़ दें। अगर दूध का रंग नीला हो जाए तो समझ लें स्टार्च मिला है।
टेस्ट ट्यूब में दूध लेकर 10 बूंद हाइड्रोक्लोरिक एसिड और एक चम्मच शक्कर मिलाएं। पांच मिनट बाद यह लाल हो जाए तो समझ लें कि इनमें वनस्पति आॅयल मिला है। 10 मिलीग्राम दूध और 5 मिलीग्राम सल्फ्यूरिक एसिड को मिलाएं। अगर इसमें वॉयलेट/ ब्लू रिंग्स बनती हैं तो इसमें फॉर्मेलिन मिला है।
इस मामले में नोएडा के मानस हॉस्पिटल के सीनियर फिजिशियन का कहना है कि दूध में स्टार्च होने से पेट संबंधी परेशानी हो सकती हैं। यह डायबिटीज मरीजों के लिए घातक साबित हो सकता है। यूरिया के ज्यादा इस्तेमाल से किडनी फेल होने का खतरा है। वहीं फॉर्मेलिन, बोरिक एसिड, हाइड्रोजन पराक्साइड, बेंजोइक एसिड से आंतों में सूजन आ सकती है। इसके इतर दूध में कैल्शियम न होने से हड्डियां भी कमजोर होंगी। रिकंस्टीट्यूट मिल्क नुकसान तो नहीं पहुंचाएगा, लेकिन इससे पूरा लाभ नहीं मिलेगा। क्योंकि इसकी न्यूट्रिशनल वैल्यू कम होती है।
विश्व मिल्क डे का मुख्य उद्देश्य लोगों के जीवन में दूध के मूल्य के बारे में जन जागरूकता बढ़ाना है। यह जन्म के बाद बच्चे द्वारा खाया जाने वाला पहला खाना है, और यह जीवन भर खाया जाने वाला एकमात्र खाना हो सकता है।
विश्व दूध दिवस के दिन हर साल कुछ न कुछ थीम रखी जाती है। इस साल प्रोग्राम 29 मई से 31 मई तक एक डेयरी रैली के साथ शुरू हुआ और 1 जून को विश्व दूध दिवस यानी आज खत्म होगा। थीम के बारे में बताएं तो इस साल जलवायु परिवर्तन संकट की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करना और इस बात पर ध्यान डालना है कि डेयरी इंडस्ट्री पर अपने प्रभाव को कैसे कम कर सकता है। अगले 30 वर्षों में इंडस्ट्री के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करके ‘डेयरी नेट जीरो’ पर ध्यान आकर्षित किया गया है।
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