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नेचुरोपैथ कौशल
हम सभी केले पसंद करते हैं और इनका भरपूर स्वाद उठाते हैं। परंतु अभी बाज़ार में आने वाले केले कार्बाइडयुक्त पानी में भिगाकर पकाए जा रहे हैं। इस प्रकार के केले खाने से 100% कैंसर या पेट का विकार हो सकता है। इसलिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करें और ऐसे केले ना खायें। परंतु केले को कार्बाइड का उपयोग करके पकाया गया है, इसे कैसे पहचानेंगे..??
यदि केले को प्राकृतिक तरीके से पकाया है तो उसका डंठल काला पड जाता है और केले का रंग गर्द पीला हो जाता है। परंतु यदि केले को कारबाइड का इस्तेमाल करके पकाया गया है तो उसका डंठल हरा होगा और केले का रंग लेमन येलो अर्थात नींबुई पीला होगा। इतना ही नही ऐसे केले का रंग एकदम साफ पीला होता है। उसमे कोई दाग धब्बे नहीं होते।
यदि कार्बाइड को पानी में मिलाएँगे तो उसमें से उष्मा (हीट) निकलती है और अस्यतेलएने गैस का निर्माण होता है जिससे गाँव देहातों में गैस कटिंग इत्यादि का काम लिया जाता है अर्थात इसमें इतनी कैलोरिफिक वैल्यू होती है कि उससे एल.पी.जी. गैस को भी प्रतिस्थापित किया जा सकता है। जब किसी केले के गुच्छे को ऐसे केमिकल युक्त पानी में डुबाया जाता है तब उष्णता केलों में उतरती है और केले पक जाते हैं।
इस प्रक्रिया को उपयोग करने वाले व्यापारी इतने होशियार नहीं होते हैं कि उन्हें पता हो की किस मात्रा के केलों के लिए कितने तादाद में इस केमिकल का उपयोग करना है बल्कि वे इसका अनिर्बाध प्रयोग करते हैं जिससे केलों में अतिरिक्त उष्णता का समावेश हो जाता है जो हमारे पेट में जाता है।
जिससे…
(1). पाचन तन्त्र में खराबी आना शुरू हो जाती है।
(2). आखों में जलन।
(3). छाती में तकलीफ़।
(4). जी मिचलाना।
(5). पेट दुखना।
(6). गले में जलन।
(7). अल्सर।
(8). तदुपरांत ट्यूमर का निर्माण भी हो सकता है।
इसीलिए सलाह ये है कि इस प्रकार के केलों का बहिष्कार किया जाये। इसी तरीके से आमों को भी पकाया जा रहा है परंतु जागरूकता से महाराष्ट्र में इस वर्ष लोगों ने कम आम खाये। तब जा के आम के व्यापारियों की आखें खुली, अतः यदि कारबाइड से पके केलों और फलों का भी हम संपूर्ण रूप से बहिष्कार करेंगे तो ही हमें नैसर्गिक तरीके से पके स्वास्थ्यवर्धक केले और फल बेचने हेतु व्यापारी बाध्य होंगे अन्यथा हमारा स्वास्थ्य ख़तरे मैं है, ये समझा जाये।
Side Effects Of Eating Too Many Bananas
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