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Bihar Politics: सीट बंटवारे के मुद्दे पर बिहार में कांग्रेस और राजद के रिश्ते आईसीयू में पहुंच गए हैं। लालू प्रसाद धड़ल्ले से सिंबल बांट रहे हैं और कांग्रेस हाथ पर हाथ धरे बैठी है। राहुल गांधी नाराज हैं। सब कुछ परिस्थितियों पर छोड़ दिया गया है। अन्य नेता भी राजद से बात कर रहे हैं। खुद हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
अब दो चीजों का इंतजार है। गठबंधन तोड़ने का या राजद के सामने घुटने टेकने का। लालू ने अपनी तरफ से रिश्ता फाइनल कर लिया है। इससे नीतीश कुमार को दरकिनार कर बीजेपी से मुकाबला करने के लिए लालू पर भरोसा जताने वाली कांग्रेस को झटका लगा है।
पटना में विपक्षी एकता की पहली बैठक के दौरान कांग्रेस को राहुल गांधी और खुद दूल्हा बनने का वादा करने वाले लालू प्रसाद से एक-एक सीट मांगनी पड़ी है। अभी भी कोई भावना नहीं है। इसके उलट राजद उन सीटों पर भी उम्मीदवार उतार रही है जिन पर कांग्रेस मजबूत मानी जाती है।
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निखिल कुमार की औरंगाबाद सीट छिन गयी है। अब पूर्णिया-कटिहार की बारी है। पूर्णिया से टिकट के दावेदार पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने से पहले लालू-तेजस्वी से सहमति ली थी। अभी भी खाली है। तारिक अनवर को कटिहार के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है।
यह पहली बार नहीं है कि राजद ने कांग्रेस के साथ ऐसा व्यवहार किया है। अगर दोस्ती कायम रही तो ये आखिरी बार भी नहीं होगी। पांच साल तक केंद्र की यूपीए सरकार में मंत्री रहने के बावजूद विदेशी मूल के मुद्दे पर आगे आकर सोनिया गांधी का समर्थन करने वाले लालू ने 2009 के लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखा दिया था।
गठबंधन तोड़कर राम विलास पासवान की पार्टी ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। कांग्रेस अकेली रह गई। दो साल पहले बिहार में हुए उपचुनाव में भी राजद ने कांग्रेस को किनारे कर दिया था।
साल 2020 में बिहार में राजद की सरकार नहीं बन पाने का ठीकरा भी कांग्रेस पर फोड़ा जा रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस को 243 में से 70 सीटें दी गई थीं। इनमें से 51 सीटों पर हार हुई, जिसके लिए कांग्रेस आज तक बदनाम है, जबकि सच्चाई यह है कि जहां समीकरण बीजेपी-जेडीयू के पक्ष में था, वहां कांग्रेस को ज्यादा सीटें मिली थीं। हार निश्चित थी।
इस नतीजे को उदाहरण के तौर पर इस्तेमाल करते हुए कांग्रेस को स्ट्राइक रेट की याद तो आती है, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजे को भुला दिया जाता है। कांग्रेस नेता कन्हैया कुमार ने राजद से पूछा है कि 20 सीटों पर लड़ने वाली राजद को एक भी सीट नहीं मिली, लेकिन नौ सीटों पर लड़ते हुए कांग्रेस ने एक सीट जीती तो किसका स्ट्राइक रेट बेहतर था?
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2014 का नतीजा भी आईना दिखाता है। दोनों दल एक साथ थे। 27 सीटों पर लड़ने के बाद राजद ने चार सीटें जीतीं, लेकिन 12 सीटों पर लड़ने के बाद कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं। यहां भी कांग्रेस का स्ट्राइक रेट राजद से बेहतर रहा।
एक समय बिहार में कांग्रेस की तूती बोलती थी। आजादी से लेकर 1990 तक कांग्रेस ने 16 मुख्यमंत्री दिये, लेकिन सत्ता के लालच में राजद की गोद में बैठकर दयनीय स्थिति में पहुंच गयी। 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजद के खिलाफ लड़कर 23 सीटें जीती थीं।
जनादेश विपक्ष में बैठने का था। परन्तु लोभ प्रबल हो गया। सभी विधायक राबड़ी सरकार में शामिल हो गये। एक वक्ता और बाकी सभी मंत्री। कांग्रेस ने विपक्ष की सीट खाली कर दी, जिसे बीजेपी-जेडीयू ने भर दिया। तब से कांग्रेस वनवास में है। राजद के कमीने।
कांग्रेस बिहार में उचित हिस्सेदारी चाहती है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार राजद के प्रयासों को ईमानदार नहीं मानते हैं। कहा जा रहा है कि राजद मुस्लिम-यादव समीकरण वाली सीटों से कांग्रेस को दूर रखना चाहती है। उन्हें डर है कि कहीं कांग्रेस को ज्यादा सीटें न मिल जाएं।
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