India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, नई दिल्ली: कांग्रेस ने रायबरेली और अमेठी को जीतने के लिए इस बार आक्रमक रणनीति बनाई है। महासचिव प्रियंका गांधी तो रणनीति की मुख्य सूत्रधार होंगी, लेकिन पार्टी के सबसे अनुभवी वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत और भूपेश बघेल को अलग से जिम्मेदारी से साफ हो गया है कि प्रियंका दोनों सीटों को लेकर खासी गंभीर है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत को विशेष रूप से अमेठी की जिम्मेदारी दी गई है जहां पर प्रियंका सबसे ज्यादा समय देंगी। इसके साथ छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री बघेल रायबरेली की जिम्मेदारी देखेंगे। दोनों नेताओं को उत्तर प्रदेश का खासा अनुभव है। बघेल ने विधानसभा चुनाव में पर्यवेक्षक की जिम्मेदारी निभाई थी। जबकि गहलोत दो दो बार अलग भूमिका में जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
गहलोत ने पार्टी महासचिव रहते हुए 2007 में उत्तर प्रदेश में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कर पार्टी कार्यकर्ताओं को रिचार्ज किया था। जबकि एक बार वह छानबीन समिति की भी जिम्मेदारी संभाल चुके हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए आज के दिन में रायबरेली और अमेठी की सीट प्रतिष्ठा वाली बन गई हैं। राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव न लड़ने के बाद कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। हालांकि पार्टी के नेता उनका बचाव करते हुए कहते हैं कि परिणाम बताएगा कि फैसला कितना सही था। तर्क होता है कि कांग्रेस के प्रत्याशी किशोरी लाल शर्मा 40 साल से वहां पर सक्रिय हैं। एक एक घर को वह जानते हैं। हालांकि फैसले का पता 4 जून को लगेगा।
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दरअसल उत्तर प्रदेश को लेकर पार्टी ने आज तक जितने प्रयोग किए वह सब गलत साबित हुए। गठबंधन की राजनीति के चलते कांग्रेस पूरी तरह से खत्म हो गई। 2019 में तो कांग्रेस अमेठी का चुनाव भी हार गई। एक मात्र सीट सोनिया गांधी ने रायबरेली की जीती। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने अपने तरह की अलग राजनीति की। तमाम प्रयोग किए। 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिए। खुद चुनाव की जिम्मेदारी संभाली, लेकिन परिणाम ऐसे आए कि वोट प्रतिशत घट कर तीन प्रतिशत हो गया।
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एक तरह से कांग्रेस उत्तर प्रदेश में शून्य पर चली गई। लोकसभा चुनाव में पार्टी एक बार फिर रायबरेली और अमेठी को लेकर ताकत लगाने जा रही है। अगर पार्टी दोनों सीट जीत जाती है तो पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्तर प्रदेश में मनोबल बढ़ेगा। अभी तक की गतिविधियों से ऐसा लगता है कि प्रियंका गांधी ने ही दोनो सीट जिताने की जिम्मेदारी ली हुई है। प्रियंका ने अनुभव को देखते ही गहलोत और बघेल को अपने साथ रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि गहलोत को राजनीति का चाणक्य माना जाता है। संगठन में अच्छी पकड़ रखते हैं। बघेल भी अब मजे हुए राजनीतिज्ञ हो गए हैं। दोनों नेताओं के लिए भी यह चुनाव बहुत अहम है। जीते तो पार्टी में कद बढ़ेगा। प्रियंका गांधी ने आज अमेठी पहुंच अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से लगातार बैठकें कर वह आक्रमक रणनीति में जुट गई हैं। जल्द पार्टी के बड़े नेता वहां प्रचार के लिए पहुचेंगे।
जानकार मानते हैं रायबरेली में मुकाबला आसान नहीं है। बीजेपी के प्रत्याशी डी पी सिंह बीते दस साल से वहां पर सक्रिय हैं। पिछले चुनाव में उन्होंने सोनिया गांधी की जीत का अंतर काफी कम कर दिया था। हार के बाद भी पार्टी ने उन्हें वहां पर सक्रिय रखा हुआ है। इसलिए राहुल गांधी के लिए मुकाबला आसान नहीं है। सोनिया गांधी ने अगर वहां पर प्रचार किया तो सहानुभूति का राहुल को लाभ मिल सकता है। पर दिलचस्प मुकाबला अमेठी में देखने को मिल सकता है। प्रियंका और गहलोत की क्या रणनीति रहती है अब इसी पर नजर रहेगी। क्योंकि बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने वहां पर बीते दस साल में अपनी अच्छी पकड़ बनाई है।
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