संबंधित खबरें
‘कुछ लोग खुश है तो…’, महाराष्ट्र में विभागों के बंटवारें के बाद अजित पवार ने कह दी ये बड़ी बात, आखिर किस नेता पर है इनका इशारा?
कांग्रेस को झटका देने की तैयारी में हैं उमर अब्दुल्ला? पिछले कुछ समय से मिल रहे संकेत, पूरा मामला जान अपना सिर नोंचने लगेंगे राहुल गांधी
खतरा! अगर आपको भी आया है E-Pan Card डाउनलोड करने वाला ईमेल? तो गलती से ना करें क्लिक वरना…
मिल गया जयपुर गैस टैंकर हादसे का हैवान? जांच में हुआ चौंकाने वाला खुलासा, पुलिस रह गई हैरान
भारत बनाने जा रहा ऐसा हथियार, धूल फांकता नजर आएगा चीन-पाकिस्तान, PM Modi के इस मास्टर स्ट्रोक से थर-थर कांपने लगे Yunus
‘जर्सी नंबर 99 की कमी खलेगी…’, अश्विन के सन्यास से चौंक गए PM Modi, कह दी ये बड़ी बात, क्रिकेट प्रशसंक भी रह गए हैरान
Live in relationship Petition: सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) खारिज कर दी, जिसमें केंद्र सरकार को लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण के लिए दिशानिर्देश तैयार करने और ऐसे रिश्तों में रहने वाले नागरिकों की सामाजिक सुरक्षा के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने याचिका को गलत बताया गया और याचिकाकर्ता की मंशा पर भी सवाल उठाया। सीजेआई ने याचिका खारिज करने से पहले टिप्पणी की, “क्या आप इन लोगों की सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रही हैं या लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रहने देना चाहती? इन याचिकाओं पर जुर्माना लगाना जानी चाहिए। ऐसी याचिकाएं बस बेवकूफी है।”
वकील ममता रानी द्वारा दायर याचिका में प्रार्थना की गई है कि लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों को सामाजिक समानता और सुरक्षा दी जानी चाहिए। याचिका में कहा गया है कि अदालतों ने हमेशा लिव-इन पार्टनर सहित देश के सभी नागरिकों को सुरक्षा देने के लिए काम किया है और लिव-इन पार्टनरशिप के सदस्यों की रक्षा करने वाले कई फैसले पारित किए हैं, चाहे वह महिला हों, पुरुष हों या ऐसे रिश्तों से पैदा हुआ बच्चा।
याचिका में लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करने के लिए कानून बनाने और केंद्र सरकार द्वारा देश में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों की सही संख्या का पता लगाने के लिए एक डेटाबेस बनाने की तत्काल आवश्यकता की बात कही गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह केवल लिव-इन पार्टनरशिप के पंजीकरण को अनिवार्य बनाकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
याचिकाकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि लिव-इन पार्टनरशिप को कवर करने वाले नियमों और दिशानिर्देशों की अनुपस्थिति के कारण लिव-इन पार्टनर द्वारा किए गए अपराधों में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें बलात्कार और हत्या जैसे प्रमुख अपराध शामिल हैं। केस को ममता रानी बनाम भारत संघ के नाम से जाना गया।
यह भी पढ़े-
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.