Unique Traditions of Triloki Bigaha village: भारत में कई ऐसे गांव हैं, जो अपनी अनोखी परंपरा और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध हैं. उनमें से ही एक है बिहार (Bihar) के जहानाबाद जिले काे त्रिलोकी बिगहा गांव, जहां लोग केवल नवरात्रों (Navratri) ही नहीं बल्कि कभी भी लहसून प्याज को हाथ नहीं लगाते. यहां की जीवनशैली और परंपराएं इतने अद्वितीय हैं कि पूरे इलाके में इसे अलग पहचान मिली है.
क्या हैं गांव की मान्यता?
त्रिलोकी बिगहा की सबसे बड़ी विशेषता इसकी सात्विक जीवनशैली है। गांव के लोग सदियों से मांस-मछली और शराब से पूरी तरह दूर रहते हैं. इसके अलावा, यहां के निवासी नवरात्रि के दौरान ही नहीं, बल्कि साल भर प्याज और लहसुन से भी परहेज करते हैं. बुजुर्ग बताते हैं कि इस नियम का पालन करने में ही गांव की शांति और सौभाग्य निहित है. यदि कोई इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसके साथ अजीब घटनाएँ घटित होने की परंपरा रही है। यही वजह है कि आज भी हर व्यक्ति बुजुर्ग, युवा और बच्चे इस परंपरा का पालन करते हैं.
गांव में ज्यादातर आबादी कृष्ण वशंज की है
गांव की अधिकांश आबादी यादव समुदाय की है, जो स्वयं को भगवान कृष्ण के वंशज मानते हैं। इसलिए यहां दूध, दही और मक्खन का उपयोग आम जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है. लगभग 100 घरों की इस बस्ती में हर घर में गाय और भैंस मिलना आम बात है. यही नहीं, गांव की सांस्कृतिक पहचान पहलवानी से भी जुड़ी हुई है. त्रिलोकी बिगहा से कई पहलवान राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं. इन पहलवानों की वजह से गांव को ‘पहलवानों का गांव’ कहा जाना बिल्कुल सही होगा. पहलवानी की परंपरा यहां की युवा पीढ़ी में आज भी जीवित है; सुबह उठते ही युवा अखाड़े में पहुंचते हैं और कठिन प्रशिक्षण में भाग लेते हैं.
मांस-मछली और शराब से नई पीढ़ी भी दूर
समय के साथ कुछ बदलाव जरूर आए हैं। जो लोग गांव से बाहर गए, उन्होंने धीरे-धीरे प्याज और लहसुन का सेवन शुरू कर दिया है. लेकिन मांस-मछली और शराब अभी भी नई पीढ़ी से दूर हैं. लालू कुमार, जो सात साल से पहलवानी कर रहे हैं, बताते हैं कि हमारा गांव भगवान कृष्ण का वंशज है. ब्रह्मचर्य और सात्विक जीवन हमारा धर्म है. यही कारण है कि हम अपनी परंपराओं को नहीं भूलते. बहु यहां आकर सात्विक बनती है और बेटी ससुराल जाने के बाद भी सात्विक रहती है. यह हमारे जीवन का हिस्सा है.