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AAP is in Danger: 'आप' से 'आप' को 'आप' का ख़तरा है !

India News(इंडिया न्यूज), AAP is in Danger: आप सांसद संजय सिंह की गिरफ़्तारी के बाद सियासी बवाल तेज़ है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, “हज़ारों छापे मारे, सिसोदिया से लेकर संजय सिंह तक को गिरफ्तार कर लिया लेकिन अब तक एक पैसे की बरामदगी नहीं दिखाई।” संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी […]

BY: Rashid Hashmi • UPDATED :
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India News(इंडिया न्यूज), AAP is in Danger: आप सांसद संजय सिंह की गिरफ़्तारी के बाद सियासी बवाल तेज़ है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, “हज़ारों छापे मारे, सिसोदिया से लेकर संजय सिंह तक को गिरफ्तार कर लिया लेकिन अब तक एक पैसे की बरामदगी नहीं दिखाई।” संजय सिंह की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी बनाम आम आदमी पार्टी की लड़ाई सड़क पर आ गई है। दिल्ली के पूर्व डिप्टी CM और केजरीवाल का दायां हाथ मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद संजय सिंह आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के बाद सबसे बड़ा चेहरा थे। आप की पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी के सदस्य और राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं संजय।

2012 में बनी आम आदमी पार्टी 

उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे हिंदी भाषी राज्यों की ज़िम्मेदारी भी उनके पास है। I.N.D.I.A. गठबंधन में समन्वय, चुनावी रणनीति, ज़मीनी समीकरण- इन सभी के लिए केजरीवाल संजय पर ही भरोसा करते हैं। संजय सिंह की जन्मभूमि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और अवध बेल्ट के बीच पड़ने वाले सुल्तानपुर में है। सुल्तानपुर का होने की वजह से हिंदी पट्टी और पूर्वांचल को बहुत अच्छे से समझते हैं। दिल्ली में लोकपाल बिल के लिए अन्ना हज़ारे के आंदोलन और अनशन से शुरुआत की, 2012 में आम आदमी पार्टी बनी तो उसके संस्थापक सदस्यों में से एक रहे।

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आक्रामक तरीक़े से आप का पक्ष रखते है संजय सिंह

संजय का क़द इसी से समझा जा सकता है कि राज्यसभा के लिए वो अरविंद केजरीवाल की सबसे पहली पसंद रहे। संजय सिंह आक्रामक और मुखर हैं, हिंदी बेल्ट के राज्यों की राजनीति में सक्रिय रहते रहे हैं, लिहाज़ा अरविंद केजरीवाल उन्हें हमेशा आगे रखते हैं। आम आदमी पार्टी की ओर से संसद के अंदर संजय सिंह केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ मुद्दे उठाते रहे हैं। मणिपुर कांड, कोरोना, नौकरी, मुस्लिमों के मुद्दे, किसान आंदोलन और अडाणी- इन सभी पर संजय सिंह राज्यसभा में आक्रामक तरीक़े से आप का पक्ष रखते नज़र आए। मणिपुर का मुद्दा उठाया तो सस्पेंशन भी झेला, संसद भवन के अंदर अनशन पर भी बैठे।

2024 का नैरेटिव ‘बीजेपी’ बनाम ‘आप’

सियासत में गिरफ्तारी का मोल होता है। जब तोलते हैं तो फ़ायदा नुक़सान का अंदाज़ा होता है। केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को हाल ही में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला तो सपने हिलोरें मारने लगे। पार्टी को लगा कि 2024 का नैरेटिव ‘बीजेपी’ बनाम ‘आप’ किया जाए। लेकिन सिसोदिया के बाद संजय सिंह की गिरफ्तारी केजरीवाल और उनकी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। 2012 में पार्टी के गठन के 11 साल बाद आज दिल्ली और पंजाब में सरकार है, 6 महीने पहले ही आप को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है। ख़ास बात ये कि AAP को जब ये दर्जा मिला, ठीक इसी वक़्त शरद पवार की NCP और ममता बनर्जी की TMC को झटका लगा और इन दोनों पार्टियों के साथ साथ CPI ने भी नेशनल पार्टी का दर्जा खो दिया।

संजय सिंह का जेल जानाआप के लिए बहुत बड़ा झटका

2024 से पहले संजय सिंह का जेल जाना आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका है। पिछले 4-5 साल में आप ने अपने कई पोस्टर ब्वॉय को जेल जाते या बाहर आते देखा- मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, सोमनाथ भारती, निशा सिंह, बलबीर सिंह, नरेश यादव, अमानतुल्ला खान, विजय सिंगला, जितेंद्र सिंह तोमर, गोपाल इटालिया, जगदीप सिंह, महेंद्र यादव, अखिलेश त्रिपाठी, कमांडो सुरिंदर सिंह, मनोज कुमार, प्रकाश जरवाल, दिनेश मोहनिया, शरद चौहान, युवराज सिंह जडेजा- ये कुछ ऐसे नाम हैं जो आप के बड़े नेता या मंत्री रहे लेकिन क़ानून की ज़द में आते गए।

सियासत में सलाख़ों का मतलब होता है, सलाखें शहीद बनाती है, पर सलाखें इक़बाल गिराती भी हैं। आंदोलन से जन्मी पार्टी का इक़बाल गिरते हुए देखना अफ़सोस की बात है। ऊपर लिखे कई नाम ऐसे हैं जो सिर्फ सियासत की वजह से जेल नहीं गए- किसी ने फर्ज़ी डिग्री बनवाई तो किसी ने अपनी पत्नी के साथ मारपीट की। राजनीतक शुचिता और शिष्टाचार में कब भ्रष्टाचार आ गया पार्टी को अंदाज़ा ही नहीं लगा।

केजरीवाल को वक्त रहते सतर्क होने की ज़रूरत

अरविंद केजरीवाल को वक्त रहते सतर्क होने की ज़रूरत है। उनका मुक़ाबला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है, जिनका दामन बिल्कुल साफ़ है। केजरीवाल को लकीर मिटाने की बजाय लकीर बड़ी करने पर फोकस करना होगा। अन्ना हज़ारे के आंदोलन में ईमानदारी की महक और सफ़ाई की चमक थी। आज शराब की गंध ने केजरीवाल की पार्टी को अपनी चपेट में ले लिया है। प्रवर्तन निदेशालय का कहना है कि “आबकारी नीति केस में कुल तीन करोड़ का लेनदेन है। संजय सिंह के कर्मचारी सर्वेश मिश्र ने लेनदेन की बात मान लिया। ” आज से 11 वर्ष पहले केजरीवाल कहते थे, राजनीति के कीचड़ में नहीं जाना है। पर जवाबी तर्क था कि कीचड़ में घुसे बिना सफाई कैसे होगी।

करप्शन विरोधी के उपर भ्रष्टाचार का केस

सफाई कितनी हुई, ये सब जनता के सामने है, हां भ्रष्टाचार के कीचड़ से आप के बड़े नेताओं के दामन ज़रूर दाग़दार हो गए हैं। टीवी की भाषा में कहूं तो सबसे बड़ी ब्रेकिंग न्यूज़ तो ये है कि- सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पूछा है कि जब शराब घोटाले के करप्शन के पैसे की लाभार्थी आम आदमी पार्टी ही है। तो आपने क्यों नहीं पार्टी को आरोपी बनाया ? अब अगर प्रवर्तन निदेशालय ‘आप’ को भी नामजद करता है तो यह भारत का पहला केस होगा जब किसी पार्टी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगेगा। सोच कर देखिए उस पार्टी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार का केस जिसका जन्म ही करप्शन के विरोध की नींव पर हुआ था।

नवंबर 2012 में अन्ना हज़ारे के आंदोलन से एक पार्टी का जन्म हुआ। नाम रखा गया- आम आदमी पार्टी और संयोजक बने अन्ना के सिपहसलार अरविंद केजरीवाल। वक़्त गुज़रा और प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, शाज़िया इल्मी, कपिल मिश्रा जैसे नेता साथ छोड़ते चले गए। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के गर्भ से जन्म लेने वाली पार्टी पर आज भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं।

देश को भ्रष्टाचार के जाल से मुक्त कराने का सपना दिखाया

साल 2011 में जंतर मंतर और रामलीला मैदान वाले अरविंद केजरीवाल अब काफ़ी हद तक बदल चुके हैं। नवंबर 2012 में आम आदमी पार्टी का जन्म भारत के राजनीतिक इतिहास में युग बदलने वाला नज़र आता था। देश भ्रष्टाचार की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, सड़क से लेकर सरकारी दफ्तरों तक जनता छोटे-बड़े भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ रही थी। आम आदमी पार्टी ने लोकपाल के दम पर पूरे देश को भ्रष्टाचार के जाल से मुक्त कराने का सपना दिखाया।

ये ऐसा वक़्त था जब आम नागरिक, देश की राजनीति और शासन में गिरावट को किनारे खड़े होकर देख रहे थे। अचानक एक राजनीतिक दल का हिस्सा बनने के दरवाजे खोले गए। आप के संस्थापक सदस्यों का संदेश साफ़ था- पारिवारिक जागीर बन चुके दलों से उबरने का वक़्त आ गया है। महिलाएं, पुरुष, जवान-बूढ़े, अमीर-ग़रीब- सभी का आम आदमी के रूप में स्वागत हुआ। सिस्टम से भ्रष्टाचार ख़त्म करने और वैकल्पिक राजनीति का मॉडल सामने रखने के वादे के साथ AAP ने धमाकेदार एंट्री की। लेकिन गुज़रते वक़्त के साथ पार्टी के बड़े नेता इस मॉडल से डीरेल होते चले गए।

कबीर का दोहा याद कीजिए-

काजर की कोठरी में केतो ही सयोनो जाय,

एक लीक काजर की लागि है पै लागि है।

(लेखक राशिद हाशमी इंडिया न्यूज़ के कार्यकारी संपादक हैं)

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