संबंधित खबरें
UP By-Election Results 2024 live: यूपी में 9 सीटों पर उपचुनाव की वोटिंग जारी, नसीम सोलंकी की जीत तय
Bihar Bypolls Result 2024 Live: बिहार की 4 सीटों पर मतगणना शुरू! सुरक्षा पर प्रशासन की कड़ी निगरानी
Maharashtra-Jharkhand Election Result Live: महाराष्ट्र में महायुति तो झारखंड में JMM गठबंधन सरकार बनाने की तरफ अग्रसर, जानें कौन कितने सीट पर आगे
मातम में बदलीं खुशियां, नाचते- नाचते ऐसा क्या हुआ शादी से पहले उठी…
नाइजीरिया में क्यों पीएम मोदी को दी गई 'चाबी'? क्या है इसका महत्व, तस्वीरें हो रही वायरल
Stray Dogs: बिलासपुर में आंवारा कुत्तों का आतंक, लॉ छात्रा पर किया हमला
अजीत मेंदोला
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
कांग्रेस एक ऐसे आंदोलनकारी की तलाश में है जो अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की तरह आंदोलन चलाने की क्षमता रखता हो। कांग्रेस को लग रहा जैसे यूपीए शासन के दूसरे कार्यकाल में गैर राजनीतिक आंदोलन हुए उसी तरह मोदी सरकार के खिलाफ भी शुरूआत कराई जाए। यह जग जाहिर है कि उस समय अन्ना हजारे और रामदेव के आंदोलन के पीछे कहीं ना कहीं संघ का बहुत बड़ा हाथ था। लेकिन उन्हें गैर राजनीतिक माना गया। जिसका सीधा लाभ बीजेपी और आम आदमी पार्टी को मिला। दोनों आंदोलन भ्रष्टाचार, महंगाई और आम आदमी से जुड़े मुद्दों को लेकर ही हुये थे। इस समय भी महंगाई, बेरोजगारी समेत कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसे आमजन परेशान है। लेकिन विपक्ष आंदोलन खड़ा नहीं कर पा रहा है। कांग्रेस की अंतरिम अध्य्क्ष सोनिया गांधी एक कोशिश कर रही है। उन्होंने पिछले दिनों वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह की अगुवाई में 8 सदस्यों की समिति का गठन किया है जो आम जन के मुद्दों को लेकर सरकार के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाएगी। इस समिति में प्रियंका गांधी को भी जगह दी गई है। जबकि इससे पहले उन्होंने विपक्ष के नेताओं से बातचीत कर उन्हें आंदोलन के लिये एकजुट किया। 20 सितम्बर से 30 सितम्बर तक यह आंदोलन होगा। यह आंदोलन बहुत प्रभाव छोड़ पायेगा इसके आसार कम ही दिखाई देते हैं। क्योंकि इससे पूर्व के आंदोलन बहुत असर नही छोड़ पाए थे। ऐसे संकेत हैं कि इस बार आंदोलन को धार देने के लिये दिग्विजय सिंह की बनी कमेटी आने वाले हफ्ते में बैठक कर रणनीति बनाएगी।
दरअसल कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी कमजोर संगठन का होना है। उसके पास बीजेपी की तरह मजबूत सहयोगी संगठन हैं ही नहीं। कांग्रेस के पास जो अग्रिम संगठन हैं उनकी भी हालत बहुत पतली हो चुकी है। महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्य्क्ष ही पार्टी छोड़ कर चली गई। युवक कांग्रेस जैसे तैसे चल रहा है। सेवादल में दम नहीं रहा। घूम फिर कर बात मुख्य संगठन पर आ जाती है। उस पर कांग्रेस न कभी ध्यान ही नहीं दिया। राज्यों की हालत किसी से छिपी नहीं। आलाकमान राज्यों के संगठनों को भी महत्व नहीं दे रहा है। राजस्थान, हरियाणा, केरल, मध्यप्रदेश, पंजाब मतलब अधिकांश राज्यों में आपसी खींचतान के चलते संगठन बिखरे हुए हैं। यही वजह है कि कांग्रेस आज सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। कांग्रेस के लिये यूं तो हर राज्य का चुनाव अस्तित्व बचाने का सवाल है। लेकिन 2024 में होने वाला लोकसभा का चुनाव कांग्रेस के लिये मरण जीवन का प्रश्न होगा। कांग्रेस भी जानती है कि इस बार की हार पार्टी के लिये बहुत घातक होगी। इसके चलते कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मौजूदा व्यवस्था को लेकर नाराजगी जता चुके हैं। हर नेता भविष्य को लेकर चिंतित है। इसी के चलते बीते सात साल में 222 कांग्रेसियों ने पार्टी छोड़ी। इनमें 177 सांसद और विधायक थे। यही स्थिति बनी रही तो और नेता भी पार्टी छोड़ सकते हैं। कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व न तो पार्टी को एक जुट रख पा रहा है और ना ही आक्रमक आंदोलन खड़ा कर पा रहा है।
सोनिया गांधी अब आंदोलन को लेकर सक्रिय हुई हैं। दिग्विजय सिंह जैसे नेता को जिम्मेदारी दी है। दिग्विजय सिंह अपनी पार्टी में सभी गुटों के साथ मधुर संबन्ध रखते हैं तो विपक्ष में भी उनकी सीधी बातचीत है। बंगाल की ममता बनर्जी हो, शरद पवार हर नेता उनको मान देता है। दिग्विजय सिंह नई जिम्मेदारी में खरे भी उतर सकते हैं। ऐसे संकेत हैं कि उन एनजीओ से संपर्क साधा जाएगा जो सरकार की नीतियों के खिलाफ हैं। उनसे जुड़े ऐसे लोगों की भी तलाश है जिनकी छवि जनता में साफ सुथरी हो वह जब बोलें तो जनता विश्वास करे। जैसे अन्ना हजारे और रामदेव ने बीजेपी के लिये किया था। हालांकि अभी जो किसान आंदोलन चल रहा है उसे कांग्रेस समर्थन तो दे रही है। लेकिन आंदोलन में भटकाव दिखने लगा। किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं पर विश्वास नहीं किया जा सकता। दूसरा कृषि संबधी तीन कानूनों की खिलाफत करने वाला आंदोलन दूसरे मुद्दों में उलझ गया। कहीं ना कहीं राजनीतिक रूप लेने लगा है। कांग्रेस को लग रहा है कि किसान आंदोलन बहुत प्रभावशाली नहीं बन पा रहा है। कांग्रेस की कोशिश है कि ऐसा आंदोलन हो जिसमें किसानों के साथ आम आदमी भी जुड़े। क्योकि अधिकांश मुद्दे वही है जिन्हें यूपीए के शासन में उठाया गया था। बढ़ते तेल के दाम, खाने पीने की वस्तुओं के तेजी से बढ़ते दाम, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार। अगर इन मुद्दों को लेकर आंदोलन खड़ा हुआ तो फिर मोदी सरकार को चुनोती दी जा सकती है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.