मां दुर्गा का ऐसा मंदिर जो श्मशान से बना शक्तिपीठ! जानें क्या हैं मान्यता और इतिहास?

Maa Pitambara Shaktipeeth: मध्य प्रदेश का दतिया नवरात्रि के अवसर पर आध्यात्मिक और धार्मिक आस्था का केंद्र बन जाता है. यहां स्थित मां पीतांबरा शक्तिपीठ न केवल भक्तों की श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि राजनीति और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी विशेष पहचान रखता है. माना जाता है कि इस मंदिर में आराधना करने से शत्रु पर विजय, न्यायालयीन मामलों में सफलता और राजनीतिक उन्नति प्राप्त होती है.

श्मशान से शक्तिपीठ तक की यात्रा

मां पीतांबरा पीठ की स्थापना 1929 में ब्रह्मलीन पूज्यपाद राष्ट्रगुरु अनंत श्री विभूषित स्वामी जी महाराज ने की थी. कहा जाता है कि दतिया नगर में एक रात रुकने के बाद उन्होंने पांच वर्षों तक यहां कठोर तपस्या की. तपस्या पूर्ण होने पर 1935 में दतिया नरेश शत्रुजीत बुंदेला के सहयोग से इस शक्तिपीठ की नींव रखी गई. विशेष बात यह है कि जिस स्थान पर आज विश्वविख्यात तांत्रिक शक्तिपीठ है, वही स्थान पहले श्मशान हुआ करता था. स्वामी जी की साधना और तप ने इस स्थान को विश्व के दुर्लभ तांत्रिक केंद्रों में बदल दिया.

क्या हैं मंदिर की मान्यता?

पीठ में मुख्य रूप से मां बगलामुखी और मां धूमावती की आराधना होती है. मान्यता है कि मां बगलामुखी की साधना से शत्रु पर विजय और अदालतों में चल रहे मुकदमों में अनुकूल निर्णय मिलता है. वहीं मां धूमावती की उपासना तंत्र साधनाओं में सफलता प्रदान करती है. मंदिर परिसर में महाभारतकालीन वानखंडेश्वर महादेव और प्राचीन हरिद्रा सरोवर भी आस्था और आकर्षण के केंद्र हैं.

1962 भारत-चीन युद्ध से कैसे जुड़ा हैं मंदिर?

पीतांबरा पीठ का महत्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि राजनीतिक और राष्ट्रीय स्तर पर भी रहा है. 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने युद्ध शांति के लिए स्वामी जी महाराज से विशेष अनुष्ठान करने का आग्रह किया. तब स्वामी जी ने 51 कुंडीय महायज्ञ संपन्न कराया और इसके बाद युद्धविराम की घोषणा हुई. इस घटना ने मंदिर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी विशेष पहचान दिलाई.

नेताओं और भक्तों का आस्था स्थल

यही कारण है कि वर्षों से यह मंदिर केंद्रीय और राज्य स्तरीय नेताओं का प्रमुख आस्था स्थल बना हुआ है. राजनीतिक दृष्टि से इसे “सियासत का शक्तिपीठ” भी कहा जाता है. नवरात्रि के समय यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी भक्त मां पीतांबरा के दर्शन करने आते हैं.
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