Inspiring story of Postman Shankarlal Joshi: वो कहते हैं न हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती है, बिल्कुल ठीक ही कहते हैं. एक ऐसे इंसान की कहानी जिससे आज आप सभी को प्रेरणा लेना चाहिए. आखिर कौन हैं राजस्थान के बीकानेर के शंकरलाल जोशी, जिनकी चर्चा इन दिनों सोशल मीडिया पर जमकर की जा रही है. जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर.
कौन हैं डाकिया शंकरलाल जोशी?
राजस्थान के बीकानेर के डाकिया शंकरलाल जोशी की प्रेरणादायक कहानी इन दिनों सोशल मीडिया पर आपको चारों तरफ देखने को मिलेगी. हर कोई उनके बारे में ज़ोरों-शोरों से चर्चा कर रहा है. दरअसल, उन्होंने अपने समर्पण और सालों की सेवा से एक असाधारण मुकाम हासिल किया है. जहां, उनकी तस्वीर भारतीय डाक टिकट पर छपी है. जानकारी के मुताबिक, यह सम्मान पाने वाले वह राजस्थान के पहले डाकिया बने हैं. इतना ही नहीं, उनके इस सम्मान से न सिर्फ राजस्थान का बिकानेर बल्कि पूरे देश का गौरव भी ऊँचा हो गया है.
ऊंट से साइकिल तक का सफर किया तय
शंकरलाल जोशी ने केवल 18 साल की उम्र में डाक विभाग में काम की शुरुआत की थी. इस दौरान उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि साल 1968 में उन्होंने ऊंट पर बैठकर डाच बांटने का काम किया था. साथ ही उन्होंने आगे कहा कि उस समय वह प्रतिदन ऊंट पर सवार होकर लगभग 20 से 30 किलोमीटर तक सरकारी डाक के रोज़ाना चक्कर लगाते थे. साथ ही उन्होंने अपने संघर्ष को याद करते हुए बताया कि उस दौर में ऊंट पर डाकिया को देखकर लोगों में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता था. हालाँकि, वो कहते हैं न समय कभी भी एक जैसे नहीं रहता है, ठीक इसी तरह जैसे-जैसे समय आगे बढ़ता गया वैसे-वैसे ऊंट की जगह साइकिल ने ले ली थी. लेकिन शंकरलाल जोशी आज भी, सरकार की डाक बांटने में पूरी तरह से मदद करते हैं और इसके अलावा वह साइकिल का ही इस्तेमाल करते हैं.
डाक टिकट पर कैसे छपी उनकी फोटो?
उनकी सेवा और समर्पण को सम्मानित करते हुए, डाक विभाग ने साल 1985 में जारी किए गए दो रुपए के एक डाक टिकट पर उनकी तस्वीर छापी थी. तो वहीं, इस ऐतिहासिक टिकट पर एक सजे-धजे ऊंट के साथ, एक तरफ शंकरलाल जोशी खड़े हैं और उनके पास एक अन्य व्यक्ति भी मौजूद है.यह डाक टिकट आज भी उनकी सालों की मेहनत और देश सेवा के प्रतीक को दर्शाने का काम करती है.
स्वास्थ्य के लिए जोशी चलाते हैं साइकिल
तो वहीं, जोशी जी ने अपनी लंबी और स्वस्थ उम्र का राज बताते हुए कहा कि वह प्रतिदिन चार से पाँच किलोमीटर तक साइकिल चलाते हैं, जिसपर उन्होंने कहा कि साइकिल चलाने से उनका शरीर स्वस्थ रहता है. तो वहीं, दूसरी तरफ उन्होंने अपने दुख के बारे में जिक्र करते हुए कहा कि कई बार उनके साथ के कई डाकिए अब या तो इस दुनिया में नहीं है या अपनी स्वास्थ्य समस्याओं से जिंदगी में जूझ रहे हैं.
हालाँकि, उन्होंने आगे जानकारी देते हुए बताया कि वह आज भी साइकिल चलाकर खुद को फिट मानते हैं और डाक बांटने के काम को पूरी निष्ठा के साथ करते हैं. साथ ही उन्होंने कहा कि वह इस सम्मान को अपने पूरी जिंदगी भी याद रखेंगे और साथ ही इस सम्मान को कभी भी नहीं भूलेंगे. शंकरलाल जोशी सिर्फ एक डाकिया नहीं, बल्कि ईमानदारी, समर्पण और स्वस्थ जीवन शैली का एक जीता-जागता उदाहरण, हैं, जिससे आप सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए.