Azam Khan On I Love Mohammad Controversy
I Love Mohammad Controversy: : समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान ने जेल से निकलने के बाद ‘आई लव मोहम्मद’ विवाद पर बड़ा बयान दिया है. आजम खान ने कहा कि ‘हमारे लिए दो चीजें हैं. एक जिसके सामने सर झुकाएं, वो बस एक है अल्लाह और वो जो उसका मैसेज लेकर आया है, वो है मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम.’ उन्होंने कहा कि ‘मैं आलिम नहीं हूं और मैं यह कहना चाहता हूं कि मजहबी विवाद अच्छी बात नहीं है. एक दूसरे के मजहब की इज्जत सबको करनी चाहिए. एक-दूसरे के जज्बात का एहतराम सबको करना चाहिए और एक बार सोचना चाहिए कि इन नफरतों का अंजाम आखिरकार होगा क्या?’
सपा नेता ने कहा कि मोहब्बत की एक इंतहा है. लैला-मजनू करें, शीरी-फरहाद करें, मियां-बीवी करें, आशिक-माशूक करें. उसकी एक इंतहा है. उस इंतहा की एक मुद्दत भी है, जो उनकी जिंदगी के साथ खत्म हो जाती है. लेकिन, नफरत की कोई इंतहा नहीं. नफरत की कोई इंतहा नहीं है. हम वह काम न करें, जिसकी कोई इंतहा न हो. हम वह काम करें, जिसकी कोई इंतहा हो.
आजम खान ने अपना दर्द किया बयां
इस दौरान उन्होंने जेल के दिनों को याद करते हुए अपने दर्द को भी बयां किया. उन्होंने कहा कि मैं बहुत दिनों से बीमार हूं. मैं शायद अगर अभी न जेल से न छूटा होता तो मेरे लीवर और किडनी बिल्कुल खत्म हो चुके होते और मैं फिर नहीं बच पाता. आप अगर हिमालय की चोटी पर इतने मुकदमे लिखकर रख देते तो पिघलकर पानी हो जाता. मुझपर सैकड़ों मुकदमे हैं.
उन्होंने कहा- ‘अभी मैं तो इस पोजीशन में ही नहीं हूं कि मैं ठीक से चल सकूं. मेरे पैर तो चलना भूल गए हैं. पांच साल जो शख्स एक तख्त पर बैठा और लेटा रहा हो तो पैरों की आदत खत्म हो गई है. मैं तो चलने की प्रैक्टिस कर रहा हूं. पैर उठना भूल गए हैं तो टकरा जाता हूं. तकदीर लिखने वाले ने जो लिख दिया, वो लिख दिया तो उसे खुशी से उसे कबूल कर लिया है.’
अल्लाह की रजा मानकर गुजारा वक्त- आजम खान
आजम खान ने आगे कहा- ‘ये वक्त मुझे तो गुजारना ही था. मैं रोकर गुजारता या खुशी से गुजार देता तो उसको अल्लाह की रजा मानकर गुजार दी. चुनाव लड़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि जिंदा रहेंगे तो कुछ सोचेंगे. जिंदा ही न रहे तो क्या सोचेंगे? अभी तो अपना स्वास्थ्य ठीक करेंगे. अब उसमें 6 महीने लगे, साल लगे, दो साल लगे. ये दुनिया ऐसी ही चलेगी. हम नहीं होंगे तो हमसे बेहतर चलेगी.’
सपा नेता ने कहा, ‘जेल में तो फोन की इजाजत ही नहीं थी. रख नहीं सकते, जो रूटीन फोन कर सकते थे बंदी, वह भी मैं नहीं कर सकता था. पेंशन रोक दी गई. मेरी जब लोकसभा की मेंबरशिप खत्म हुई तो इल्जाम यह था कि मैंने नफरत भरी स्पीच दी. मेरी सदस्यता चली गई. पांच घंटे के अंदर इलेक्शन कमीशन से नोटिफिकेशन हो गया. पांच घंटे के अंदर मेरे वोट का अधिकार खत्म हो गया. अगले छठे घंटे में नए इलेक्शन का अनाउंसमेंट हो गया.’
उन्होंने कहा कि मैंने इसके खिलाफ अपील की. अपील के जजमेंट में जज ने यह लिखा कि जिस नफरती भाषण पर सजा दी गई है, उसमें जुमला तो दूर की बात एक शब्द भी नफरत का नहीं है और मेरी अपील मंजूर हो गई और मैं बरी कर दिया गया. यह अलग बात कि उस जज को शाम के 5:00 बजे तक रामपुर छोड़ देने का आदेश हो गया.
आजम खान ने राहुल गांधी का क्यों किया जिक्र?
आजम खान ने कहा कि वहीं धाराएं राहुल गांधी पर भी लगीं. एक-दो ज्यादा ही थी. मैं 5 घंटे में सदस्यता से हटा दिया गया. नया चुनाव डिक्लेअर हो गया. लेकिन, इलेक्शन कमीशन ने उस वक्त तक राहुल गांधी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, तक जब तक उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिल गई. यह फर्क है.
उन्होंने कहा कि अब आजम खान और राहुल गांधी में इतना फर्क तो होना चाहिए. इतना ख्याल तो उनका रखना चाहिए न. हक बनता है. किसी ने कभी इस पहलू से सोचा? नहीं सोचा. किसी को क्या जरूरत है सोचने की? कहां वक्त रखा है किसी के पास? हम जैसों के लिए सोचने का वक्त कहां है किसी के पास?
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