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India News (इंडिया न्यूज़), Bihar Politics: बिहार की राजनीति हमेशा पूरी तरह से जाति की धुरी पर घूमती है। बीजेपी ने भले ही गठबंधन के जरिए राज्य के सियासी समीकरण को साधने की कोशिश की हो, लेकिन उसने अपना मुख्य फोकस ऊंची जातियों पर ही बनाए रखा है। बिहार में बीजेपी ने अपने कोटे की सभी 17 लोकसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर दिया है, जिसमें उसने सबसे ज्यादा भरोसा ऊंची जातियों पर किया है। पार्टी ने करीब 64 फीसदी उम्मीदवार ऊंची जाति से उतारे हैं। इसके अलावा लालू प्रसाद यादव के कोर वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए बड़ी सियासी चाल चली है, जिसमें एम से तो दूरी बनाए रखी गई है, लेकिन वाई पर खास ध्यान दिया गया है।
बिहार में बीजेपी नई सोशल इंजीनियरिंग के साथ चुनावी मैदान में उतरी है। एनडीए कुनबे का राजनीतिक दायरा पहले से काफी बड़ा हो गया है, जिसमें बीजेपी, जेडीयू, चिराग पासवान की एलजेपी, जीतन राम मांझी की हम और उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएम शामिल हैं। बीजेपी जेडीयू और कुशवाहा के जरिए ओबीसी वोटों को साधने की कोशिश में है। ऐसे में मांझी और चिराग के सहारे दलित समुदाय के वोटों को जोड़े रखने की रणनीति है। ऐसे में बीजेपी ने खुलेआम ऊंची जातियों पर दांव खेला है, जिनमें राजपूत, भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ शामिल हैं।
बीजेपी ने रविवार को अपने कोटे से 17 लोकसभा उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी है, जिसे देखकर पार्टी की सियासी रणनीति साफ नजर आ रही है। बीजेपी ने 17 में से 11 टिकट (64 फीसदी) ऊंची जातियों को दिए हैं जबकि बाकी 6 टिकट (36 फीसदी) दलित और ओबीसी को दिए हैं। बीजेपी ने ऊंची जातियों में भूमिहार, ब्राह्मण और कायस्थ के बाद राजपूत समुदाय के लोगों को सबसे ज्यादा तवज्जो दी है। बीजेपी ने जितनी तरजीह ऊंची जातियों को दी है, उतनी किसी अन्य पार्टी ने नहीं दी।
ऊंची जाति के राजपूत समुदाय में बीजेपी ने औरंगाबाद सीट से सुशील कुमार सिंह, आरा सीट से आरके सिंह, सारण सीट से राजीव प्रताप रूडी, महाराजगंज सीट से जनार्दन सिग्रीवाल, अररिया सीट से प्रदीप कुमार सिंह और पूर्वी चंपारण सीट से राधा मोहन सिंह को मैदान में उतारा है। । इस तरह बीजेपी ने अपना सबसे बड़ा दांव राजपूत समुदाय पर खेला है, जिसे आधा दर्जन सीटों पर टिकट दिया गया है।
ब्राह्मण समुदाय से बक्सर से मिथिलेश तिवारी और दरभंगा से गोपालजी ठाकुर को उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि भूमिहार समुदाय से बेगुसराय सीट से गिरिराज सिंह और नवादा सीट से विवेक ठाकुर को टिकट दिया गया है। पटना साहिब सीट से रविशंकर प्रसाद चुने गए हैं, जो कायस्थ समुदाय से आते हैं। हालाँकि, बिहार में ब्राह्मण समुदाय की आबादी राजपूतों और भूमिहारों से अधिक है, फिर भी उन्हें केवल दो टिकट दिए गए हैं। बीजेपी ने बक्सर से अश्विनी चौबे का टिकट काट दिया और उनकी जगह गोपालगंज से मिथिलेश तिवारी को मौका दिया गया है। यानी अगर किसी ब्राह्मण का टिकट कटा तो ब्राह्मण ही नया उम्मीदवार बन गया।
बीजेपी ने बिहार में एक भी महिला को लोकसभा का टिकट नहीं दिया है और न ही किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाया है। शाहनवाज हुसैन का एमएलसी कार्यकाल खत्म होने के बाद माना जा रहा था कि बीजेपी उन्हें लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बना सकती है, लेकिन पार्टी ने ऐसा नहीं किया है। मोदी सरकार ने संसद में महिला आरक्षण बिल पास कराकर ऐतिहासिक कदम उठाया है, लेकिन लोकसभा चुनाव में बिहार से एक भी महिला उम्मीदवार नहीं उतारी है। इस तरह बीजेपी ने महिलाओं और मुसलमानों दोनों से दूरी बना ली है, लेकिन वाई यानी यादवों पर खास तवज्जो दी है।
बिहार में बीजेपी ने यादव समुदाय से तीन उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें नित्यानंद राय, रामकृपाल यादव और अशोक यादव के नाम शामिल हैं। 2019 में भी तीनों सांसद बीजेपी के टिकट पर चुने गए हैं। बीजेपी ने बिहार में राजपूतों के बाद सबसे ज्यादा तवज्जो यादवों को दी है, जिसका सीधा मकसद लालू प्रसाद यादव के कोर वोट बैंक यादव समुदाय में सेंधमारी करना है। बिहार में 16 फीसदी यादव वोटर हैं, जो किसी भी पार्टी का खेल बनाने या बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।
वहीं, बीजेपी ने मुजफ्फरपुर सी से राजभूषण निषाद, पश्चिम चंपारण से डॉ. संजय जयसवाल और सासाराम से शिवेश राम को उम्मीदवार बनाया है। मुजफ्फरपुर और सासाराम सीटों से पार्टी ने अपने मौजूदा सांसदों के टिकट काट दिए हैं और उनकी जगह उसी समुदाय के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इस तरह बीजेपी ने एक वैश्य, एक निषाद और एक दलित को उम्मीदवार बनाया है।
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