होम / Election 2024: 'माया' की 'माया' में बड़ा राज है

Election 2024: 'माया' की 'माया' में बड़ा राज है

Itvnetwork Team • LAST UPDATED : August 31, 2023, 1:47 pm IST
ADVERTISEMENT
Election 2024: 'माया' की 'माया' में बड़ा राज है

Election 2024: ‘माया’ की ‘माया’ में बड़ा राज है

India News (इंडिया न्यूज़), Rashid Hashmi, Election 2024: तो मायावती ने 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला किया है। बहनजी का फ़ैसला सियासी नज़रिए से देखा जा रहा है। कोई कहता है ये दलित वोटबैंक का ओवरकॉन्फ़िडेंस है, तो किसी की नज़र में ये ईडी और सीबीआई का डर, तो कोई कहता है कि 2019 में अखिलेश के साथ जाना मायावती की सबसे बड़ी सियासी ग़लती थी। मायावती ने फ़ैसले का ऐलान ऐसे वक़्त में किया जब सियासी फ़िज़ा में फारूक अब्दुल्ला से फ़ोन पर बातचीत की ख़बर घुल चुकी थी। 28 दलों के विपक्षी गठबंधन की नज़र उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के दलित वोट पर है, इसलिए मायावती की तरफ़ उम्मीद भरी नज़र से देखा जा रहा था। 4 बार देश के सबसे बड़े सूबे की CM, अब 1 विधानसभा सीट वाली पार्टी की मुखिया मायावती का अर्श से फर्श तक का सफ़र बहुत दिलचस्प है, जिस पर आगे बात करूंगा।

2012 के बाद मायावती की पार्टी का राजनीतिक रिवाइवल नहीं हुआ

उत्तर प्रदेश में लगभग 22 प्रतिशत दलित हैं। बसपा को 2022 में कुल 13 प्रतिशत वोट मिले जो साल 1993 के बाद सबसे कम है। वहीं, एक सीट के साथ बीएसपी अब तक के अपने सबसे खराब दौर में पहुंच गई है। साफ़ है कि पार्टी का बेस वोटर भी पार्टी से दूर हो गया है। लेकिन मायावती दलित वोटर्स के लिए आज भी वो चेहरा हैं, जिनकी तरफ़ समुदाय उम्मीद भरी निगाहों से देखता है। साल 2012 के बाद मायावती की पार्टी का राजनीतिक रिवाइवल नहीं हुआ। मायावती ने 2007 में सोशल इंजीनियरिंग के तहत ब्राह्मण और मुस्लिम को भी जोड़ा, लेकिन पार्टी में इनके बढ़ते दबदबे से दलितों और पिछड़ों का एक वर्ग बसपा से छिटक गया।

नतीजा 2014 लोकसभा चुनाव आते-आते बसपा के 10 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट खिसक गए। दलित बहुल सीटों पर भी इतना वोट नहीं मिला कि एक भी सांसद जीत जाता। सवर्ण अलग हो चुके थे, 2012 से लगातार बसपा का ग्राफ गिरता ही चला गया, पिछड़े चेहरे बसपा से बाहर होते गए तो वह वोट बैंक भी चला गया। हालांकि 2019 में वोट प्रतिशत तो नहीं बढ़ा, लेकिन सपा के साथ गठबंधन का फ़ायदा मिला और मायावती की पार्टी ने 10 सीटें अपनी झोली में डाल लीं। इन 10 सीटों का आत्मविश्वास ही है जो मायावती को एकला चलो की राह दिखा रहा है। हालांकि यूपी ही नहीं, समूचा हिंदुस्तान आज एक ही सवाल कर रहा है- क्या बहनजी कभी राजनीतिक अज्ञातवास से बाहर आ सकेंगी ?

मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहीं

साल 1984 में कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी बनाई, मायावती को नायब नियुक्त किया। पार्टी का विस्तार करने के लिए मायावती साइकिल से दिन दिन भर रैलियां करने जाती थीं। 2 साल में मायावती की पहचान मुखर और प्रखर दलित नेता की हो चुकी थी। 1986 में हरिद्वार (जो उस वक़्त यूपी में था) की रैली ने मायावती को अलग पहचान दिला दी। मायावती ने जनता से कहा 5 सवाल पूछूंगी और जवाब आपको देना है। उन 5 सवालों वाले भाषण ने मायावती को सत्ता के शिखर तक पहुंचा दिया। 1989 में लोकसभा चुनाव हुए, मायावती की जीत हुई और बसपा का वोट शेयर बीजेपी के मुक़ाबले बढ़ गया। मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। जून 1995 से अक्टूबर 1995 तक, फिर मार्च 1997 से सितंबर 1997 तक, तीसरी बार मई 2002 से अगस्त 2003 तक और चौथी बार मई 2007 से मार्च 2012 तक। मायावती की पहचान एक सख़्त प्रशासक की रही है, 1995 में जब पहली बार CM बनीं तो 4 महीने में साढ़े तीन सौ से ज़्यादा अफ़सरों का ट्रांसफ़र कर डाला, वो बात अलग है कि ट्रांसफ़र पोस्टिंग में भाई भतीजावाद के आरोप लगे।

‘वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा’

दलित राजनीति करने वाली मायावती के कई क़िस्से जिगरे वाले हैं। बचपन में ननिहाल गईं, सामने लकड़बग्घा था, नाना ने कहा दूर रहो, निडर मायावती उस लकड़बग्घा के पीछे भाग निकलीं। मायावती की सियासी बुनियाद में संघर्ष है, जिसे परिवारवाद ने पलीता लगाया। बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने हमेशा परिवारवाद का विरोध किया, लेकिन मायावती इससे बच नहीं सकीं। भतीजे आकाश आनंद और भाई आनंद को बसपा में मज़बूत बना दिया, आकाश की मदद के लिए उनके ससुर पूर्व राज्यसभा सदस्य अशोक सिद्धार्थ को भी कई ज़िम्मेदारी दे डाली। दलित वोटर को लगने लगा कि ‘वोट हमारा राज तुम्हारा, नहीं चलेगा’ का नारा गढ़ने वाली बहनजी ने पार्टी को परिवार और परिवार को पार्टी बना डाला।

अखिलेश ने खेला PDA पैंतरा

मायावती के सियासी प्रयोग बेअसर होने लगे हैं। दलित कोर वोटर हैं लेकिन मुस्लिम छिटक चुके हैं। 2022 विधानसभा चुनाव और 2023 निकाय चुनाव में मुस्लिम वोटर ने मायावती से मुंह मोड़ा है। इमरान मसूद के निष्कासन के बाद मुमकिन है कि बचे खुचे मुस्लिम वोट भी छिटकें, ऊपर से यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ नहीं जाने का फैसला भी मुस्लिमों को रास नहीं आ रहा। इधर अखिलेश ने PDA का पैंतरा चल दिया है, PDA यानि पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक। मायावती दलित और पिछड़ा वर्ग की राजनीति करती हैं, PDA से उन्हें झटका लगना तय है, इसका आभास बहनजी को है तभी तो कह डाला- “सपा द्वारा NDA के जवाब में PDA का राग, इन वर्गों के कठिन समय में केवल तुकबंदी के सिवाय और कुछ नहीं”।

2024 चुनाव के बाद मायावती और बसपा पर अस्तित्व का संकट तय

उत्तर प्रदेश में 22 प्रतिशत दलित वोट बैंक है जो OBC के बाद सबसे बड़ा वोटबैंक माना जाता है। दलितों में 66 उपजातियां हैं, इनमें जाटव प्रमुख हैं, 22 प्रतिशत में इनकी तादाद 10 फ़ीसदी से ज्यादा है। इसके अलावा वाल्मीकि, धोबी, कोरी और पासी भी दलित वोटर्स हैं। ये वोट पूरी तरह से बसपा का कोर वोट बैंक माना जाता था। ये वोटबैंक अब छिटक कर भारतीय जनता पार्टी की ओर शिफ़्ट होने लगा है। कांशीराम और मायावती के आंदोलन में जाटव को नेतृत्व मिला लेकिन बाक़ी 60 उपजातियां हाशिए पर रह गईं। अब भारतीय जनता पार्टी का फ़ोकस इन्हीं पर है। बीजेपी मायावती को सिर्फ़ जाटवों तक सीमित रखना चाहती है। अगर ऐसा हुआ तो मान कर चलिए कि 2024 चुनाव के बाद मायावती और बसपा पर अस्तित्व का संकट तय है।

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 17 सीटें आरक्षित

उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 17 आरक्षित सीटें हैं- नगीना, बुलंदशहर, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशांबी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर, रॉबर्ट्सगंज। मायावती का वोट तैयार करने वाली इन सीटों पर दलित छिटक चुके हैं। सच ये है कि इन्हें एकजुट करने के लिए पिछले 5 साल में मायावती ने कुछ ख़ास किया भी नहीं। आंदोलन से जन्मे नेता से संघर्ष की दरकार होती है, मायावती की सियासत में अब संघर्ष नहीं दिखता। भतीजे आकाश आनंद के कंधे पर हाथ रखकर शाबाशी देना बामसेफ़ आंदोलन को नेपथ्य में ढकेलता नज़र आता है। उधर भीम आर्मी चीफ़ ख़ुद को दलितों का मसीहा बताते नहीं थक रहे। मायावती के सामने चौतरफ़ा चुनौती है तो परिवार की चौहद्दी भी है। फैसला उन्हें करना है कि यहां से सरेंडर करें या सर्वाइवल।

यह भी पढ़े-

Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT