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मुस्लिम जोड़े ने 29 साल बाद दोबारा शादी की, कहा- मुस्लिम कानूनों में बेटियों को कम अधिकार

Kerala Couple Remarriage: केरल के कासरगोड जिले में एक मुस्लिम जोड़ा 29 साल बाद दोबारा शादी कर ली। इस जोड़े ने अपनी तीन बेटियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत दोबारा शादी की। एडवोकेट और अभिनेता सी शुक्कुर ने अपनी पत्नी शीना से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन […]

BY: Roshan Kumar • UPDATED :
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Kerala Couple Remarriage: केरल के कासरगोड जिले में एक मुस्लिम जोड़ा 29 साल बाद दोबारा शादी कर ली। इस जोड़े ने अपनी तीन बेटियों की आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत दोबारा शादी की। एडवोकेट और अभिनेता सी शुक्कुर ने अपनी पत्नी शीना से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन दोबार शादी की। शीना महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की पूर्व प्रो-वाइस चांसलर रही है।

  • इस्लामिक यूनिवर्सिटी ने फैसले को गलत बताया
  • 1994 में हुई थी शादी
  • दपंत्ती के अनुसार यह एक मात्र तरीका था

29 साल बाद शादी करने का कारण मुस्लिम विरासत कानूनों में लगाए गए प्रावधान है जो पुरुषों की तुलना में महिलाओं को बहुत कम अधिकार देते है। कानूनों में कहा गया है कि बेटियों को अपने पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा मिलेगा और बाकी पुरुष उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में उसके भाइयों के पास जाएगा।

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Kerala Couple Remarriage

केवल दो-तिहाई हिस्सा

एक फेसबुक पोस्ट में शुक्कुर ने कहा कि अतीत में दो बार ऐसा हुआ जब हमनें मौत को बहुत नजदीक से देखा, जिसने उन्हें यह सोचने के लिए प्रेरित किया कि वह अपनी बेटियों के लिए क्या छोड़ रहे हैं और क्या बेटियों को उनकी सारी बचत और संपत्ति मिलेंगी। उनकी चिंता यह थी कि 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट और अदालतों द्वारा लिए गए स्टैंड के अनुसार, पिता की संपत्ति का केवल दो-तिहाई हिस्सा बेटियों के पास जाता है और बाकी उसके भाइयों के पास जाता है अगर कोई पुरुष संतान नहीं होता।

एकमात्र तरीका एसएमए

इसके अलावा शरिया कानून के तहत वसीयत छोड़ने की अनुमति नहीं है। सिर्फ इसलिए कि वे लड़कियों के रूप में पैदा हुए हैं, उन्हें इस तरह के लैंगिक भेदभाव का सामना करना पड़ेगा। शुक्कुर के अनुसार, इस दुर्दशा से बाहर निकलने का एकमात्र तरीका विशेष विवाह अधिनियम (एसएमए) के तहत शादी करना है। उन्हें उम्मीद है कि उनका फैसला मुस्लिम परिवारों में बेटियों के साथ होने वाले लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने का रास्ता दिखाएगा और लड़कियों के आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ाने में मदद करेगा।

शरिया कानून की अवहेलना नहीं

शुक्कुर ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “अल्लाह हमारी बेटियों के आत्मविश्वास और सम्मान को बढ़ाए। अल्लाह और हमारे संविधान के सामने सभी समान हैं। पुनर्विवाह करने का उनका यह निर्णय किसी को या किसी चीज को या वर्तमान में मौजूद शरिया कानून की अवहेलना करना नहीं है। शीना और मैं अपने बच्चों के लिए दूसरी शादी कर रहे हैं।”

1994 में हुई शादी

एक टीवी चैनल से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हम सिर्फ अपनी बेटियों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते हैं। उनका निकाह 6 अक्टूबर, 1994 को हुआ था, उन्होंने कसारगोड जिले के होसदुर्ग तालुक के कान्हागढ़ में एक सब-रजिस्ट्रार के कार्यालय में अपनी बेटियों की मौजूदगी में दोबारा शादी किया।”

बढ़ रही संख्या

मीडिया रिपोर्ट बताती है कि ऐसे मुस्लिम कपल की तादाद बढ़ रही है जो संपत्ति को लेकर मुस्लिम लॉ से बचने के लिए सेक्युलर स्पेशल मैरिज एक्ट चुन रहे हैं। इस हिसाब से शरीयत को महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाला माना जाता है क्योंकि उसे पुरुष की तुलना में पैतृक संपत्ति का एक छोटा हिस्सा ही मिलता है।

फैसले की आलोचना 

डी एच इस्लामिक यूनिवर्सिटी की फतवा और रिसर्च काउंसिल ने शुक्कुर के फैसले की आलोचना की है। संस्था ने कहा कि जो अल्लाह पर विश्वास करते हैं, उन्हें इसको लेकर कोई हिचक नहीं होती है। उन्हें यह लालच नहीं होती कि संपत्ति उनके बच्चों को ही मिले।

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