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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली
CDS Bipin Rawat news: जब भी कोई विमान हादसा होता है जो सबके दिमाग में एक ही बात आती है कि जांच एजेंसियां उसके ब्लैक बॉक्स (Black Box) को ढूंढने की कोशिश में क्यों लगी रहती है। आखिर उसमें ऐसा क्या होता है जो दुर्घटना के हर राज को खोल देती है। बुधवार दोपहर जब पूरे देश के सामने ये खबर सामने आई की सीएसडी बिपिन रावत (CDS Bipin Rawat) का हेलीकॉप्टर कै्रश (Mi-17V5 helicopter) हो गया है, तब न सिर्फ उनके करीब बल्कि पूरा भारतवर्ष चिंतित हुआ और सभी लोग उनके कुशल होने की कामना करने लगे, लेकिन शायद समय को कुछ और ही मंजूर था और सीएसडी रावत के निधन की खबरों ने हर भारतवासी को वैचारिक और मानसिक रूप से तोड़ के रख दिया। आइए जानते हैं विमान क्रैश की जांच किस तरह होती है? हेलिकॉप्टर के किन-किन उपकरणों की मदद से जांच की जाती है? ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर क्या होता है?…
CDS Bipin Rawat family: हादसे के बाद जब जांच टीम मौके पर पहुंची तो हर जगह विमान के मलबों और घने जंगलो के बीच विमान का ‘ब्लैक बॉक्स’ ढूंढना एक बहुत बड़ा कार्य था, लेकिन फिर भी जांच टीम ने कुशलतापूर्ण ये काम किया और अंतत: ‘ब्लैक बॉक्स’ ढूंढ निकाला। अब अपने अंदर हेलीकाप्टर क्रैश की ‘मिस्ट्री’ रखे हुए इसी ‘ब्लैक बॉक्स’ से दुर्घटना की सारी जानकारी मिलेगी।
Mi-17V5 crashed: किसी भी विमान हादसे की जांच में सबसे अहम भूमिका ब्लैक बॉक्स और कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डर की होती है। इन दोनों को इस तरह डिजाइन किया जाता है कि खतरनाक क्रैश होने के बावजूद भी इन्हें नुकसान न हो और ये सुरक्षित रहें।
ब्लैक बॉक्स हर किसी प्लेन का सबसे जरूरी हिस्सा होता है। ब्लैक बॉक्स सभी प्लेन में रहता है चाहें वह पैसेंजर प्लेन हो, कार्गो या फाइटर हो। यह मजबूत स्टील या टाइटेनियम से बना इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्डिंग डिवाइस होता है, जो विमान के क्रैश होने पर जांचकतार्ओं को उसकी वजह जानने में मदद करता है। ब्लैक बॉक्स को फ्लाइट रिकॉर्डर भी कहते हैं। यह दो तरह के होते हैं। ब्लैक बॉक्स हवा की स्पीड, ऊंचाई, हेलिकॉप्टर की स्पीड और फ्यूल फ्लो जैसी करीब 80 टेक्निकल डिटेल को हर सेकेंड रिकॉर्ड करता है। ये एक दिन तक की डिटेल को स्टोर कर सकता है। बता दें ब्लैक बॉक्स का रंग काला नहीं, बल्कि नारंगी होता है, ताकि हादसे के बाद ये आसानी से नजर आ सके। ये अल्ट्रासोनिक पल्स भी भेजता है, ताकि इसे आसानी से डिटेक्ट किया जा सके। गहरे पानी के भीतर से भी ये लगातार 30 दिन तक हर सेकेंड पल्स भेज सकता है।
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ये विमान के भीतर की हर आवाज को रिकॉर्ड करता है। इसमें पायलट और क्रू के बीच की बातचीत, पैसेंजर की बीच की बातचीत और पायलट की एयर ट्रैफिक कंट्रोल से होने वाली बातचीत रिकॉर्ड होती है। आमतौर पर कॉकपिट वॉइस रिकॉर्डर को विमान के सबसे पिछले हिस्से में फिट किया जाता है, क्योंकि माना जाता है कि ये हिस्सा सबसे आखिर में हादसे का शिकार होता है।
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‘ब्लैक बॉक्स’ कोई आम चीज नहीं बल्कि अपने में एक खास उपकरण है। ये विमान की दिशा, ऊंचाई, ईंधन, गति, हलचल, केबिन का तापमान इत्यादि सहित 88 प्रकार के आंकड़ों के बारे में 25 घंटों से अधिक की रिकार्डेड जानकारी एकत्रित रखता है। यह बॉक्स 11000 सी के तापमान को एक घंटे तक सहन कर सकता है जबकि 260सी के तापमान को 10 घंटे तक सहन करने की क्षमता रखता है।
चूंकि ये एक सेना का हेलिकॉप्टर था, इस वजह से इसकी जांच भी सेना की निगरानी में ही होगी। इसे कोर्ट ऑफ इंक्वायरी कहा जाता है। जांच दल में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ ही टेक्निकल टीम भी शामिल होंगी। इसमें स्थानीय पुलिस की भी मदद ली जा सकती है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि हादसे की ट्राई सर्विस इन्क्वायरी एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह की अगुवाई में की जाएगी। सिंह इंडियन एयर फोर्स की ट्रेनिंग कमांड के कमांडर हैं और वे खुद भी हेलिकॉप्टर पायलट हैं।
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ट्राई सर्विस इन्क्वायरी यानी सेना की तीनों सेवाएं (थल,जल और वायु) मिलकर हादसे की जांच करेंगी। इसकी अगुवाई एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह करेंगे।
एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह इंडियन एयर फोर्स की फ्लाइंग ब्रांच में 29 दिसंबर, 1982 को हेलिकॉप्टर पायलट के तौर पर शामिल हुए थे। एयर मार्शल मानवेंद्र सिंह को इतने बड़े हादसे की जांच का जिम्मा सौंपे जाने की वजह यह मानी जा रही है कि वह खुद ही हेलीकॉप्टर पायलट हैं और उनके पास 6 हजार से भी ज्यादा घंटे का उड़ान अनुभव है। इस दौरान सियाचिन, उत्तर-पूर्व भारत, उत्तराखंड और पश्चिमी मरुस्थल से लेकर कांगो तक के चुनौतीपूर्ण इलाकों में सफलतापूर्वक उड़ान भरी है। उनका इस्पेक्शन और सेफ्टी से जुड़े विषय में भी खासा अनुभव रहा है। माना जा रहा है कि इसी वजह से उन्हें जांच का जिम्मा सौंपा गया है।
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