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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: Pink Tax
भारत में हमें सरकार को कई तरह के टैक्स चुकाने पड़ते हैं। इनमें से कुछ डायरेक्ट तो कुछ इनडायरेक्ट टैक्स होते हैं। इसी देश में महिलाओं को एक ऐसा टैक्स भी चुकाना पड़ता है जो अदृश्य है, लेकिन महिलाओं को इसकी कोई जानकारी ही नहीं होती है। इसका नाम पिंक टैक्स है। ये महिलाओं की ओर से चुकाई जाने वाली एक इनविजिबल कॉस्ट है। यह राशि उन्हें उन उत्पादों के लिये चुकानी पड़ती है जो विशेष तौर पर उनके लिये डिजाइन किये जाते हैं। उदाहरण के तौर पर जैसे एक ही कंपनी की शेविंग रेजर के लिए पुरुष 186 रुपए दे रहे हैं तो वहीं महिलाओं को उसी प्रोडक्ट के लिए 282 देने पड़ रहे हैं। यह कीमत पिंक टैक्स की वजह से है।
पिंक टैक्स को कई जगहों पर जेंडर बेस्ड प्राइस डिस्क्रिमिनेशन कहा जाता है। भारत समेत दुनिया के कई देशों में महिलाएं जरूरत की चीजों के लिए पुरुषों से ज्यादा पैसे देती हैं। यह टैक्स महिलाओं के लिए डिजाइन किए गए प्रोडक्ट और और मार्केटिंग लागत को देखते हुए लगाया जाता है। पिंक टैक्स असल में कोई सीधा टैक्स नहीं है यानी इसे इनकम टैक्स या वैल्यू एडेड टैक्स की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। कुल मिलाकर यह सरकार द्वारा निर्धारित प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कर की श्रेणी में नहीं आता है।
न्यूयॉर्क के डिपार्टमेंट आफ कंज्यूमर के एक अध्ययन में 800 से ज्यादा एक जैसे प्रोडक्ट की कीमतों की तुलना की गई। न्यूयॉर्क के डिपार्टमेंट आफ कंज्यूमर के एक अध्ययन में 800 से ज्यादा एक जैसे प्रोडक्ट की कीमतों की तुलना की गई। इसमें यह बात सामने आई कि महिलाओं के प्रोडक्ट्स की लागत पुरूषों के लिए बनाई गई वैसी ही चीजों की तुलना में करीब 7 फीसदी ज्यादा होती है। पर्सनल केयर प्रोडक्ट के मामले में यह अंतर 13 फीसदी तक बढ़ जाता है। महिलाओं को ब्यूटी प्रोडक्ट, ज्वेलरी, नेल पेंट, सैलून, कपड़े, शैंपू, ड्राई क्लीनिंग जैसी जरूरत की चीजों पर पिंक टैक्स देती हैं।
1994 में पहली बार कैलिफोर्नियाज असेंबली आफिस आफ रिसर्च की रिपोर्ट में पहली बार कपड़े धोने के डिटर्जेंट में इस तरह का भेदभाव सामने आया। लेकिन यह उससे काफी पहले से लगाया जाता रहा है। 2010 में कन्ज्यूमर रिपोर्ट के माध्यम से अमेरिका में हुई रिसर्च में मालूम हुआ कि एक ही तरह के प्रोडक्ट के लिए औरतें तकरीबन 13 प्रतिशत अधिक का भुगतान करती हैं। पुरुषों के परफ्यूम, जूते, पर्स, फेस वॉश और क्रीम महिलाओं की तुलना में सस्ते मिलते हैं। महिलाओं पर अच्छा दिखने का शुरू से दबाव होता है, जो कि पुरुषों पर कम या न के बराबर होता है। इस कारण से कंपनियां महिलाओं और पुरुषों के लिए एक ही उत्पाद और सर्विस को अलग-अलग दामों पर बेचती हैं।
आपको बता दें कि टैक्स को दो तरीके से समझा जा सकता है। पहले वो प्रोडक्ट्स जो खास तौर पर महिलाओं के लिए डिजाइन किये जाते हैं। इनकी कीमतें ज्यादा होती है। उदाहरण के तौर पर मेकअप का सामान, नेल पेंट, लिपस्टिक, आर्टिफिशियल ज्वेलरी, सेनिटरी पैड समेत कई ऐसी वस्तुएं हैं जो महंगी होती हैं। इन प्रोडक्ट्स के लिए महिलाओं को प्रोडक्शन कॉस्ट और मार्केटिंग कॉस्ट मिलाने के बाद भी करीब तीन गुना ज्यादा कीमत चुकानी पड़ती है। दूसरे वो प्रोटक्ट जो महिलाएं और पुरुष दोनों इस्तेमाल करते हैं। जैसे, परफ्यूम, डियोड्रेंट, हेयर आइल, रेजर, कपड़े समेत कई ऐसे प्रोडक्ट्स हैं जो एक ही कंपनी के होने के बावजूद कीमत अलग-अलग होते हैं।
प्रत्यक्ष कर/ डायरेक्ट टैक्स, जो प्रत्यक्ष रूप से लिया जाता है। प्रत्यक्ष टैक्स वह टैक्स होता है जिसका भुगतान व्यक्ति या कानूनी संस्था को सीधे सरकार को करना होता है।
अप्रत्यक्ष कर/ इंडायरेक्ट टैक्स, जो सरकार अप्रत्यक्ष रूप से लेती है। सेवाओं और उत्पादों पर लगाए जाने वाले कर को अप्रत्यक्षकर कहा जाता है। वर्तमान में सरकार द्वारा केवल एक अप्रत्यक्ष कर लगाया जाता है। इसे जीएसटी या गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स कहा जाता है।
पिंक टैक्स से बचने का सबसे पहला तरीका यह है कि आप पैकेजिंग पर न जाकर प्रोडक्ट क्वालिटी पर जाएं। अगर आपको लगता है कि महिला और पुरूषों के प्रोडक्ट में सिवाय पैकेजिंग के और कोई फर्क नहीं है तो आप सस्ता वाला प्रोडक्ट भी खरीद सकती हैं।
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