India News (इंडिया न्यूज),Delhi Pollution News: पॉल्यूशन के कारण बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) की बीमारी तेजी से बढ़ रही है, जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण, विशेष रूप से PM2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के संपर्क में आने से गर्भ में पल रहे बच्चों के दिमागी विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इससे न केवल ऑटिज्म के मामले बढ़ रहे हैं, बल्कि न्यूरोलॉजिकल समस्याएं भी तेजी से सामने आ रही हैं।
गर्भवती महिलाओं के लिए शुरुआती तीन महीनों में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक साबित हो सकता है। शोध के अनुसार, इस दौरान पॉल्यूशन के संपर्क में आने से गर्भस्थ शिशु में ऑटिज्म का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। जब बच्चे एक साल के होते हैं, तब भी प्रदूषण के संपर्क में आना उनके मानसिक विकास में बाधा डाल सकता है।
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ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों में लक्षण और व्यवहार एक जैसे नहीं होते। इस बीमारी के तीन मुख्य प्रकार हैं। अस्पेर्गेर सिंड्रोम सबसे हल्का प्रकार है, जिसमें बच्चे कुछ विषयों में गहरी रुचि दिखाते हैं लेकिन सामाजिक समस्याओं से अपेक्षाकृत दूर रहते हैं। परवेसिव डेवलपमेंटल डिसऑर्डर में लक्षण हल्के होते हैं और प्रभावित व्यक्ति सामाजिक मेलजोल से बचता है। क्लासिक ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में सामाजिक और संवाद कौशल की गंभीर कमी होती है, और वे असामान्य व्यवहार प्रदर्शित करते हैं।
ऑटिज्म के बढ़ते मामलों को देखते हुए समय पर इलाज बेहद जरूरी है। यदि इस समस्या को नजरअंदाज किया गया तो इससे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक असर पड़ सकता है। वायु प्रदूषण पर नियंत्रण और शुरुआती लक्षणों की पहचान करके ही इस गंभीर समस्या से निपटा जा सकता है।
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