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आज Chhath Puja का तीसरा दिन, जानें कब और कैसे दें सूर्य देव को संध्या अर्घ्य, नोट कर लें पूजा विधि

Chhath Puja 2025 Sandhya Arghya Vidhi: आज छठ महापर्व का तीसरा दिन है, यह सूर्य उपासना का सबसे पवित्र और वैज्ञानिक पर्व माना जाता है. यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें प्रत्येक दिन का अपना विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है. छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो शुद्धता और आत्मसंयम का प्रतीक है. दूसरे दिन खरना का आयोजन होता है, जहां व्रती बिना नमक का प्रसाद बनाकर उपवास की शुरुआत करते हैं.  तीसरे दिन यानी आज का दिन सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है  संध्या अर्घ्य का दिन. इस दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर उनकी कृपा का आह्वान किया जाता है.

 संध्या अर्घ्य का समय और महत्व

छठ पूजा में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने का विशेष विधान है. यह परंपरा जीवन के निरंतर चक्र का प्रतीक मानी जाती है  जहां अस्त होता सूर्य नई ऊर्जा, आशा और पुनर्जन्म का संकेत देता है. मान्यता है कि इस समय सूर्य देव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं और इस क्षण में अर्घ्य देने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि और संतान की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. 2025 में छठ पूजा के तीसरे दिन सूर्यास्त का समय शाम 05:40 बजे रहेगा. इसी समय व्रती जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करेंगे. अगले दिन यानी 28 अक्टूबर को सूर्योदय सुबह 06:30 बजे होगा, जब उगते सूर्य को अंतिम अर्घ्य देकर यह महापर्व संपन्न होगा.

संध्या अर्घ्य की विधि (Sandhya Arghya Vidhi)

संध्या अर्घ्य का आयोजन अनुशासन, शुद्धता और भक्ति के संगम का प्रतीक होता है. व्रती प्रातः स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं  प्रायः पीले या सफेद रंग के.  संध्या समय वे परिवार सहित नदी, तालाब या किसी स्वच्छ जलाशय के किनारे पहुंचते हैं. वहां एक सुरक्षित और समतल स्थान चुनकर पूजन की तैयारी की जाती है.

अर्घ्य के लिए आवश्यक सामग्री:

बांस की सूप या डालिया

ठेकुआ, गुड़, सिंघाड़ा, केले, नींबू और मौसमी फल

दीपक, अगरबत्ती, कपूर और घी

जल से भरा कलश या लोटा

पूजन स्थल पर दीपक जलाकर सूर्यदेव का ध्यान किया जाता है. व्रती सूर्यास्त के क्षण जल में खड़े होकर जल से अर्घ्य अर्पित करते हैं और सूर्यदेव के मंत्रों का उच्चारण करते हुए संकल्प लेते हैं.

मुख्य मंत्र:  ॐ आदित्याय नमः, ॐ सूर्याय नमः, ॐ भास्कराय नमः

इस दौरान वातावरण भक्ति, अनुशासन और सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है. व्रती के चेहरे पर असीम संतोष और श्रद्धा झलकती है मानो वे स्वयं प्रकृति से संवाद कर रहे हों.

संध्या अर्घ्य का आध्यात्मिक अर्थ

डूबते सूर्य को अर्घ्य देना यह दर्शाता है कि हम जीवन के हर चरण को स्वीकार करते हैं चाहे वह उदय हो या अस्त. यह पर्व हमें सिखाता है कि हर अंत के साथ एक नई शुरुआत छिपी होती है. प्रत्यूषा और उषा सूर्य की दो पत्नियां प्रतीक हैं उस संतुलन के, जो दिन और रात, कर्म और विश्राम, जीवन और मृत्यु के बीच विद्यमान है. छठ पूजा केवल पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि यह आत्म-शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का महापर्व है.

shristi S

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