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India News (इंडिया न्यूज़), Yudhishthir A Big Devotee Of Lord Ganesha: महाभारत का युद्ध अपने चरम पर था, और पांडवों की विजय की कामना उनके दिलों में गहराई से बसी हुई थी। यह युद्ध सिर्फ भौतिक शक्ति का प्रदर्शन नहीं था, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों की भी परीक्षा थी। विजय प्राप्त करने के लिए पांडवों ने एक विशेष और महत्वपूर्ण कदम उठाया – उन्होंने गणेश जी की पूजा की।
भगवान श्रीकृष्ण, जिन्होंने पांडवों को युद्ध की रणनीति और मार्गदर्शन प्रदान किया, ने पांडव भाइयों को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया। श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि गणेश जी, जिन्हें विघ्नहर्ता और सिद्धिविनायक कहा जाता है, उनकी पूजा करके वे विजय का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं। गणेश जी की पूजा से पहले सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और सफलता की राह खुलती है।
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धर्मराज युधिष्ठिर, जो पांडवों के सबसे बड़े भाई और एक दृढ़ निष्ठा वाले भक्त थे, ने इस निर्देश को गंभीरता से लिया। युधिष्ठिर ने विधिवत तरीके से गणेश जी की पूजा की और भगवान गणेश से युद्ध में विजय का आशीर्वाद मांगा। युधिष्ठिर की आस्था और भक्ति से प्रभावित होकर, गणेश जी ने उनकी पूजा स्वीकार की और विजय की शुभकामनाएं भेजी।
धर्मराज युधिष्ठिर के साथ बाकी पांडव भाइयों ने भी गणेश जी की पूजा की। उन्होंने सिद्धिविनायक की पूजा पूरी विधि-विधान से की, जिससे गणेश जी अत्यंत प्रसन्न हुए। पांडवों की सच्ची श्रद्धा और भक्ति ने गणेश जी को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने पांडवों को युद्ध में विजय और यश का आशीर्वाद प्रदान किया।
गणेश जी की पूजा के बाद, पांडवों ने युद्ध में विजय प्राप्त की और श्रीकृष्ण की सलाह का महत्व साबित कर दिया। यह घटना यह दर्शाती है कि धार्मिक आस्था और पूजा विधि केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान नहीं करतीं, बल्कि भौतिक लक्ष्यों की प्राप्ति में भी सहायक होती हैं।
इस प्रकार, महाभारत की इस कहानी में गणेश जी की पूजा की विशेषता और प्रभाव को एक दिव्य आशीर्वाद की तरह देखा जा सकता है, जो पांडवों की विजय की कुंजी बनी। गणेश जी की पूजा ने साबित कर दिया कि सच्ची श्रद्धा और भक्ति से कोई भी विघ्न दूर हो सकता है और सफलता की राह पर अग्रसर किया जा सकता है।
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