होम / Spiritual Aspect of Dussehra Festival दशहरे के त्यौहार का आध्यात्मिक पहलू

Spiritual Aspect of Dussehra Festival दशहरे के त्यौहार का आध्यात्मिक पहलू

India News Editor • LAST UPDATED : October 14, 2021, 1:29 pm IST

Spiritual Aspect of Dussehra Festival

रामायण की वास्तविक शिक्षा आध्यात्मिक है, जो हमें आत्म-तत्त्व की जानकारी देती है

संत राजिन्दर सिंह जी महाराज

हम सब यह जानते हैं कि भगवान राम अपने पिता की आज्ञा से चौदह वर्ष के बनवास पर गए। जहां रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया। जिसके कारण उन्हें सीता को रावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए युद्ध करना पड़ा। जिसमें राम की जीत हुई और वे सीता को वापिस लाए। तभी हर वर्ष दशहरे का त्यौहार मनाया जाता है। ये त्यौहार असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत का भी प्रतीक है।
रामायण की कथा के दो पहलू हैं-एक बाहरी और एक अंतरी। बाहरी पहलू के बारे में हम सब अच्छी तरह जानते हैं लेकिन अंतरी पहलू जोकि हमारी आत्मा से जुड़ा है उसके बारे में हम बहुत कम जानते हैं। रामायण की वास्तविक शिक्षा आध्यात्मिक है, जो हमें आत्म-तत्त्व की जानकारी देती है। इसमें आत्म-ज्ञान की पुरातन से पुरातन और सनातन से सनातन शिक्षा की व्याख्या की गई है, जो आत्मानुभव से संबंधित है। मगर हम इसके बाहरी पहलू तक ही सीमित रह जाते हैं। अगर हम दशहरे के त्यौहार के आध्यात्मिक पहलू पर एक नजर डालें तो हमें पता चलता है कि रामायण में जिस राम और रावण के युद्ध का वर्णन किया गया है, उसका आंतरिक संग्राम तो हरेक इंसान के अंदर निरंतर हो रहा है। इसमें मन की वृत्तियों की लड़ाई, नेकी और बदी की जंग जो हरेक इंसान के अंदर हो रही है, उसकी व्याख्या की गई है।
सभी संत-महापुरुषों ने रामायण के पात्रों का असली मतलब हमें समझाया है। उनके अनुसार राम से अभिप्राय उस प्रभु सत्ता से है जो सृष्टि के कण-कण में समाई हुई है, जिसे ‘संतों का राम’ कहा गया है। सीता से अभिप्राय हमारी आत्मा से है जोकि हमारे शरीर में कैद है और चौरासी लाख जियाजून के चक्कर में भटक रही है। इसके अलावा लक्ष्मण से अभिप्राय हमारे मन से है जो कभी भी शांत नहीं होता और हमेशा लड़ने को तैयार रहता है। रावण से मतलब हमारे अहंकार से है, जो हरेक इंसान के अंदर कूट-कूटकर भरा हुआ है। दशरथ का अर्थ हमारे मानव शरीर से है जोकि एक रथ के समान है, जिसमें पाँच ज्ञान-इंद्रियों और पाँच कर्म-इंद्रियों के 10 घोड़े बंधे हुए हैं, जो इसे चला रहे हैं।

संत-महापुरुष इसके आध्यात्मिक पहलू के बारे में हमें और विस्तार से समझाते हैं कि सीता यानि हमारी आत्मा जिसका बाहरी रूप हमारा ध्यान है, मन-इंद्रियों के घाट पर जीते हुए वह अपने आपको भूलकर इस दुनिया का रूप बन चुकी है। रावण रूपी अहंकार उसे हर लेता है और अपने साथ ले जाता है। राम और रावण का युद्ध होता है जिसमें राम की जीत होती है। वह सीता (आत्मा) को रावण (अहंकार) के पंजे से छुड़ाकर वापिस ले आते हैं। सीता जो उन्हें छोड़कर चली गईं थी, वह जिस्म-जिस्मानियत से आजाद होकर वापिस महाचेतन प्रभु में समा जाती है, जिसकी वो अंश है। दशहरे के त्यौहार का एक आध्यात्मिक पहलू यह भी है कि यह हमें घमंड को छोड़कर नम्रता से जीना सिखाता है। आमतौर पर इंसान (मानव) की यह आदत होती है कि वह सिर ऊंचा करके चलता है, अर्थात घमंड से अपना जीवन व्यतीत करता है। जो शब्द ‘मानव’ है, वह शब्द ‘मान’ से बना है क्योंकि मान केवल इंसान में होता है जो उसे घमंड या खराबी की तरफ ले जाता है। जो शब्द मानव है उसमें ‘व’ अक्षर भी जुड़ा हुआ है। ‘व’ बाहों को कहा जाता है। परमात्मा ने हमें बाहें किसलिए दी हैं? ताकि हम अच्छे कर्म कर सकें, अच्छी तरफ जा सकें और उनके जरिये असलियत यानि पिता-परमेश्वर की तरफ कदम बढ़ा सकें। ‘व’ शब्द इस और भी इशारा करता है कि प्रभु की बाहें हमें उठा रही हैं और हर वक्त हमारी संभाल कर रहीं है। अगर हम अपने जीवन पर एक नजर डालें तो हम पाएंगे कि ज्यादातर हम सभी अहंकार से अपना जीवन जीते हैं और यही हमारे विनाश का कारण है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि अहंकार के कारण ही रावण का पतन हुआ था। इंसान नम्र होने की जगह जब सिर उठाकर चलता है तो उसमें घमंड आना शुरू हो जाता है, जो उसको प्रभु से दूर ले जाता है। जब इंसान में घमंड आता है तो वह यह सोचता है कि मैं बहुत अच्छा हूं, मेरी वजह से यह हो रहा है, मेरी वजह से वह हो रहा है। वह यह भूल जाता है कि प्रभु का हाथ उसे सहारा दे रहा है, इसलिए वह खड़ा हुआ है नहीं तो वह गिर जाएगा।

जब हम किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में जाते हैं और उनके अनुसार अपना जीवन व्यतीत करते हैं तो उनकी दयामेहर से हमारा घमंड खत्म हो जाता है। तभी हमारी आत्मा का मिलाप प्रभु से होता है और फिर आत्मा और परमात्मा में कोई फर्क नहीं रहता। जैसा कि कहा गया है कि प्रभु$मनत्रमानव, और मानव-मनत्रप्रभु। हमारा घमंड ही हमें इस भ्रम में रखता है कि हम प्रभु से जुदा हैं। इसलिए प्रभु के रास्ते में हमारे लिए यह कई प्रकार की रूकावटें पैदा करता है जिससे कि हम अपनी आत्मा को पिता-परमेश्वर से नहीं जोड़ पाते। सभी संत-महापुरुष हमें समझाते हैं कि पिता-परमेश्वर हर वक्त हमारे साथ है, हमें सिर्फ उनका अनुभव करना है। जिस प्रकार विजयदशमी के दिन राम ने अहंकारी रावण को पराजित कर विजय प्राप्त की थी, ठीक उसी प्रकार हमें भी अपनी आत्मा (सीता) को इस शरीर के पिंजरे से आजाद करके पिता-परमेश्वर में लीन कराना है, जिसकी वो अंश है। तो आइये! हम वक्त के किसी पूर्ण गुरु के चरण-कमलों में पहुंचें और उनसे ध्यान-अभ्यास की विधि सीखें ताकि इसी जन्म में हमारी आत्मा का मिलाप पिता-परमेश्वर से हो जाए और वह चौरासी लाख जियाजून से छुटकारा पा जाए। तभी हम सच्चे मायनों में दशहरे के त्यौहार को मना पाएंगे।

Read More : अफगानों को लूट रही Pakistan Airline, तालिबान ने चालाकी पकड़ कहा- कर देंगे बैन

Connect Us : Twitter Facebook

Get Current Updates on News India, India News, News India sports, News India Health along with News India Entertainment, India Lok Sabha Election and Headlines from India and around the world.

ADVERTISEMENT

लेटेस्ट खबरें

NVS नॉन टीचिंग पदों के लिए फॉर्म अप्लाई करने की लास्ट डेट एक्सटेंड, 14 मई तक अब कर सकते हैं आवेदन- Indianews
New Maruti Swift: मारुति सुजुकी ले आई है 25 का माइलेज देने वाली यह कार, 7 लाख से भी कम है कीमत- Indianews
US Man Strangled Wife: अमेरिकी शख्स ने अस्पताल में की पत्नी की हत्या, मेडिकल बिल न चुका पाने पर लिया फैसला -India News
Honda Car Discount: गाड़ियों पर जबरदस्त डिस्काउंट ऑफर दे रहा Honda, रोड की बादशाह हैं इसकी गाड़ियां- Indianews
US News: अमेरिका में शर्मसार हुई मानवता, महिला ने बेटे को मारने से पहले कैमरे पर कहलवाया पिता को अलविदा -India News
Tata Nexon: ग्लोबल सेफ्टी रेटिंग एनकैप में इस कार को मिला 5-स्टार, कहते हैं इसे छोटा टैंक- Indianews
Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया पर करें ये उपाय, घर में होगा मां लक्ष्मी का प्रवेश- Indianews
ADVERTISEMENT