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Kalparambha Puja: बंगाल में आज से शुरू दुर्गा पूजा, जानें कल्पारम्भ पूजन का महत्व

Akanksha Gupta • LAST UPDATED : October 1, 2022, 3:04 pm IST

Kalparambha Puja: देश के अलग-अलग जगहों पर नवरात्रि विभिन्न तरीकों के साथ मनाई जाती है। नवरात्रि के दौरान बंगाल में सबसे अधिक धूमधाम रहती है। आज 1 अक्टूबर से बंगाली समुदाय की दुर्गा पूजा आरंभ हो गई है। दुर्गा पूजा का आरंभ अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की छठवीं तिथि से कल्पारम्भ परंपरा के साथ होता है। देश के बाकि के राज्यों में यह बिल्व निमंत्रण पूजन तथा अधिवास परंपरा के समान है। आइए आपको बताते हैं कल्पारम्भ पूजा का महत्व…

कल्पारम्भ पूजा मुहूर्त

हिंदू पंचांग के मुताबिक अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 30 सितंबर 2022, शुक्रवार से रात 10:34 से शुरू हो चुकी है। इसका समापन आज 1 अक्टूबर 2022 को 8:46 पर होगा। सुबह के शुभ मुहूर्त में कल्पारम्भ पूजा की जाती है। इस दिन बंगाल में मां दुर्गा की प्रतिमा के ऊपर से पर्दा हटाया जाता है।

ब्रह्म मुहूर्त – सुबह 04 बजकर 43 मिनट से सुबह 05 बजकर 31 मिनट तक

अभिजित मुहूर्त – सुबह 11 बजकर 53 मिनट से दोपहर 12 बजकर 40 मिनट

विजय मुहूर्त- दोपहर 02 बजकर 15 मिनट से दोपहर 03 बजकर 03 मिनट

गोधूलि मुहूर्त- शाम 06 बजकर 02 मिनट से शाम 06 बजकर 26 मिनट

रवि योग- 1 अक्टूबर 2022, सुबह 06 बजकर 19 मिनट से 2 अक्टूबर 2022 सुबह 03 बजकर 11 मिनट तक

कल्परम्भ पूजा का महत्व

आपको बता दें कि कल्पारम्भ, पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा अनुष्ठानों के शुभारंभ का प्रतीक माना जाता है। इस परंपरा को अकाल बोधन भी कहा जाता है। धर्म ग्रंथों के मुताबिक अकाल बोधन का अर्थ मां दुर्गा का असामयिक अव्हाना यानी माता रानी को असमय निंद्रा से जगाना होता है। चातुर्मास शुरु होने पर सभी देवी-देवता दक्षिणायान काल में निंद्रा अवस्था में चले जाते हैं। ऐसे में देवी मां को जागृत करके उनकी पूजा करने का विधान है। दुर्गा पूजा के समय कल्पारम्भ अनुष्ठान तथा नवरात्रि के दौरान प्रतिपदा तिथि पर किये जाने वाला घटस्थापना प्रतीकात्मक तौर के समान होता है।

भगवान राम ने किया था मां दुर्गा का अकाल बोधन

मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीराम ने माता सीता को लंकापति रावण से छुड़वाने के लिए ममतामयी मां दुर्गा का अकाल बोधन कर अनुष्ठान किया था। कहा जाता है कि श्रीराम द्वारा देवी मां के इस असामयिक आवाहन से ही शारदीय नवरात्रि और दुर्गा पूजा की परंपरा आरंभ हुई थी।

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