अजीत मेंदोला, नई दिल्ली।
3 Successful Years of Gehlot Govt : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तीसरे कार्यकाल के बीते तीन साल में मौका मिलने पर साबित किया कि उन्हें राजनीति का चाणक्य क्यों कहा जाता है।
बीजेपी के ताकतवर केंद्रीय नेतृत्व और अपनों की साजिश को जिस सूझबूझ से उन्होंने नाकाम कर अपनी सरकार को बचाया उससे साबित हुआ कि कांग्रेस की राजनीति के असल चाणक्य गहलोत ही हैं।
जहां तक तीन साल के कामकाज का सवाल है तो गहलोत ने सूखे के बाद कोरोना जैसी महामारी पर जल्द अंकुश लगा देश दुनिया का ध्यान अपनी तरफ खींचा। विरोधियों ने भी उनके कामकाज की सराहना की। यही नही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद दो तीन बार विरोधी दल के होने के बाद गहलोत के कामकाज की जमकर सराहना कर चुके हैं।
कोरोना काल में केंद्र ने भी गहलोत सरकार की नीति अपनाने को कहा 3 Successful Years of Gehlot Govt
केंद्र ने कोरोना के मामले में उनके सुझावों पर अमल कर राज्यों से भी अपनाने को कहा। गहलोत ने अपने पहले कार्यकाल 1998 से 2003 में भीषण सूखे में राज्य की जनता को भूखा नही मरने दिया था। गांव गांव सरकारी खर्चे पर अन्न का मुफ्त वितरण कर जनता पर अकाल का असर नही पड़ने दिया था।
देश दुनिया मे उनके इस तरह के फैसलों की काफी तारीफ हुई थी।कोरोना में भी गहलोत ने महामारी को फैलने से रोकने और जनता को बचाने के लिये दिन रात खुद नजर रख ऐसे फैसले किये जिससे राजस्थान सुर्खियों में आ गया।
राजस्थान ऐसा पहला राज्य बना जहाँ पर कोरोना पर सबसे पहले काबू पाया गया।
इसी बीच उन्होंने अपने 50 साल के राजनीतिक अनुभव के ऐसे दांव पेंच दिखाए कि अपने विरोधियों को तीसरा साल लगने से पहले ही पूरी तरह चित्त कर दिया । गहलोत के तीसरे कार्यकाल में उनकी सरकार ने 17 दिसम्बर को तीन साल पूरे किये।
तीन साल चुनौतियों से कम नहीं रहे 3 Successful Years of Gehlot Govt
50 साल का राजनीतिक अनुभव रखने वाले गहलोत के लिये ये तीन साल भी चुनोतियो से कम नही रहे।लेकिन अपनी तरह की राजनीति करने वाले गहलोत कभी भी अपने चेहरे पर कोई परेशानी नजर नही आने देते हैं।
1998 में जब वह पहली बार गहलोत मुख्यमंत्री बने तो तब भी उनके सामने सूखे के साथ साथ अपनों से जूझने की चुनोती भी साथ ही मिली। उन्होंने सभी चुनोतियों को स्वीकार कर उन्हें आराम से निपटाया। अपनों को साधने के बाद सूखे पर उन्होंने अपने तरीके से काम किया।
केंद्र में विपक्ष की सरकार और विरोधियों के तमाम हमलों के बाद भी जनता को सर्वोपरी रखा।गांव गांव खुद नजर रख अनाज के भंडार खोल दिये। सरकारी पैसा जनता की मदद में लगा दिया। उनके फैसलों की जमकर तारीफ भी हुई। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने आम जन से जुड़ी कई योजनाएं लागू करवाई।
लेकिन राजस्थान के अपने ट्रेंड के चलते जनता बदलाव करती रही। एक बार कांग्रेस एक बार बीजेपी।इसके चलते गहलोत लगातार दूसरा मौका नही ले पाये। लेकिन गहलोत के तीसरे कार्यकाल की शुरुआत भी चुनोती से ही हुई । गेरों से ज्यादा अपनों ने अड़चने डाली।
सरकार चलाना उनके लिये मुश्किल होने लगा। उन्हें आभास हो गया था कि बीजेपी कमजोर कड़ी तलाश सरकार को अस्थिर करेगी। यहीं उनका 50 साल का राजनीतिक अनुभव और चाणक्य राजनीति काम आई। मध्य्प्रदेश में कमलनाथ समझ नही पाए और उनकी सरकार चली गई।
राजस्थान में गहलोत चोंकना रहे।गहलोत सरकार बचाने में तो सफल हुए ही,लेकिन एक तीर से कई निशाने साध दिये।पार्टी में अपने विरोधियों को हाशिये पर तो लगाया ही सरकार और संगठन में अपनी पकड़ मजबूत की।विपक्ष में बीजेपी में फूट पड़ गई।गांधी परिवार ने भी माना कि गहलोत की सूझबूझ से ही सरकार बच पाई।
उसके बाद गहलोत को खुला हाथ दे दिया गया।गहलोत पार्टी में केंद्र में भी सलाहकार की भूमिका में नजर आने लगे।पार्टी के भीतर गांधी परिवार पर सवाल उठाने वालों के खिलाफ उन्होंने मोर्चा संभाला।इस तरह बीते तीन साल में वह धीरे धीरे ताकतवर होते चले गए।
यही नही केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से उनके करीबियों और परिवार पर ईडी के छापे डलवा घेरने की कोशिश भी की गई।लेकिन गहलोत पर कोई असर नही पड़ा। वह केंद्र पर हमलावर बने रहे। गहलोत कहते भी हैं कि केंद्र की मोदी सरकार के मंत्री और बीजेपी वाले उनके खिलाफ झूठ बोलने के अलावा कुछ नही करते हैं।
देश के हालात गंभीर हैं। उनकी नेता सोनिया गांधी,राहुल गांधी और प्रियंका गांधी बराबर देश को आगाह कर भी रहे हैं। जनता की समझ मे आने लगा है मोदी सरकार गरीब और किसान विरोधी है। आमजन से इन्हें कुछ लेना देना नही है महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
जानकार मान रहे, गहलोत सरकार वापसी कर सकती 3 Successful Years of Gehlot Govt
जानकार मान रहे हैं कि देश मे जो राजनीतिक हालात बन रहे है उसमें गहलोत सरकार वापसी कर सकती है। मुख्यमंत्री गहलोत भी समझ रहे हैं कि इस बार राजस्थान में सरकार फिर से वापस आ सकती है। इसलिये राजनीतिक फैसलों को वह इस तरह कर रहे हैं कि पार्टी में नाराजगी पूरी तरह से खत्म हो।
हालांकि राजनीतिक नियुक्तियों में कुछ देरी हुई है ,लेकिन उसे भी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।नए साल तक वह सब नियुक्तियां कर देंगे।इसके बाद गहलोत खुल कर अगले चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुट जाएंगे।हालांकि गहलोत उपचुनाव की जीत के बाद ही माहौल बनाने में जुट गए हैं।
जयपुर की सफल रैली से उन्होंने साबित भी कर दिया कि उनकी लोकप्रियता में अभी कोई गिरावट नही आई है।उमड़ी भीड़ से गहलोत को भी आभास हो गया है कि आमजन से जुड़े फैसलों को अभी से जमीन पर उतारा गया तो वापसी में आसानी होगी।
इसमे कोई दो रॉय नही है कि राजस्थान बीजेपी में जो राजनीतिक हालात बन रहे हैं उसका लाभ कांग्रेस उठाएगी।बीजेपी पूरी तरह से दो गुटों में बंटी है। सारा दारोमदार यूपी पर निर्भर करता है। अगर यूपी में बीजेपी का कमजोर प्रदर्शन हुआ तो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे समर्थकों का दावा मजबूत हो जायेगे।
केंद्रीय नेतृत्व की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।यदि पिछला प्रदर्शन दोहराती है तो राजे समर्थकों की दावेदारी पर संकट आ सकता है। दोनों ही परिस्थितयों में कांग्रेस लाभ की स्थिति में रहेगी।
झगड़े का पूरा लाभ कांग्रेस को मिलेगा। इसलिये कांग्रेस के पास राजस्थान में सरकार दोहराने का पूरा मौका रहेगा। गहलोत राजनीतिक चाणक्य के साथ बड़े जादूगर भी माने जाते हैं। इस बार पार्टी और कार्यकर्ताओं ने ईमानदारी से साथ दिया तो गहलोत वापसी का जादू दिखा सकते हैं।