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Citizenship Amendment Act: आसान भाषा में जानें क्या है CAA, भारतीय नागरिक पर क्या होगा असर?

Shanu kumari • LAST UPDATED : March 14, 2024, 8:40 pm IST
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Citizenship Amendment Act: आसान भाषा में जानें क्या है CAA, भारतीय नागरिक पर क्या होगा असर?

Citizenship Amendment Act (CAA)

India News (इंडिया न्यूज), Citizenship Amendment Act: देश में इन दिनों CAA को लेकर काफी चर्चा है। लोकसभा चुनाव से पहले सत्तारुढ़ भाजपा सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) लागू कर दिया है। जिसके बाद विपक्ष लगातार हमलावर है। CAA को लेकर देश के लोगों के बीच अलग-अलग राय है। कुछ लोग इस कानून के समर्थन में हैं तो कुछ इसे लेकर विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं। ऐसे में हमें यह जानना बेहद जरुरी है कि क्या है CAA और इसका देश पर क्या असर होगा। इससे भारतीय नागरिकों पर मुसिबत आएगी या परेशान शरणार्थी को राहत मिलेगा।

  • CAA का फायदा गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को ही क्यों? 
  • पड़ोसी मुल्कों में क्या है अल्पसंख्यकों की दशा

गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को होगा फायदा

बता दें कि देश में CAA के लागू होने से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए उन सभी गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों (हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को राहत मिलेगा, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत में दाखिल हुए थें। बता दें कि सिटीजनशिप एक्ट ऑफ 1955 में संशोधन करने के बाद CAA बनाया गया है। जिसके मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के उन प्रताड़ित नागरिकों को राहत मिलेगा जो उस देश से प्रताड़ित होकर भारत आए थें। इस कानून का मकसद मुस्लिम देशों के उन अल्पसंख्यकों को फायदा पहुचाना है, जिन्हें अपने ही देश में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा।

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अल्पसंख्यकों को बचाने की कोशिश

बता दें कि सत्तारुढ़ भाजपा सरकार काफी पहले से इस कानून को लाने की कोशिश में लगी थी। सबसे पहले इसे 2016 में लोकसभा में पेश किया गया। जिसके बाद इसे राज्यसभा में भेजा गया। हालांकि वहां बहुमत नही मिलने के कारण इसे पास नहीं कराया जा सका। जिसके बाद मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान 2019 में इसे लोकसभा में पेश किया। जहां से इसे फिर से पास कर दिया गया। इस बार 9 दिसंबर,2019 को राज्यसभा में भी बहुमत मिल गया। दोनों सदनों से बहुमत मिलने के बाद 10 जनवरी 2020 को भारत की राष्ट्रपति की ओर से भी मंजूरी दे दी गई। हालांकि देश में इस कानून को लेकर फैले अफवाहों की वजह से इसे लागू करने में काफी समय लगा।

नागरिकता के लिए ये शर्त

कानून को लागू करते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि इससे केवल उन्ही अल्पसंख्यकों को नागरिकता दी जाएगी, जो कि 31 दिसम्बर,2014  से पहले तक भारत आ चुके थें। साथ ही यह भी साफ बताया गया कि इससे भारत के किसी भी नागरिक पर कोई असर नहीं होगा चाहे वो मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम हो। साथ ही सरकार की ओर से यह भी जानकारी दी गई कि भारत मे रह रहे अल्पसंख्यकों को सरकार के किसी भी योजना का लाभ नहीं मिलता था। वो पहले के कानून की मदद से नागरिकता नहीं पा सकते थें, जिसकी वजह से कानून में संसोधन किया गया। हालांकि इसके लिए पहले काफी जांच पड़ताल की जाएगी।

गैर-मुस्लिमानों को ही क्यों दी जा रही नागरिकता

इस कानून में गैर-मुस्लिम शब्द एक बार फिर से सवाल उठाता है कि अगर नागरिकता दी जा रही है तो केवल गैर-मुस्लिमानों को ही क्यों दी जा रही है। जिसके जबाव में यह कहा गया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान मुस्लिम बहुल देश हैं। पड़ोसी मुस्लिम देशों से अल्पसंख्यक भारत इसलिए आएं क्योंकि उन्हें वहां भेदभाव, जबरन धर्म परिवर्तन और शारीरिक असुरक्षा का सामना करना पड़ना था।

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मुस्लिम बहुल देशों में अल्पसंख्यकों का हाल 

जारी किए गए आकड़े के मुताबिक 1947 में पाकिस्तान में 23% अस्पसंख्यक (ज्यादातर हिंदू और सिख) थें। अब वहां महज 5% अस्पसंख्यक बचे हैं। जिसमें हिंदुओं की जनसंख्या महज 1.65% ही रह गई। वहीं बांग्लादेश बनते समय वहां 19% हिंदू आबादी थी। 2016 के आकड़ों के मुताबिक अब केवल 8% बचे हैं। अगर हम भारत की बात करें तो 1947 बंटवारे के समय मुस्लमान अल्पसंख्यकों की संख्या 9.2 करोड़ थी। जो की अब लगभग 20 करोड़ पहुंच चुकी है। कुल मिलाकर भारत में अल्पसंख्यकों के हक और उनके सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है। इसलिए अब पड़ोसी मुल्क से भागे प्रताड़ित अल्पसंख्यकों को भारत में उनका हक दिया जाएगा। बता दें कि मुस्लिम बहुल पड़ोसी देशों में उच्चे पदों पर मुसलमानों को ही रखा जाता है। वहीं भारत का संविधान देश के अल्पसंख्यकों को ज्यादा से ज्यादा मौका देती है। साथ ही उन्हे धार्मिक मान्यताओं को फॉलो करने का भी अधिकार देती है।

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