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Lok Sabha Election 2024: क्या तीसरे मोर्चे की पारी पड़ेगी बीजेपी पर भारी?

India News(इंडिया न्यूज), Lok Sabha Election 2024: साल 1987, भारत में बोफ़ार्स घोटाले ने राजीव गाँधी और कांग्रेस  की छवि को इतना बर्बाद कर दिया कि कांग्रेस को 1989 में हार का मुंह देखना पड़ा।  पर उस समय देश के सामने ऐसी परिस्थति थी कि ना तो कोई बहुमत के साथ सरकार बनाने की स्थिति […]

BY: Itvnetwork Team • UPDATED :
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India News(इंडिया न्यूज), Lok Sabha Election 2024: साल 1987, भारत में बोफ़ार्स घोटाले ने राजीव गाँधी और कांग्रेस  की छवि को इतना बर्बाद कर दिया कि कांग्रेस को 1989 में हार का मुंह देखना पड़ा।  पर उस समय देश के सामने ऐसी परिस्थति थी कि ना तो कोई बहुमत के साथ सरकार बनाने की स्थिति में था और ना ही किसी शक्तिशाली विपक्ष के बनने की कोई उम्मीद थी।

ऐसी परिस्थिति में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का एक नया विकल्प सामने आया जो ना तो कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने के पक्ष में था और ना ही भजपा के साथ। ऐसे राजनीतिक दलों को राजनीतिक भाषा में तीसरा मोर्चा (Third Front ) कहा गया। तीसरा मोर्चा या THIRD FRONT का यह विकलप भारत की राजनीती का एक ऐसा मोड़ था जो आने वाले हर समय के लिए भारत की राजनीति को बदलने वाला था।

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फोटो- सोशल मीडिया

तीसरे मोर्चे से बनी पहली केंद्रीय  सरकार (1989–1991)

तीसरा मोर्चा या THIRD FRONT के मॉडल पर नेशनल फ्रंट, जनता दल के नेतृत्व में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों का एक गठबंधन था, जिसने 1989 और 1990 के बीच भारत की सरकार बनाई थी। नेशनल फ्रंट गठबंधन से बनी केंद्रीय सरकार के पहले प्रधानमंत्री  वीपी  सिंह थे, जिनके बाद चन्द्रशेखर प्रधानमंत्री बने।

हालाँकि तीसरा मोर्चा या THIRD FRONT के वीपी सिंह और चंद्रशेखर दोनों ही अपना कार्यकाल पूरा ना कर पाए और इसके बाद राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रतिनिधित्व जनता दल और भारतीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) द्वारा किया गया। जहाँ पीवी नरसिम्हा राव, नेहरू-गांधी परिवार के बाहर लगातार पांच वर्षों तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करने वाले पहले व्यक्ति थे।

तीसरे मोर्चे से बनी दूसरी  केंद्रीय  सरकार (1996–1998)

1996 के केंद्रीय चुनावों के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 161 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और भाजपा को सरकार बनाने के लिए सबसे पहले आमंत्रित किया गया। भाजपा ने इस  प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली। हालाँकि, वह सदन में बहुमत साबित नहीं पाए और 13 ही
दिन बाद  उनकी सरकार गिर गई।

इसके बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने देश की अन्य12 क्षेत्रीय दलों के साथ मिलाकर तीसरा मोर्चे बनाया, जिसे संयुक्त मोर्चा या United Front कहा गया। संयुक्त मोर्चा (United Front) से बनी सरकार ने हालांकि अपना 5 वर्ष का कार्यकाल तो पूरा नहीं किया पर इस तीसरे मोर्चे  से बनी सरकार ने एक बार फिर सेकिंग मेकर की भरपूर भूमिका निभाई।

संयुक्त मोर्चा (United Front) के इस गठबंधन  ने 1996 और 1998 के बीच दो सरकारें बनाई जिसके पहले प्रधानमंत्री जनता दल के एच. डी.देवेगौड़ा थे, और दुसरे आई. के. गुजराल थे। यह वह समय था जब विद्यार्थी सबसे ज्यादा पशोपेश की स्थिति में थे, क्योंकि वह यह समझ नहीं पा रहे थे की आखिर देश के प्रदानमंत्री का नाम है क्या। संयुक्त मोर्चा (United Front) के इस गठबंधन से बनी सरकार का पतन 1998 हुआ और इसके बाद देश को  नए चुनावों को झेलना पड़ा।

तीसरे मोर्चे के मॉडल पर INDIA  गठबंधन  (2024–???)

पिछ्ले 10  सालों में लगातार पूर्ण बहुतमत की सरकार बना चुकी भाजपा देश में हो चुके कई चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार आज भी देश की नंबर एक  पसंद है। कई स्वतंत्र चुनाव सर्वेक्षणों के अनुसार देश के लगभग 52% वोटर्स अभी भी नरेंद्र मोदी को देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

ऐसे ही कई अन्य चुनावी  सर्वेक्षणों के अनुसार कांग्रेस नेता राहुल गाँधी से ज्यादा वोटर्स कांग्रेस के ही सचिन पायलट को देश का प्रधानमंत्री के रूप में देखते है और अगर नेता विपक्ष की बात करें तो वोटर्स राहुल गाँधी से ज्यादा अरविन्द केजरीवाल या ममता दीदी को संसद में नेता विपक्ष देखना चाहते हैं।

अब अगर एक बार को इन चुनावी  सर्वेक्षणों को अनदेखा भी कर दिया जाये कि INDIA गठबंधन बनने के बावजूद भी देश में हवा अभी भी मोदी जी और भाजपा की ही चल रही है, पर इतिहास के पन्नों को तो नहीं झुठलाया जा सकता कि तीसरा मोर्चा या THIRD FRONT के मॉडल पर गठबंधन से अगर सरकार बनती है तो देश को किंग मेकर्स और टांग खींचने वाले तो दिखेंगे पर प्रधानमंत्री नहीं|

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