कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से लोकसभा सांसद शशि थरूर एक बार फिर पार्टी की अहम बैठक से अनुपस्थित रहे, जिससे उनके कांग्रेस नेतृत्व के साथ रिश्तों पर नए सिरे से सवाल खड़े हो गए हैं. यह लगातार तीसरी बार है जब थरूर ने कांग्रेस की संसदीय मीटिंग में हिस्सा नहीं लिया, जबकि बैठक में शीतकालीन सत्र के बचे हुए दिनों की रणनीति पर चर्चा होनी थी.
राहुल गांधी ने 19 दिसंबर को समाप्त हो रहे शीत सत्र से पहले कांग्रेस के सभी 99 लोकसभा सांसदों की एक बैठक बुलाई थी, जिसमें सरकार को कैसे घेरना है, इस पर रूपरेखा तय की जानी थी. इस महत्वपूर्ण रणनीतिक बैठक में शशि थरूर मौजूद नहीं थे, जबकि पार्टी इसे एकजुटता दिखाने का मौका मान रही थी. इससे पहले भी दो बैठकों में उनकी गैरहाज़िरी दर्ज हो चुकी है, जिससे यह अनुपस्थिति सिर्फ संयोग नहीं, बल्कि पैटर्न की तरह दिखने लगी है.
थरूर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर बताया था कि वह कोलकाता में अपने पुराने सहयोगी जॉन कोशी की शादी, अपनी बहन स्मिता थरूर के जन्मदिन और एक कार्यक्रम में शरीक होने के लिए गए हैं. इस निजी कार्यक्रम के कारण वह दिल्ली की बैठक से दूर रहे, लेकिन पार्टी गलियारों में इसे केवल “शेड्यूल क्लैश” से अधिक राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है.
पिछले कुछ समय से थरूर कई मुद्दों पर अपेक्षाकृत ‘स्वतंत्र’ रुख अपनाते दिखे हैं और वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुछ मौकों पर खुलकर तारीफ भी कर चुके हैं, जिसे कांग्रेस के भीतर असहजता का कारण माना जा रहा है. बार-बार की अनुपस्थिति और उनके बयानों ने अटकलों को हवा दी है कि क्या वह पार्टी लाइन से दूरी बना रहे हैं या सिर्फ व्यक्तिगत शैली के कारण निशाने पर हैं. हालांकि, उन्होंने अब तक किसी तरह की बगावत या अलग राह की औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन कद्दावर नेता होने के नाते उनकी हर चाल राजनीतिक संकेत के रूप में देखी जा रही है.
इस बैठक से एक और वरिष्ठ और अक्सर ‘अलग राय’ रखने वाले नेता मनीष तिवारी भी गायब रहे. तिवारी पहले भी पार्टी की रणनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और कानूनों पर अपनी स्वतंत्र राय के लिए चर्चा में रहे हैं, इसलिए उनकी अनुपस्थिति ने भी राजनीतिक चर्चाओं को तेज कर दिया है.
लगातार तीन बैठकों से दूरी यह संकेत देती है कि कांग्रेस के भीतर असंतोष की हलचलें पूरी तरह थमी नहीं हैं, खासकर उन नेताओं में जो खुद को “विचारधारात्मक रूप से स्वतंत्र” मानते हैं. शीत सत्र जैसे अहम समय में ऐसे वरिष्ठ सांसदों का सामूहिक रूप से मीटिंग से बाहर रहना, पार्टी की एकजुट छवि और विपक्षी रणनीति दोनों के लिए चुनौती बन सकता है. फिलहाल थरूर ने इसे व्यक्तिगत कार्यक्रम से जुड़ा मामला दिखाया है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह स्पष्ट संदेश है कि आंतरिक संवाद और भरोसे की राजनीति को और मज़बूत करना पड़ेगा.
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