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मातृभाषा में होनी चाहिए बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा, जल्द समझेंगे नन्हे-मुन्हे

India News Desk • LAST UPDATED : May 1, 2022, 7:31 pm IST
  • दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह के उद्घाटन अवसर पर वेंकैया नायडू ने किया संबोधित
  • भारतीयों के जीवन में योगदान देना जारी रखेंगे : कुलपति

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने कहा है कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। इसी के साथ उन्होंने कहा कि भारतीय शिक्षा प्रणाली को हमारी संस्कृति पर भी ध्यान देना चाहिए। वेंकैया ने दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते रविवार को ये बातें कही।

उन्होंने इस अवसर पर विश्वविद्यालय को 100 साल पूरे करने पर बधाई भी दी। उपराष्ट्रपति ने कहा, मैं इस विश्वविद्यालय के विकास और प्रगति के लिए इसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक बनाने के लिए सभी लोगों को बधाई देना चाहता हूं।

कुलपति योगेश सिंह ने कहा, हमने अकादमिक उत्कृष्टता के 100 साल पूरे कर लिए हैं। डीयू बहुत अच्छा कर रहा है। हम भारतीयों के जीवन में अपना योगदान देना जारी रखेंगे।

वेंकैया नायडू ने कहा कि बच्चों की प्रारंभिक शिक्षा मातृभाषा में होगी तो बच्चे इसे समझ सकेंगे। अगर उन्हें किसी अन्य भाषा में शिक्षा दी जाती है, तो पहले उन्हें वह भाषा सीखनी होगी, उसके बाद वह उस भाषा को समझेंगे।

उपराष्ट्रपति ने इस बात पर जोर दिया कि बच्चों को पहले अपनी मातृभाषा सीखनी चाहिए और उसके बाद दूसरी भाषाएं सीखनी चाहिए।

उन्होंने कहा, किसी को भी अपनी भाषाओं में प्रवीणता होनी चाहिए और मूल विचार होने चाहिए। वेंकैया नायड विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह में वह मुख्य अतिथि पहुंचे थे।

उनके अलावा शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी इस कार्यक्रम में उपस्थिति रहे। उपराष्ट्रपति ने समारोह के दौरान 100 रुपए का एक स्मारक सिक्का, एक स्मारक शताब्दी टिकट और एक स्मारक शताब्दी खंड यानी किताब की भी शुरूआत की। इस किताब में विश्वविद्यालय के सफर का एक सचित्र प्रतिनिधित्व दशार्या गया है।

वेंकैया ने अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (हिंदी संस्करण), अंडरग्रेजुएट करिकुलर फ्रेमवर्क (यूजीसीएफ) 2022 (संस्कृत संस्करण), और एक ब्रोशर, दिल्ली विश्वविद्यालय एक झलक भी लान्च किया।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा के महत्व पर जोर

धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा, स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने से छात्रों की रचनात्मकता को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा के महत्व पर जोर दिया गया है।

स्थानीय भाषा छात्र की रचनात्मकता को दिशा देने में मदद करती है। उन्होंने तीन भाषाओं हिंदी, तेलुगु और अंग्रेजी, में ब्रोशर जारी करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय को बधाई दी।

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