1971 War Memories
1971 War Memories: देश-दुनिया के सिनमाघरों में फिल्म ‘धुरंधर‘ धूम मचा रही है. कमाई के मामले में रोजाना रिकॉर्ड टूट रहे हैं. इस फिल्म में अक्षय खन्ना का रहमान डकैत का निभाया गया किरदार सबसे ज्यादा चर्चा में है. वह कराची के ल्यारी इलाके में अंडरवर्ल्ड डॉन बनकर ‘कसाई’ की तरह लोगों की हत्याएं करता था. इस फिल्म सबसे ज्यादा रोल अक्षय खन्ना का ही पसंद किया जा रहा है. इस बीच पाकिस्तान के सैन्य अधिकारी रह चुके टिक्का खान का जिक्र भी हो रहा है. इस सैन्य अधिकारी ने पूर्वी पाकिस्तान में बांग्लादेश की मांग कर रहे विद्रोहियों को कुचलने के लिए 7000 लोगों की हत्याएं करवा डालीं. इनमें बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चे थे. इन हत्याओं की चर्चा विदेश तक हुई थी. इसको लेकर पाकिस्तान की आलोचना भी हुई थी. इसके बाद ही पाकिस्तान में भारत की इसमें एंट्री हुई. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना की हालत पस्त कर दी. पद्म विभूषण से सम्मानित फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ 1971 के युद्ध के नायक थे. उन्होंने पाकिस्तान के विरुद्ध भारत को गौरवान्वित किया.
1960 के दशक में ही पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह की आग जोर पकड़ रही थी. यह हिस्सा पाकिस्तान से अलग होने के लिए छटपटा रहा था. लोग सड़कों पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे थे. हालात बेकाबू होने लगे तो वर्ष 1969 में ही पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति याह्या खान ने टिक्का खान को पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) भेजा दिया. कुछ महीनों तक उसने परिस्थितियों को समझा फिर याह्या खान की सहमति के बाद मिलिट्री कमांडर और बाद में गवर्नर के तौर पर टिक्का खान ने पूर्वी पाकिस्तान में ऑपरेशन सर्चलाइट का नेतृत्व किया.
कहा जाता है कि उसे साफ संदेश और संकेत दिया गया था कि कुछ भी करो, लेकिन बंगाली राष्ट्रवादी आंदोलन को कुच दो. इसका मतलब सैन्य अधिकारी टिक्का खान को पूरी छूट दी गई थी. यहां आने के साथ ही टिक्का खान ने सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी. इसे ही ‘ऑपरेशन सर्चलाइट‘ नाम दिया गया था. वह विद्रोहियों को संदेश देना चाहता था कि अगर सिर उठाया तो कुचल दिए जाओगे. इसका जमकर प्रतिरोध किया. इसके बाद टिक्का खान हैवानियत पर उतर आया. पाकिस्तान की इस सैन्य अधिकारी ने इस विद्रोह को कुचलने के लिए हिंसक कार्रवाई की. इस कार्रवाई के दौरान बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक ही रात के दौरान 7000 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था. उसके साथी/सैनिक कसाई की तरह लोगों को काट रहे थे. उनकी नजर में बच्चे, बूढ़े और महिलाएं गाजर-मूली के समान थे. इस हिंसक घटना के बाद ही टाइम मैगजीन ने टिक्का खान को ‘बांग्लादेश का कसाई’ कहा था. 20वीं सदी में एशिया के किसी भी देश में इस तरह का कृत्य हुआ था. हैरत की बात यह है कि उसने यह सब अपने ही नागरिकों के साथ किया.
पूर्वी पाकिस्तान में दाखिल होते ही ऑपरेशन सर्चलाइट का नेतृत्व करने वाला सैन्य अधिकारी टिक्का खान मोर्चा संभाल चुका था. इससे पहले ही 16 अगस्त, 1971 की सुबह ही माहौल बिगड़ने लगे थे. इसके भी संकेत दिखने लगे थे कि हालात कभी भी बेकाबू हो सकते हैं. ढाका की सड़कों पर भीड़ जमा थी. सड़कों पर और गलियों में ‘लड़के लेंगे पाकिस्तान’ जैसे नारे गूंज रहे थे. टिक्का खान उस दिन बहुत अशांत था. भीड़ को देखकर वह गुस्से से भर जाता था. सुबह से दोपहर हो गई. दोपहर तक आते-आते दोनों समुदायों के गुस्से ने खतरनाक शख्स अख्तियार कर ली थी. भीड़ आखिरकार बेकाबू हो गई. दोनों ओर से तलवार, छुरे, रॉड और बंदूक चलने लगीं. आमने-सामने खड़े लोग एक दूसरे पर टूट पड़े. देखते-देखते सैकड़ों लोग मारे गए. घायलों की संख्या इससे भी कहीं अधिक थी.
दरअसल, पाकिस्तानी सेना ने ‘ऑपरेशन सर्चलाइट‘ 25 मार्च 1971 को शुरू किया. इसमें बड़े पैमाने पर नरसंहार और अत्याचार हुए. लाखों लोग भारत में शरण लेने के लिए मजबूर हुए. इस दौरान ही ‘मुक्ति बाहिनी‘ (Liberation Army) का गठन किया गया. लोगों का विरोध दबाने के लिए बच्चे और महिलाओं से लेकर बुजुर्गों तक को मौत के घाट उतार दिया. कहा जाता है कि एक रात में 7 हजार लोगों का नरसंहार किया. टिक्का खान के नरसंहार की कहानी लिखने वाले रॉबर्ट पेन ने अपनी किताब में बताया है कि 1971 में 9 महीनों के अंदर दो लाख औरतों और लड़कियों का दुष्कर्म किया गया. टाइम मैग्जीन ने टिक्का खान की बर्बरता को बताते हुए उसे ‘बांग्लादेश का कसाई’ कहा था. इसके अलावा यह घटना दुनियाभर में सुर्खियां बनी थी.
16 दिसंबर, 1971 को इतिहास रचा जाना था. भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान को उसकी औकात दिखाने का इरादा कुछ महीने पहले ही कर लिया था. आखिरकार उनका इरादा रंग लाया और आखिरकार 1971 में पाकिस्तान की हार हुई. इसके बाद वहां के लोगों का आंदोलन बांग्लादेश के स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में जन्म के साथ खत्म हो गया. इससे पहले सिर्फ 13 दिनों में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की हालत पस्त कर दी. वह हार गया और 93 हजार से अधिक पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर किया. इसके साथ ही पूर्वी पाकिस्तान का जन्म बांग्लादेश के रूप में हुआ.
बांग्लादेश के जन्म के साथ वहां पर शांति आ गई, लेकिन टिक्का खान का कारनामा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. अपने हिंसक कृत्यों के चलते टिक्का खान पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका था. पाकिस्तान के लोगों ने भी उसे क्रूर माना. उधर, ऑपरेशन सर्चलाइट को अंजाम देने के बाद पाकिस्तानी सेना में उसका कद और बढ़ गया. क्रूर टिक्का खान को लगातार प्रमोशन मिले. 1972 वह पाकिस्तान का पहला थल सेना अध्यक्ष बना. 1976 में वह रिटायर हुआ. 87 साल की उम्र में 28 मार्च, 2002 को रावलपिंडी में टिक्का खान की मौत हो गई. टिक्का खान भले ही दुनिया में नहीं है, लेकिन उसकी चर्चा इसलिए भी हो रही है, क्योंकि रहमान डकैत का किरदार चर्चा में आ गया है. बताया जा रहा है कि पाकिस्तान यह सैन्य अफसर ल्यारी के रहमान डकैत से भी खूंखार था. रहमान डकैत पास गुंडे थे, तो टिक्का खान के बाद सैनिकों के रूप में गुंडे.
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