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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली
देश-दुनिया में कोरोना (Corona) के नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) ने तहलका मचा के रख दिया है। आए दिन ओमिक्रॉन के केसों में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। भारत में दो दिसंबर से आज 28 दिसबंर तक यानि 26 दिनों में ओमिक्रॉन वेरिएंट अब तक 21 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुका है।
कोरोना महामारी को खत्म करने की जहां सरकार हर प्रयास कर रही है तो वहीं लगता है वैक्सीन कंपनियां (Corona Vaccine Companies) ऐसा नहीं चाहती हैं कि कोरोना जैसी महामारी खत्म हो क्योंकि फाइजर, बायोएनटेक और मॉडर्ना जैसी दिग्गज फॉर्मा कंपनियां कोविड-19 वैक्सीन को अमीर देशों को बेचकर हर मिनट लाखों रुपये कमा रही हैं। इतनी महामारी में गरीब देश कोविड-19 वैक्सीन की पर्याप्त खुराक पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। आखिर ऐसा क्यों है, आइए जानते हैं।
आपको बता दें कि छह दिसंबर 2021 को यूएस सीनेटर बर्नी सैंडर्स ने एक ट्वीट में लिखा, ‘ये घृणित है। पिछले हफ्ते ओमिक्रॉन वेरिएंट (Coronavirus) के फैलने की खबर आते फाइजर और मॉडर्ना के आठ इन्वेस्टर्स ने 75 हजार करोड़ रुपए (Coronavirus vaccines) (Pfizer Moderna Investors Earned Rs 75000 Crores) कमा लिए। ये समय है कि ऐसी फार्मा कंपनियां अपने लालच पर कंट्रोल करें और दुनिया के साथ वैक्सीन शेयर करें। अब बहुत हो गया!’
पहली बात, नए वेरिएंट और बूस्टर डोज को वैक्सीन कंपनियां (COVID-19 vaccine) कमाई का जरिया बना रही हैं। दूसरी बात कोरोना का डर दिखाकर दुनियाभर में वैक्सीन कंपनियों की मनमानी (leading corona vaccine companies) चल रही है।
पीपुल्स वैक्सीनेशन अलायंस (पीवीए) के मुताबिक, वैक्सीन की तीन बड़ी (corona vaccine producing companies) कंपनियों फाइजर, मॉडर्ना और बॉयोएनटेक ने 2021 में हर सेकेंड एक हजार डॉलर का मुनाफा कमाया। हैरानी की बात ये है कि इन कंपनियों ने अपने वर्चस्व का इस्तेमाल करके अमीर देशों की सरकारों से मुनाफे वाले कॉन्ट्रैक्ट किए। वहीं गरीब देशों को वैक्सीन की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया। पीवीए के मुताबिक, फाइजर और बॉयोएनटेक ने अपनी कुल वैक्सीन सप्लाई का महज एक फीसदी गरीब देशों को भेजा, वहीं मॉडर्ना ने सिर्फ 0.2फीसदी सप्लाई भेजी।
Intellectual property rights in India: गरीब देशों की 98 फीसदी आबादी पूरी तरह वैक्सीनेटेड नहीं है। अवर वर्ल्ड इन डाटा’ के मुताबिक दक्षिण अमेरिका में 55 फीसदी लोग कोविड वैक्सीन की पूरी खुराक ले चुके हैं। उत्तरी अमेरिका, यूरोप और ओशेनिया में आधे से ज्यादा लोगों को पूरी खुराक लग चुकी है।
एशिया में अभी 45 फीसदी लोग वैक्सीन की पूरी खुराक ले पाए हैं, जबकि अफ्रीका में यह आंकड़ा महज 6 फीसदी है। इजराइल जैसे देश चौथी डोज की तैयारी कर रहे हैं वहीं गरीब देशों की 94फीसदी आबादी को पहला डोज ही नसीब नहीं हुआ। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि वैक्सीन में ऐसी असमानता बनी रही तो कोरोना महामारी जल्द खत्म नहीं होगी।
आपको बता दें कि वैक्सीन कंपनियों को अरबों डॉलर की सरकारी फंडिंग मिली है। इसके बावजूद उन्होंने दवा बनाने की तकनीक और अन्य जानकारियां गरीब देशों की कंपनियों से साझा करने से इनकार कर दिया। ऐसा करके लाखों जानें बचाई जा सकती थीं। वैक्सीन कंपनियां किसी भी कीमत पर पेटेंट अपने पास रखना चाहती हैं।
डाउन टु अर्थ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस प्रस्ताव को रोकने के लिए अमेरिकी फार्मा कंपनियों के संगठन द फार्मास्यूटिकल रिसर्च एंड मैन्युफैक्चरिंग आॅफ अमेरिका ने महज कुछ दिनों में 50 मिलियन डॉलर, यानी करीब 3 हजार 700 करोड़ रुपए से अधिक नेताओं पर और लॉबिंग में खर्च कर दिए। यही नहीं दवा कंपनियों की मजबूत लॉबिंग की वजह से भारत का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं हो पाया।
ब्रिटिश मीडिया के मुताबिक, फाइजर को वैक्सीन का एक डोज तैयार करने में एक डॉलर यानी करीब 75 रुपए खर्च आता है। इसे कंपनी 30 डॉलर में बेचती है। यूके जैसे देश 30 गुना ज्यादा कीमत देकर फाइजर की वैक्सीन खरीद रहे हैं। मोनोपॉली का फायदा उठाकर फाइजर ने यूके गवर्नमेंट के साथ डील भी की है कि उनके बीच के सौदे सीक्रेट रहेंगे। एक रिपोर्ट के मुताबिक मॉडर्ना भी अपनी लागत से 15 गुना तक वैक्सीन की कीमत वसूलती है।
फाइजर के अल्बर्ट बोरला का कहना है कि वैक्सीन डोज की कीमत बिल्कुल लॉजिकल है। इसकी कीमत हाई इनकम वाले देशों में भोजन की एक थाली के बराबर, मध्यम आय वाले देशों में भोजन की आधी थाली के बराबर और निम्न आय वाले देशों में वैक्सीन की लागत के बराबर है। जहां तक सभी को वैक्सीन देने की बात है, कंपनियां इसके लिए प्रतिबद्ध हैं।
जॉनसन एंड जॉनसन का दावा है कि उसने 100 करोड़ डोज गरीब देशों के लिए रखा है। फाइजर का कहना है कि वो 41 फीसदी डोज मध्यम और निम्न आय वाले देशों को देगा। हालांकि गरीब और मध्यम आय वर्ग वाले देशों को वैक्सीन मिलने में देरी क्यों हो रही है, इसका ठीक-ठीक जवाब कोई नहीं दे रहा है।
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