India News (इंडिया न्यूज), IIT and IFFM Indore: IIT इंदौर और भारतीय वन प्रबंध संस्थान (आईआईएफएम) द्वारा किए गए एक शोध अध्ययन ने मध्य प्रदेश के होशंगाबाद वन प्रभाग में जंगल की आग से गैर-लकड़ी वन उत्पादों (एनटीएफपी) पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को उजागर किया है। इस अध्ययन को साउथ एशियन नेटवर्क फॉर डेवलपमेंट एंड एनवायरनमेंटल इकोनॉमिक्स (एसएएनडीईई-आईसीआईएमओडी) द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी।
शोध के तीन बड़े निष्कर्ष
आईआईटी इंदौर की डॉ. मोहनासुंदरी ने बताया कि जंगल की आग से एनटीएफपी पर तीन प्रमुख प्रभाव सामने आए हैं। पहला, बार-बार और भीषण आग से न केवल पर्यावरणीय क्षति होती है, बल्कि आर्थिक हानि भी होती है, जिसका फायदा सिर्फ कुछ लोगों को मिलता है। दूसरा, छोटे पैमाने की नियंत्रित आग से एनटीएफपी के पुनर्जनन में मदद मिल सकती है। तीसरा, कृषि के बावजूद एनटीएफपी छोटे भूमि धारकों के लिए एक महत्वपूर्ण आय स्रोत बना हुआ है।
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रोजगार और आय में सुधार के लिए सुझाव
शोध ने जंगल की आग को रोकने और वन-आश्रित समुदायों की आजीविका सुधारने के लिए तीन नीतिगत सुझाव दिए हैं:
1. अग्नि निगरानी कार्यक्रम: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में आग की रोकथाम के लिए निगरानी कार्यक्रम शुरू किए जाएं, जिससे नए रोजगार अवसर भी पैदा होंगे।
2. एनटीएफपी के मूल्य संवर्धन: महुआ लड्डू, कुकीज और प्राकृतिक साबुन जैसे उत्पादों के उत्पादन को बढ़ावा देकर ग्रामीणों की आय बढ़ाई जाए।
3. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली: एमएसपी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अधिक खरीद केंद्र और डिजिटल प्लेटफॉर्म की सुविधा दी जाए, जिससे बिचौलियों से बचा जा सके।
आईआईटी इंदौर के निदेशक प्रो. सुहास जोशी ने कहा कि यह शोध जंगल की आग के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने और वन समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम दिखाता है। जंगल की आग केवल जैव विविधता को नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका को भी प्रभावित करती है।