Categories: News

पूरी तरह से डिजिटल होगी भारत की 2027 की जनगणना

Census: भारत की अगली जनगणना, जो COVID-19 की वजह से 2021 से टलती चली आ रही है, 2027 में शुरू होगी. यह जनगणना डिजिटल होगी और जनगणना करने वाले कर्मचारी डेटा इकट्ठा करने और यूनिक वेरिफ़िकेशन ID जेनरेट करने के लिए अपने पर्सनल Android या iOS स्मार्टफ़ोन पर मोबाइल ऐप का इस्तेमाल करेंगे, जबकि नागरिक एक वेब पोर्टल के ज़रिए खुद गिनती कर सकते हैं. 

यह देश का पहला पूरी तरह से डिजिटल ऑपरेशन होगा, जो एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी. 2011 के बाद से देश में जनगणना नहीं हुई है.  

दो चरणों में होगा पूरा प्रोसेस

जनगणना का पूरा प्रोसेस दो फ़ेज़ में बांटा गया है: अप्रैल से सितंबर 2026 तक घरों की लिस्टिंग और मैपिंग की जाएगी, इसके बाद फ़रवरी-मार्च 2027 में आगे का प्रोसेस किया जायेगा. अधिक ठंडे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों जैसे हिमाचल प्रदेश, लद्दाख आदि में बर्फबारी होने से पहले ही जनगणना का पूरा प्रोसेस करना सुनिश्चित किया जायेगा, जिससे नागरिकों और जनगणना में शामिल कर्मचारियों को समस्या न हो. 

खास इनोवेशन

इस जनगणना में नागरिकों की संपूर्ण डिटेल्स शामिल की जाएंगी. इसमें हर बिल्डिंग के लिए जियो-टैगिंग, अंग्रेज़ी, हिंदी और 16 से ज़्यादा क्षेत्रीय भाषाओं के लिए सपोर्ट, और जन्म की जगह, पिछली जगह, रहने का समय और वजहों का डिटेल्ड माइग्रेशन डेटा शामिल है. 1931 के बाद पहली बार, इसमें सिर्फ़ अनुसूचित जातियों और जनजातियों के अलावा सभी समुदायों की जातियों की भी गणना की जाएगी. कोऑर्डिनेशन सेंसस मैनेजमेंट एंड मॉनिटरिंग सिस्टम (CMMS) पोर्टल के ज़रिए रियल-टाइम डेटा को इकठ्ठा किया जायेगा. CMMS पोर्टल में बिल्ट-इन वैलिडेशन, GPS इंटीग्रेशन और सटीकता के लिए AI-फ्लैग्ड एरर होते हैं, जिनसे गलती होने की न्यूनतम संभावना होती है.

डिजिटल जनगणना के फायदे

डिजिटल टूल्स लगभग 10 दिनों में प्रोविजनल रिजल्ट और 6-9 महीनों में फाइनल डेटा देने में सक्षम होते हैं, जिससे 2011 जैसी पेपर-बेस्ड सेंसस में लगने वाली कई साल की देरी कम हो जाती है. बेहतर माइग्रेशन ट्रैकिंग और एरर में कमी से 2029 चुनाव क्षेत्रों के लिए अर्बन प्लानिंग, फंड एलोकेशन और डिलिमिटेशन में सुधार होगा. 

चुनौतियां

डिजिटल जनगणना के कई फायदे होने के बावजूद इसमें कुछ चुनौतियाँ भी हैं. देश में हर जगह इंटरनेट एक्सेस एक जैसा नहीं है. देश भर में 65% क्षेत्रों में इंटरनेट एक्सेस तक आसान पहुंच है लेकिन ग्रामीण, नॉर्थईस्ट और हिमालयी इलाकों में ये बेहद कम है. ऐसी स्थिति में हाशिए पर रहने वाले समुदाय या पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली जनजाति के लोगों की गणना प्रभावित होने की आशंका जताई जा रही है. तीन मिलियन एन्यूमेरेटर्स (ज़्यादातर टीचर), बुज़ुर्गों और माइग्रेंट्स के बीच डिजिटल लिटरेसी की कमी के लिए गहरी ट्रेनिंग की ज़रूरत है, जबकि प्राइवेट डिवाइस पर सेंसिटिव जाति और माइग्रेशन डेटा पर साइबर सिक्योरिटी संबंधी खतरे भी उत्पन्न हो सकते हैं. 

Shivangi Shukla

Share
Published by
Shivangi Shukla

Recent Posts

गंगोत्री हाईवे के चौड़ीकरण को लेकर लिए अनोखा विरोध प्रर्दशन, लोगों ने पेड़ों पर रक्षासूत्र बांधकर उनको बचाने का दिया संदेश

Gangotri Protest: एनवायरनमेंट एक्टिविस्ट का कहना है कि गंगोत्री घाटी सिर्फ़ एक रोड प्रोजेक्ट का…

Last Updated: December 13, 2025 10:00:53 IST

पश्चिम बंगाल में SIR ने कर दिया खेला,58 लाख वोटर हुए बाहर

West Bengal: पश्चिम बंगाल में SIR के बाद 58 लाख से ज़्यादा नाम बाहर कर…

Last Updated: December 13, 2025 10:06:54 IST

‘Sholay- The Final Cut’ क्यों देखें? कितना अलग है नया वर्जन? क्या है इमरजेंसी से गब्बर की ‘मौत’ का कनेक्शन; यहां जानें सब

Sholay The Final Cut: 'शोले- द फाइनल कट' नाम से री-रिलीज हुई फिल्‍म 1975 में…

Last Updated: December 13, 2025 09:48:39 IST

वैभव सूर्यवंशी ने UAE में मचाया धमाल, बिहार के लड़के का प्रर्दशन देख दंग रह गए शेख, 56 गेंदों में ठोका शतक

Vaibhav Suryavanshi:वैभव सूर्यवंशी ने एक बार फिर कमाल कर दिया है. सूर्यवंशी ने अंडर-19 एशिया…

Last Updated: December 13, 2025 09:01:28 IST

दिल्ली के कालकाजी में एक ही परिवार के 3 लोगों ने किया सुसाइड, मचा हड़कंप

Delhi: दिल्ली के कालकाजी इलाके से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है.…

Last Updated: December 13, 2025 08:15:24 IST