Tejpratap Yadav
Tejpratap Yadav: बिहार की राजनीति एक बार फिर सुर्खियों में है. तेजस्वी यादव ने हाल ही में एक टीवी इंटरव्यू में घोषणा की है कि वे कभी भी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में वापस नहीं लौटेंगे. उन्होंने यह बात सिर्फ शब्दों में ही नहीं, बल्कि गीता की शपथ लेकर और भगवान कृष्ण का नाम लेकर कही.
तेजस्वी यादव का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक घोषणा नहीं है; यह बिहार की मौजूदा और भविष्य की राजनीति में एक मोड़ साबित हो सकता है.
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तेजस्वी यादव ने अपने बयान को सिर्फ एक घोषणा तक सीमित नहीं रखा, उन्होंने इसे एक अटल शपथ में बदल दिया. उन्होंने कहा, “मैं गीता और भगवान कृष्ण की शपथ लेता हूं कि मैं कभी भी राष्ट्रीय जनता दल में वापस नहीं लौटूंगा.”
ऐसी भावनात्मक और धार्मिक भाषा का इस्तेमाल करके तेजस्वी ने साफ कर दिया है कि उनका यह फैसला सिर्फ मतभेद का नहीं, बल्कि सिद्धांतों का मामला है.
तेजस्वी ने अपने इंटरव्यू में यह भी स्पष्ट किया कि उनके पारिवारिक संबंध मजबूत और मायने रखते हैं. अपने माता-पिता के प्रति सम्मान जताते हुए उन्होंने कहा, “माता-पिता हमारे भगवान हैं. हम उन्हें अपने दिल में रखते हैं; उनकी छवि हमेशा हमारे मन में रहती है.”
यह बयान बताता है कि राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, पारिवारिक संबंध नहीं टूटे हैं. तेजस्वी चाहते हैं कि उनके राजनीतिक फैसलों को उनके निजी संबंधों से अलग देखा जाए.
तेजस्वी ने यह भी घोषणा की है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव महुआ सीट से लड़ेंगे. खास बात यह है कि उन्होंने कहा कि वे इस बार अपनी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे. इसके अलावा, उन्होंने अपनी बहनों के लिए भी दरवाज़ा खुला रखा है, कहा, “अगर मेरी बहनें राजनीति में आना चाहती हैं और मेरे साथ आना चाहती हैं, तो मैं उन्हें अपनी पार्टी से टिकट दूंगा.” यह असल में परिवार के भीतर एक वैकल्पिक राजनीतिक राह का प्रस्ताव है.
तेजस्वी लंबे समय से अपनी अलग राजनीतिक पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं. चाहे वह खुद को ‘भगवान कृष्ण’ के रूप में दिखाना हो या अपनी राजनीतिक विचारधारा को बढ़ावा देना हो, उन्होंने हमेशा RJD की पारंपरिक शैली से थोड़ा अलग रास्ता चुना है.अब जब उन्होंने RJD से अलग होने की औपचारिक घोषणा कर दी है, तो यह तय है कि वे अपनी नई पहचान बनाने के लिए अपनी सारी ऊर्जा लगा देंगे.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तेजस्वी यादव की “नई शुरुआत” बिहार विधानसभा चुनाव में चुपचाप गेम बदल सकती है. जहां आरजेडी तेजस्वी यादव के नेतृत्व में अपनी पारंपरिक राजनीतिक सोच और मजबूत पकड़ बनाए रखना चाहती है, वहीं तेजस्वी यादव की नई पार्टी या राजनीतिक मंच आरजेडी से नाखुश लेकिन यादव परिवार के करीब रहने वाले वोटरों को अपनी ओर खींच सकता है. यह भी संभव है कि तेजस्वी यादव का यह नया रास्ता अन्य छोटी पार्टियों या युवा नेताओं को वैकल्पिक राजनीतिक गठबंधन बनाने के लिए प्रेरित करे.
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