Who is Dada Kushal Singh Dahiya: दादा कुशाल सिंह दहिया (Dada Kushal Singh Dahiya) के दिखाए साहस, कर्तव्य और बलिदान को आज भी याद किया जाता है. उनकी याद में राज्य ने महान नायक के 350वें शहीदी वर्ष मनाया. दादा कुशाल सिंह दहिया ने नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के सम्मान की रक्षा के लिए खुद अपना सिर कुर्बान कर दिया था. उन्होंने यह बलिदाल साल 1675 में गुरु तेग बहादुर के लिए दिया था. उन्हें मुगल बादशाह औरंगजेब के आदेश पर मारा गया था. उनका यह बलिदान इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है. वह हिंदू-सिख एकता का प्रतीक बनकर लोगों के लिए आज एक प्रेरणा का स्त्रोत बनकर उभरे हैं. 350वें शहीदी वर्ष पर हरियाणा सरकार ने राज्य स्तरीय कार्यक्रम आयोजित कर श्रद्धांजलि दी. पीएम मोदी भी 25 नवंबर को कुरुक्षेत्र आने वाले हैं.
दादा कुशाल सिंह दहिया की वीर कहानियां जितनी अधिक सुनाई जाएं उतनी कम हैं. कश्मीरी पंडितों को जबरन इस्लाम कबूल कराने पर गुरु तेग बहादुर ने दिल्ली में अपना सिर दे दिया. उनका सिर आनंदपुर साहिब ले जाने के लिए भाई जैता को सौंपा गया था. मुगलों के क्रर सैनिक उनका पीछा करते हुए राई गांव तक पहुंच गए थे. लेकिन भाई जैता तूफान का फायदा उठाकर आगे निकल गए. गांव के मुखिया दादा कुशाल सिंह ने देखा कि मुगल गुरु के सिर को खोज रहे हैंष तो उन्होंने पने बड़े बेटे को तलवार थमाई और खुद अपना सिर कटवाकर मुगलों को सौंप दिया. जिससे मुगल भ्रमित हो गए और असली शीश सुरक्षित आनंदपुर पहुंच गया. जिसके बाद उस गांव का नाम ‘बढ़खालसा’ (खालसा की रक्षा करने वाला) पड़ गया. कुशाल सिंह का यह बलिदान हिंदू-धर्म रक्षा और सिख गुरु के प्रति निष्ठा का प्रतीक बना.
दिल्ली के चांदनी चौक में औरंगजेब के आदेश पर गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया गया था. क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल करने से इंकार कर दिया था. साथ ही उन्होंने कश्मीरी पंडितों का भी साथ दिया था. आज उसी जगह पर गुरुद्वारा शीश गंज साहिब का है. उनका पार्थिव शरीर र का अंतिम संस्कार दिल्ली में गुरुद्वारा रकाब गंज साहिब वाली जगह पर हुआ था.
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