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"दस दिन तक नहाया नहीं, शौच करना मुश्किल" तु्र्की गए कर्मियों ने सुनाई 'आॉपरेशन दोस्त' की कहानी

दिल्ली (NDRF Team Of operation Dost): 18 महीने के जुड़वा बच्चे को छोड़ कर एक अधिकारी रातों-रात 140 से अधिक पासपोर्ट तैयार करवाता है। बचावकर्ता 10 दिनों तक नहा नहीं पाते है। भूकंप प्रभावित तुर्की में एनडीआरएफ कर्मियों की कुछ ऐसी ही चुनौतियां रहीं। भारत का ‘आॉपरेशन दोस्त’ तुर्की-सीरिया में समाप्त हो गया है। इस […]

BY: Roshan Kumar • UPDATED :
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दिल्ली (NDRF Team Of operation Dost): 18 महीने के जुड़वा बच्चे को छोड़ कर एक अधिकारी रातों-रात 140 से अधिक पासपोर्ट तैयार करवाता है। बचावकर्ता 10 दिनों तक नहा नहीं पाते है। भूकंप प्रभावित तुर्की में एनडीआरएफ कर्मियों की कुछ ऐसी ही चुनौतियां रहीं। भारत का ‘आॉपरेशन दोस्त’ तुर्की-सीरिया में समाप्त हो गया है। इस कठिन मिशन के बाद भारत लौट आए कर्मियों ने अपने अनुभव साझा किए।

उनके दिल का एक हिस्सा अभी भी सोच रहा था कि क्या “हम और लोगों की जान बचा सकते थे”, फिर भी एक हिस्सा प्रभावित लोगों से मिले प्यार और स्नेह से भरा हुआ था। इनमें से एक है डिप्टी कमांडेंट दीपक, तर्की के एक परिवार ने यह सुनिश्चित किया कि दीपक जहां भी हो उन्हें शाकाहारी भाोजन मिल सके।

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शाकाहारी भोजन में मदद

दीपक ने कहा कि अहमद और उनके परिवार के पास जो कुछ भी शाकाहारी था जैसे सेब या टमाटर। उन्होंने इसे स्वादिष्ट बनाने के लिए इसमें नमक या स्थानीय मसाले डाले। जिससें वह बहुत प्रभावित हुए। भारत ने तुर्की के आपदा क्षेत्र में 152 सदस्यीय तीन राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) टीमों और छह कुत्तों को भेजा था। एनडीआरएफ ने सबसे मुश्किल समय में लोगों की मदद की जिसने वहां के लोगों में दिलों मे स्नेह पैदा किया।

टीम ने 85 शव निकाले 

जब बचाव दल वापस आ रहा था तब तुर्की के कई नागरिकों ने अपने ‘हिंदुस्तानी’ दोस्तों को धन्यवाद दिया और कृतज्ञता के आंसू बहाए। एनडीआरएफ ने 7 फरवरी को अपना ऑपरेशन शुरू किया था जिसमें दो युवा लड़कियों को जिंदा बचाया गया था और भारत लौटने से पहले मलबे से 85 शव निकाले। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को अपने सरकारी आवास पर उनका अभिनंदन किया।

44,000 लोग मारे गए

तुर्की और पड़ोसी सीरिया के कुछ हिस्सों में 6 फरवरी को आए 7.8-तीव्रता के भूकंप और बाद के झटकों की श्रृंखला में 44,000 से अधिक लोग मारे गए हैं, जिससे हजारों इमारतें और घर तबाह हो गए हैं। एनडीआरएफ के महानिरीक्षक (आईजी) एनएस ने कहा, “विदेश मंत्रालय के कांसुलर पासपोर्ट और वीजा (सीपीवी) विभाग ने हमारे बचावकर्ताओं के लिए रातोंरात पासपोर्ट तैयार किए। उन्होंने सैकड़ों दस्तावेजों को मिनटों में उपलब्ध करवाया क्योंकि भारत सरकार ने एनडीआरएफ को तुर्की के लिए आगे बढ़ने का निर्देश दिया था।”

रातों-रात तैयार हुआ पासपोर्ट

एक अन्य अधिकारी ने कहा कि 152 में से केवल कुछ अधिकारियों के पास विदेशी यात्रा के लिए एक राजनयिक पासपोर्ट था, पासपोर्ट बनाने के लिए कोलकाता और वाराणसी में एनडीआरएफ की टीमों से सैकड़ों दस्तावेज फैक्स और ईमेल पर भेजे गए थे। सेकेंड-इन-कमांड (ऑपरेशन) रैंक के अधिकारी राकेश रंजन ने कहा, “तुर्की ने हमारी टीमों को आगमन पर वीजा दिया और जैसे ही हम वहां उतरे, हमें नूरदगी (गजियांटेप प्रांत) और हटे में तैनात कर दिया गया।”

जुड़वां बच्चों को छोड़ना पड़ा

कॉन्स्टेबल सुषमा यादव (32) उन पांच महिला बचावकर्मियों में शामिल थीं, जिन्हें पहली बार किसी विदेशी आपदा से निपटने के अभियान में भेजा गया था। इस अभियान में जाने का मतलब उनके लिए अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को पीछे छोड़ना था। लेकिन उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। वह कहती है कि अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा? हमारा काम हमारे बचावकर्मियों को सुरक्षित, स्वस्थ और पोषित रखना था ताकि वे शून्य से नीचे के तापमान में बीमार हुए बिना अपना काम कर सकें।

माता-पिता को दिक्कत नहीं थी

सुश्री यादव ने पीटीआई से कहा “मैंने अपने जुड़वां बच्चों को अपने ससुराल वालों के पास छोड़ दिया था और यह पहली बार था जब मैंने उन्हें इतने लंबे समय के लिए छोड़ा था। लेकिन ऑपरेशन के लिए स्वेच्छा से जाने में कोई कठिनाई नहीं हुई।” सब-इंस्पेक्टर शिवानी अग्रवाल ने कहा कि ऑपरेशन के लिए जाते समय उसके माता-पिता को कोई समस्या नहीं थी, लेकिन हालचाल जानने के लिए वहां से बात करना मुश्किल था।

रसद तैयार किया

सुश्री अग्रवाल ने कहा “भारत और तुर्की के बीच लगभग 2.5 घंटे का समय अंतराल है। इसलिए जब तक मैं फ्री होती थी तब तक भारत में रात के 11:30 बज चुके होते थे। आईटीबीपी से 2020 में बल में शामिल होने वाली कांस्टेबल रेखा ने कहा कि वे आपदा की चपेट में आई महिलाओं तक पहुंचीं, जबकि उन्होंने बचाव दल के लिए रसद तैयार करने में मदद की।

लोगों ने दोस्त कहा

दूसरे-कमांड-रैंक के अधिकारी वीएन पाराशर ने जमीन पर अपनी टीम का नेतृत्व किया, उन्होंने कई सैन्य पैच दिखाए जो पुलिस और सेना की वर्दी पर लगे होते हैं। यह उन्हें आभार के प्रतीक के रूप में सौंपे गए थे, यहां तक ​​कि उनके और उनके टीम के सदस्यों का ‘एनडीआरएफ-इंडिया’ और एनडीआरएफ का लोगो ‘चेस्ट और आर्म्स बैज’ स्थानीय लोगों द्वारा ‘भारत के दोस्तों’ की याद के रूप में लिया गया। पराशर ने कहा कि उन्हें और अन्य लोगों को कई लोगों से व्हाट्सएप संदेश मिले, जिन्होंने उन्हें ‘धन्यवाद’ लिखा और उन्हें भेजने से पहले इसे Google से हिंदी में अनुवादित किया।

भारतीय फिल्मों का जिक्र

एनडीआरएफ के कई बचावकर्मियों ने कहा कि कई लोगों ने उनसे भारतीय फिल्मों और शाहरुख खान, सलमान खान, दीपिका पादुकोण और कुछ अन्य अभिनेताओं के बारे में खुलकर बात की और यहां तक ​​कि उनके साथ यह कहते हुए सेल्फी भी ली कि “अगर आप उनसे मिलते हैं तो कहें कि तुर्की के लोग उन्हें प्यार करते हैं।”

10 दिनों तक स्नान नहीं

सब-इंस्पेक्टर बिंटू भोरिया ने बताया कि कैसे कोई भी बचाव दल कर्मीं तुर्की में 10 दिनों तक स्नान नहीं कर सका। एक अन्य अधिकारी ने विपिन प्रताप सिंह ने कहा कि एनडीआरएफ कर्मियों ने स्पंज स्नान किया और शौच और पेशाब करने के लिए गड्डे खोदे। हालांकि, हमने सुनिश्चित किया कि हम उन सभी स्थानों की सफाई करें जहां हम रहते थे। लौटते समय, हम केवल तुर्की के लोगों के प्यार और स्नेह को साथ लाए और स्थानीय लोगों और तुर्की के लोगों के लिए अपने तंबू, भोजन, व्यक्तिगत कपड़े, गर्म कपड़े आदि दान किए।

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