India News (इंडिया न्यूज), Weird Traditions Around the World: दुनिया भर में महिलाओं के अधिकारों को लेकर कानून बनाए जाते हैं, उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है और उनके सशक्तिकरण के प्रयास किए जाते हैं। हालांकि, वास्तविकता यह है कि विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों में महिलाओं की स्थिति अक्सर संकटपूर्ण होती है। उन्हें उनके मन मुताबिक सोचने, स्वतंत्र रूप से घूमने, और समानता का अनुभव करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचार और अपराध इस बात का प्रमाण हैं। हालांकि, कुछ जनजातियाँ इस दृष्टिकोण से काफी अलग हैं और उनके समाज में महिलाओं को एक विशेष दर्जा प्राप्त है। अफ्रीका की एक ऐसी जनजाति, जो मुस्लिम होते हुए भी अपने अनोखे रीति-रिवाजों के लिए जानी जाती है, इसका आदर्श उदाहरण है।
यह जनजाति, जिसे टुआरेग (Tuareg) कहा जाता है, सहारा रेगिस्तान में निवास करती है। ये बंजारों की एक जनजाति है जो उत्तरी अफ्रीका के माली, नाइजर, लिबिया, अल्जीरिया और चाड जैसे देशों में फैली हुई है। 2011 की एक रिपोर्ट के अनुसार, इस जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 20 लाख के करीब है। ये जनजाति मुस्लिम होने के बावजूद अपने सामाजिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में इस्लामिक मान्यताओं से अलग है।
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टुआरेग जनजाति की एक अनोखी विशेषता यह है कि यहां औरतें बुर्का नहीं पहनतीं, बल्कि पुरुष बुर्का पहनते हैं। ये पुरुष नीले रंग का बुर्का पहनते हैं, जिसे स्थानीय भाषा में “टुगेल” कहा जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि रेगिस्तान में यात्रा के दौरान वे खुद को रेत और धूप से बचाना चाहते हैं। एक प्रसिद्ध फोटोग्राफर, हेन्रियेटा बटलर, ने इस पर सवाल उठाया कि औरतें बुर्का क्यों नहीं पहनतीं, तो उन्हें उत्तर मिला कि महिलाएं अपनी सुंदरता के कारण पुरुषों की निगाहों का केन्द्र होती हैं, और इसलिए पुरुषों को उनका चेहरा देखने का अवसर प्राप्त होता है।
टुआरेग समाज में महिलाओं को एक विशेष दर्जा प्राप्त है। यहां महिलाएं परिवार की मुखिया मानी जाती हैं। अगर किसी महिला का पति से तलाक हो जाता है, तो वह उसकी सारी संपत्ति अपने पास रख सकती है। यह समाज में एक मान्यता है कि महिलाओं को शादी के बाद भी कई पुरुषों से संबंध बनाने की स्वतंत्रता होती है। शादी से पहले और बाद में उनके कई प्रेमी हो सकते हैं। इस जनजाति में तलाक को बुरा नहीं माना जाता, बल्कि तलाक के बाद पत्नी के घर वाले जलसा करते हैं और खुशियां मनाते हैं।
टुआरेग जनजाति के लोग खुद्दार होते हैं। यदि उन्हें पानी की आवश्यकता है, तो वे स्वयं से कभी नहीं मांगते, भले ही उनकी हालत कितनी भी खराब हो। इसके अलावा, एक प्रथा के अनुसार, पुरुष उन महिलाओं के सामने खाना नहीं खाते जिनसे वे संबंध नहीं बना सकते हैं।
टुआरेग जनजाति के समाज में महिलाओं को मिले अधिकार और पुरुषों की बुर्का पहनने की प्रथा इसकी अद्वितीयता को दर्शाती है। ये प्रथाएँ हमें यह दिखाती हैं कि समाज के विभिन्न हिस्सों में पारंपरिक मान्यताओं और सांस्कृतिक प्रथाओं के अनुसार सामाजिक संरचनाएं कैसे भिन्न हो सकती हैं। टुआरेग जनजाति की ये अनोखी प्रथाएँ और रीति-रिवाज इस बात का प्रमाण हैं कि एक समाज की सांस्कृतिक विविधता और अनुकूलनशीलता उसके सदस्यों की जीवनशैली को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सकती है।
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